EXCLUSIVE: जब सब कुछ रूस-पुतिन ही कर देंगे तो फिर पीएम नरेंद्र मोदी और मौजूदा हिंदुस्तानी हुकूमत ‘अपने लिए’ क्या करेगी?

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 30 घंटे की भारत यात्रा को लेकर पूरी दुनिया की नज़रें मोदी–पुतिन मुलाकात पर टिकी हुई हैं. वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. सतीश मिश्र के मुताबिक, भारत ने पिछले चार वर्षों में अमेरिका से नज़दीकियां बढ़ाकर रूस से दूरी बनाई, लेकिन इससे भारत को कोई बड़ा रणनीतिक लाभ नहीं मिला. उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पुराने भरोसेमंद साझेदार - जैसे रूस - को नज़रअंदाज़ करना कूटनीतिक भूल होगी, क्योंकि अमेरिका मौकापरस्त है. मिश्र का तर्क है कि विदेश नीति में सत्ता और विपक्ष दोनों की भागीदारी होनी चाहिए, परंतु मौजूदा सरकार विपक्ष को अलग रखकर गलत संकेत भेज रही है.;

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यात्रा भले ही भारत की हो रही हो. वह भी महज 30 घंटे की बेहद छोटी यात्रा. इसके बाद भी मगर इस यात्रा को लेकर विश्व में हलचल है. न केवल यूरोप अपितु फ्रांस-जापान जैसी दुनिया की विकसित ताकतों की भी नजर मोदी और पुतिन की इस मुलाकात पर लगी हैं. आखिर क्यों? ऐसा क्या अहम है इस द्विपक्षीय (रूस भारत) मेल-मिलाप में, जिसने अमेरिका चीन सहित दुनिया भर के तमाम ताकतवर देशों की नींद उड़ा दी है.

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इन्हीं तमाम सवालों को माकूल जवाबों के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने 5 दिसंबर 2025 को एक्सक्लूसिव बात की डॉ. सतीश मिश्र से. ठीक तब जब 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के पहले दौर की हैदराबाद हाउस में मोदी और पुतिन के बीच अहम बैठक हुई. डॉ. सतीश मिश्र विदेश, सामरकि, रक्षा, कूटनीति मामलों के विशेषज्ञ हैं. साथ ही भारत-जर्मनी में करीब पांच दशक पत्रकारिता का भी उनका लंबा-पैना अनुभव है. कालांतर में आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को बेहद करीब से जाने बैठे वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार डॉ. सतीश मिश्र से स्टेट मिरर हिंदी ने जब बात की, तो उन्होंने न केवल रूस-भारत संबंधों को लेकर कई चौंकाने वाली जानकारियां दीं. अपितु बातचीत के दौरान उन्होंने अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और बंग्लादेश व यूरोपियन राजनीति के भी तमाम अहम पहलुओं पर अपनी दो टूक बात रखी.

घाघ अमेरिका के साथ दोस्ती की पींगें बढ़ाकर भारत को क्या हासिल हुआ?

बकौल डॉ. सतीश मिश्र, “दरअसल आज चार साल बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत आए हैं. सवाल यह है कि इन चार साल में भारत अमेरिका के साथ क्यों किसलिए गलबहियां करता रहा था? और इन चार साल की लंबी अवधि में भारत ने रूस की ओर से आंखें क्यों फेर रखी थीं? इन चार साल में भारत को घाघ अमेरिका के साथ दोस्ती की पींगें बढ़ाकर क्या हासिल हुआ? यही हासिल हुआ भारत को अमेरिका से चार साल की दोस्ती में कि, जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान के ऊपर लॉन्‍च किया, तो शैतान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ उस दौरान सीजफायर कराने का श्रेय खुद लेकर उछलते-कूदते रहे. और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी यह जुर्रत नहीं दिखाई कि वह ट्रंप या अमेरिका से दो टूक सवाल कर सकें, कि वे पाकिस्तान के ऊपर भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर में सीजफायर कराने की ठेकेदारी या दावेदारी कैसे कर सकते हैं?”

India and GDR: Three Decades of Relations, India and Antarctic Treaty (Contribution), Jalianwala Bagh Massacre and the Tribune (Contribution), प्रज्ञान वार्षिकी एवं ज्ञान कोष (हिंदी माइक्रोपीडिया, योगदान) जैसी चर्चित पुस्तकें दुनिया की आने वाली पीढ़ियों के देने वाले डॉ. सतीश मिश्र के मुताबिक, “मैं यह नहीं कहता हूं कि दुनिया में भारत की सबसे कमजोर देश है या भारत को ही दुनिया का सबसे ताकतवर देश बन जाना चाहिए. यह सब कई-कई दशक की परिकल्पनाएं हैं. इन परिकल्पनाओं को जमीन पर लाने में दुनिया की कई-कई पीढ़ियां बीत-गुजर जाती है. मैं तो आज जब चार साल के लंबे अरसे के बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत की यात्रा पर आए हुए हैं. इसके बाद जो दुनिया की नजरें भारत-रूस पर लगी हैं. मैं तो इस ताजा बदले हुए परिदृष्य पर खुली चर्चा कर रहा हूं.

जरूरी नहीं है कि दुनिया मेरे मत से सहमत हो

जरूरी नहीं है कि दुनिया मेरे मत से सहमत हो. मगर मैं जो कुछ भी यहां स्टेट मिरर हिंदी के साथ बयान या बातें साझा कर रहा हूं, रूस-भारत के रिश्तों को लेकर. और इन दोनों (भारत-रूस) के बीच हमेशा से ही अड़ंगेबाज रहे अमेरिका, चीन, पाकिस्तान की भूमिका पर, वह सच वही है जो मैं बीते 60-70 साल से देख रहा हां. मैंने भारत के प्रथम श्रेणी के नेताओं को जितना करीब से देखा है. उतने ही करीब से मैंने रूस (तब को सोवियत संघ), चीन, अमेरिका, इजराइल, पाकिस्तान-बांग्लादेश की राजनीति को भी देखा है. मैं चूंकि इस सबके बाद भी नेता नहीं पत्रकार, लेखक हूं. इसलिए संतुलित बात और सच ही यहां बयान कर रहा हूं.”

विदेश नीति में सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष को भी होना चाहिए साथ

आज जब दिल्ली में 23वें भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हैदराबाद हाउस में बैठक चल रही है. तो ऐसे में दुनिया भी भौचक्की होकर इस बैठक पर नजरें गड़ाए बैठी है. शायद इसलिए कि दुनिया में भारत के दोस्त और दुश्मन देश सोच रहे होंगे कि बीते चार साल में, जिस भारत ने अमेरिका-इजराइल के सिवाए किसी की ओर देखा ही नहीं (इसमें रूस भी शामिल है), आज उसी रूस के राष्ट्रपति की याद आखिर भारत को इतने साल बाद क्यों और कैसे आ गई? डॉ. सतीश मिश्र के मुताबिक, “विदेश नीति पर एक राष्ट्रीय सहमति होनी चाहिए. मतलब, बाहरी नीति दोनो पक्षों की होनी चाहिए. मौजूदा मोदी हुकूमत ने इसको पूरी तरह से दबा दिया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक के आयोजन को सिरे से खारिज कर दिया जाना इसका जीता जागता उदाहरण है. इस नजरंदाजी का संदेश भी दुनिया में कोई सही तो जाएगा नहीं. भारतीय राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इनके अपने कितने ही वैमनस्य क्यों न हों. मगर इस मनमुटाव की बात दुनिया में जाहिर कराने से तो भारत और उसकी मौजूदा हुकूमत की जग-हंसाई ही होगी न. भारत के दोस्त एक बार को मौजूदा सरकार के इस कृत्य पर खामोश भी रह जाएं, मगर चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तुर्की, अमेरिका जैसे धुर-विरोधी देश तो भारत की मौजूदा हुकूमत के इस कदम पर अपने अपने घरों में बैठकर हंसेंगे ही न. उन्हें हंसने से भारत की मौजूदा हुकूमत कैसे रोक सकती है.”

मतलबी अमेरिका के लिए दोस्‍त रूस से आंखें नहीं फेर सकते

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के मर्मज्ञ डॉ. सतीश मिश्र ने कहा, “दरअसल रूस और भारत के दोस्ताना-मधुर संबंध आज से नहीं. बीते कई दशक से चले आ रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आपके वे संबंध अगर आप आज और आगे मधुर बनाकर रखने की कोशिश ही नहीं करेंगे. तब भी चलते रहेंगे. विदेश नीति कहती है कि आपको अपने दुश्मन पर हमेशा तिरछी नजर रखनी चाहिए, तो कूटनीति यह भी कहती है कि अपने पुराने दोस्त को हमेशा अपना बनाए रखने की भी कोशिशें आपको निरंतर-निर्बाध करते रहनी चाहिए. यह नहीं कि आज आपने देखा कि अमेरिका आपसे हंसके बोल लिया थोड़ी देर के लिए, तो आप उस मतलबपरस्त शैतान देश की चंद लम्हों की मुस्कान में फंस-लटक कर अपने रूस जैसे पुराने दोस्त की तरफ से नजरें ही फेर लेंगे.”

सबकुछ पुतिन और रूस ही करेंगे तो हम क्‍या करेंगे?

चार साल बाद ही सही रूस के राष्ट्रपति पुतिन की नई दिल्ली यात्रा दुनिया के लिए भारत के प्रति क्या संदेश देगी? पूछने पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. सतीश मिश्र ने कहा, “सबकुछ रूस के ऊपर मत थोपिए. सब कुछ रूस और पुतीन ही जब भारत के लिए कर लेंगे या कर देंगे तब फिर भारत खुद के लिए और प्रधानमंत्री मोदी जी भारत के लिए क्या करेंगे? कुछ हमें (भारत) भी तो करना चाहिए अपने लिए अपने आप से. यह पूछिए कि अब जब पुतीन भारत यात्रा पर आ ही गए हैं तो अब यह सुनहरा अवसर भारत खुद को और अपने संबंधों को, रूस के साथ मजबूत करने में कैसे इस्तेमाल कर सकता है. रूस के राष्ट्रपति भारत आ गये हैं हमारी यह सफलता या खुशी की बात नहीं है. खुशी तब होगी जब इस यात्रा का मौजूदा हिंदुस्तानी हुकूमत भरपूर और वक्त गंवाए बिना सकारात्मक रूप से लाभ ले सके. रूस को तो जो करना था भारत यात्रा करके उसने वह कर दिया है. अब गेंद भारत के पाले हैं. भारत दुनिया को दिखाए कि वह सिर्फ रूस के ही रहम-ओ-करम की बैसाखियों पर नहीं घिसट रहा है. भारत और मोदी जी रूस और उसके राष्ट्रपति पुतिन का अहसान मानें कि, जब चार साल से भारत अमेरिका की मतलबी मुस्कराहट में बेसुध था, और रूस की ओर से भारत आंखें बंद किये बैठा था. इस बेरुखी के बाद भी रूसी राष्ट्रपति आज नई दिल्ली में बैठकर दुनिया को हिला रहे हैं.”

अमेरिका सिर्फ अपना भला और बाकी पूरी दुनिया का बुरा सोचता है

“मैंने अगर अब से 50 साल पहले का सोवियत संघ देखा. तो आज 50-60 साल बाद का रूस और भारत भी देख रहा हूं. मैंने रूस और अमेरिका की कट्टर दुश्मनी देखी. मैंने चीन और अमेरिका की दुश्मनी और अब मिलीभगत भी देख रहा हूं. दरअसल जब आप बात जिओपॉलिटिक्स की करते हैं, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और विदेश व कूटनीति की करते हैं, तब दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त हो जाता है. और इसमें किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए. क्योंकि हर देश अपना भला देखता-सोचता है. यह बात मैं अपनी आंखों देखे अनुभव के आधार पर कालांतर के चीन, रूस, अमेरिका के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में कह रहा हूं.

मैंने वह जमाना भी देखा जब कोई भी पश्चिमी देश भारत को हथियार गोला बारूद देने को राजी नहीं था. इनमें फ्रांस और अमेरिका भी शामिल थे. तब हमें आज के रूस और कल के सोवियत संघ ने भरपूर हथियार मुहैया करवाए थे. बात जब पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने की आई और उसमें कुछ रोड़ा अटक रहा था. तब भी यही रूस भारत (इंदिरा गांधी की एक आवाज पर) के लिए अमेरिका के रास्ते में आ खड़ा हुआ. आज जिस चीन अमेरिका के बीच संबंध कड़वे हैं, बीते कल में मैंने इसी चीन और अमेरिका को आपस में दोस्ती के दौर में भी देखा. चीन ने अमेरिका के लिए अपने सब दरवाजे खोल दिए थे. अमेरिका सिर्फ अपना भला और बाकी पूरी दुनिया का बुरा सोचता है.”

अमेरिका ने भारत को अगर कुछ दिया है तो वो है केवल धोखा

बातचीत के दौरान डॉ. सतीश मिश्र कहते हैं, “शैतान अमेरिका ने अगर भारत को कालांतर से अब कुछ दिया तो सिर्फ और सिर्फ धोखा. पाबंदियां, पचास परसेंट बढ़ा हुआ टैरिफ. आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी दूसरे नंबर की आर्थिक ताकत है. चीन और अमेरिका ने समय समय पर अपनी जरूरत के हिसाब से एक दूसरे को इस्तेमाल किया और फेंक दिया. भारत ने यह अमेरिका और चीन दोनों के ही मामले में नहीं किया. इसे भारत की नजर में चाहे जो कुछ भी समझ लीजिए. जब भारत ने परमाणु बम परीक्षण किया, तो भी उसका सबसे ज्यादा वजन सीधे सीधे अमेरिका-चीन के ही ऊपर पड़ा था.

अमेरिकी दादागिरी के आगे मोदी सरकार ने क्‍यों टेके घुटने?

बेशक हमने बीते कुछ समय में (दौरान-ए-यूक्रेन युद्ध) रूस से सस्ते दाम पर कच्चा तेल खरीद कर रूस की मदद की, मगर जैसे ही यह बात ट्रंप को खली उसने हमें आंखें दिखानी शुरू कर दीं. और हम तुरंत अमेरिका-ट्रंप के फेर में फंसकर कुछ तेल उससे खरीदने जा पहुंचे. क्यों भाई ऐसा क्यों. भारत आखिर ट्रंप या अमेरिका की दादागिरी के पांवों में जाकर क्यों गिर गया. हमने क्यों नहीं ट्रंप और अमेरिका को इसका मुंहतोड़ जवाब दिया. हमारे लोगों को हथकड़ी बेड़ियों में जकड़ कर वापिस अमेरिका ने भेजा. हिंदुस्तान की हुकूमत क्यों इस पर खामोश रही? एक नहीं ऐसे बहुत से शर्मनाक नमूने हैं जो हम अमेरिका के फेर में फंसकर अब तक बीते कुछ साल से करते रहे हैं. अगर हम ऐसे ही चुप्पी साधे रहेंगे तो समझिए यह सीधे सीधे अमेरिका की दादागिरी को बढ़ावा देने वाला कदम होगा. सच कहूं तो आज पीएम मोदी के सामने हर दिन जन-अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कठिन चुनौती बढ़ती जा रही है. मैं चाहता हूं जो भारत कालांतर में हमेशा “शांति” के साथ खड़ा रहा. वह शांति के साथ ही खड़ा रहे मगर “कमजोरी” के साथ अमेरिका जैसे किसी भी मक्कार देश के साथ भारत कतई खड़ा न हो. इससे भारत कमजोर ही होगा.

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