EXCLUSIVE: सुसाइड की कोशिश, ममेरे भाई ने जबरन किया निकाह, दाऊद के गुरु हाजी मस्तान की बेटी 'हसीन' की रुह कंपाती कहानी

हाजी मस्तान मिर्जा की बेटी हसीन मस्तान मिर्जा की कहानी शोहरत, अंडरवर्ल्ड और सत्ता के साये में पनपी एक ऐसी निजी त्रासदी को उजागर करती है, जहां एक चर्चित नाम भी किसी बेटी को इंसाफ नहीं दिला सका. तीन बार आत्महत्या की कोशिश, बचपन में जबरन निकाह, अपनों द्वारा शोषण, मां की बेरुखी और पिता की मौत की खबर तक दो साल बाद मिलना-हसीन की जिंदगी लगातार दर्द, धोखे और संघर्ष से भरी रही.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 16 Dec 2025 4:15 PM IST

इन दिनों भारत से लेकर दुनिया के तमाम मुस्लिम देशों में एक ही नाम हर जुबान पर है 'हसीन मस्तान मिर्जा'. बेशक हसीन मस्तान मिर्जा अपने आप में कोई बहुत फेमस मुस्लिम-महिला न हों. उनके साथ मगर बाप के रूप में जुड़ा है अंडरवर्ल्ड डॉन, माफिया-गुरु और 1970 के दशक में दुनिया के सबसे चर्चित गोल्ड स्मगलर रहे हाजी मस्तान मिर्जा का नाम. जोकि 1994 में इस दुनिया से जा चुके हैं.

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वही हाजी मस्तान मिर्जा जिनकी देहरी पर इनकी शागिर्दी में ड्रग-गोल्ड स्मगलिंग और बाकी अंडरवर्ल्ड दुनिया की तमाम बारीकियां जानने-समझने-सीखने के लिए कालांतर में, आज अमेरिका और भारत का मोस्ट वॉन्टेड मगर एक नंबर का “डरपोक” दाऊद इब्राहिम पड़ा रहता था. ऐसे इंटरनेशनल गोल्ड स्मगलर मरहूम हाजी मस्तान मिर्जा की बेटी आज थाने-चौकी कोर्ट कचहरी के धक्के खाकर थक चुकी है. सिर्फ इस ख्वाहिश या कहिए उम्मीद में कि उसे उसके अपने ही करीबी ब्लड रिलेशन (खून के रिश्ते) के लोग-नाते-रिश्तेदार, हाजी मस्तान मिर्जा की बेटी हसीन मस्तान मिर्जा (दूसरी पत्नी शहंशाह बेगम उर्फ सोना की इकलौती औलाद) कानूनी तौर पर मान लें.

ह़क और जिद की लड़ाई में सब जायज

‘ह़क’ कहिये या फिर ‘जिद’ की इस लड़ाई में उतरी 41 साल की हसीन मस्तान मिर्जा आज अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हैं. आखिर क्यों? उनके पिता का नाम और दाम आज उनके काम नहीं आ रहा है क्या? ऐसे ही उनकी जिंदगी के अनछुए सैकड़ों सवाल के जवाब की उम्मीद में ‘स्टेट मिरर हिंदी’ के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने कई दौर की लंबी एक्सक्लूसिव बात की हसीन मस्तान मिर्जा से. मुंबई में मौजूद हसीन मस्तान मिर्जा बातचीत के दौरान बेबाकी से कहती हैं, “दरअसल आज मैं बदहाली-बेहाली के जिस आलम या दौर से गुजर रही हूं, परमात्मा दुनिया की किसी भी बेटी या महिला को न दिखाए. मेरे अब्बा (हाजी मस्तान मिर्जा) की इज्जत समाज के चंद बेगैरत लोगों के जरिए सर-ए-बाजार न उछाली जाए, लेकिन जब से मैं खुलकर अपनी परेशानियां लेकर ब-जरिए मीडिया जमाने के सामने आई हूं, तब से मुझे लग रहा है कि मेरे मरहूम अब्बा को फिर बेवजह ही उछाला जाने लगा है. जोकि बेटी होने के नाते मेरे लिए तो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है.

सुसाइड के तीन अटेम्प्ट में भी दगा मिला

अब से पहले मैं तीन बार अपनी मुसीबतों से हारकर सुसाइड तक की कोशिश कर चुकी हूं. किस्मत ने मगर उस हर कोशिश में भी दगा ही दिया. लिहाजा आज मैं आपसे व देश के तमाम मिडिया से रू-ब-रू होने को मजबूर हूं. मैं अब भी अगर सामने निकल कर न आती तो शायद हिंदुस्तान की बाकी और न मालूम कितनी बेटियां ठीक ऐसे ही घुट-घुटकर मरती-खपती रहतीं, जिस बदहाली के आलम से मैं गुजर रही हूं. सिर से पानी ऊपर होता देख और पुलिस, कोर्ट कचहरी से न्याय न मिलता देखकर ही मैं सामने आई.

 

Image Credit: FB/haseen.m.mirza

प्रधानमंत्री-गृहमंत्री से गुजारिश

स्टेट मिरर हिंदी के साथ बेबाक बातचीत में हसीन मस्तान मिर्जा कहती हैं, “मैं देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से गुजारिश करती हूं कि वे, कोई ऐसा सख्त कानून जल्दी से जल्दी बनाएं ताकि हिंदुस्तान जैसे विशाल लोकतांत्रितक देश में किसी और की बहू-बेटी या मां को न्याय पाने की उम्मीद में वह सब न भोगना पड़े जो आज हसीन मस्तान मिर्जा यानी मैं भोग रही हूं. ऐसा नहीं है कि मैं सीधे प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री से ही सख्त कानून बनाने की दरखास्त लेकर आन पड़ी. मैंने न्याय पाने के लिए अपने स्तर पर जो जायज-कानूनी और बेहतर रास्ते थे, उन सब पर चलकर देख लिया. हर जगह मगर मुझे न्याय के स्थान पर गढ्ढे ही खुदे हुए पड़े मिले.”

अब्बा की मौत की खबर 2 साल बाद मिली

बकौल हसीन मस्तान मिर्जा, “मेरी बदनसीबी शायद मेरे जन्म के बाद से ही मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गई थी. बचपन में पढ़ाई-लिखाई के नाम पर मुझे हॉस्टल हासिल कराया गया. मां-बाप की जगह मेरी गार्जियन बनी मेरी मां की सगी बहन यानी मेरी खाला (मौसी). 1994 में अब्बा हाजी मस्तान मिर्जा का इंतकाल हो चुका. मगर यह बात मुझसे न केवल मेरी मां ने दो साल तक छिपाई अपितु रिश्तेदारों ने भी मुझे यह खबर नहीं दी. ऐसा मेरे साथ मेरी मां और बाकी रिश्तेदारों ने क्यों किया? अब आज जिन झंझावतों से मैं जूझ रही हूं उनके बीच इस सवाल के जवाब से अब मैं 33 साल बाद अपना सिर फोड़ना नहीं चाहती हूं. क्योंकि इससे महज सिरदर्दी के सिवा और कुछ मुझे हासिल नहीं होगा.”

मां ने सच जानने से ही आंखें मूंद लीं

“जब मैं 12 साल की हुई तो एक दिन मेरे बारे में मेरी खाला (मौसी) ने ही मेरी मां को झूठा ही बता दिया कि मेरे मामू के बेटे (जो तब चार शादियां करके तलाकशुदा था और उसकी उम्र मुझसे दोगुनी यानी 24 साल के करीब थी) ने मेरा रेप किया है. जबकि वह बात मेरे साथ उसके द्वारा की गई छेड़छाड़ भर तक सीमित थी. बात रेप की कोशिश या छेड़छाड़ तक ही सीमित रहती तो शायद दब जाती. हदें तो तब पार हो गईं जब मेरी मां को दिग्भ्रमित करने की नियत से सोची-समझी रणनीति के तहत मेरे बारे में उन्हें यह बताया गया कि मेरे सगे मामू का बेटा (जिसके ऊपर मेरे साथ रेप की कोशिश की बात हुई थी) मेरे साथ कई बार हमबिस्तर (अनैतिक संबंध) हो चुका है. मैं मां को लाख समझाती रही कि मामू का बेटा (मां के सगे भाई का वही बेटा जो बाद में जबरिया मेरे साथ निकाह कराके मेरा शौहर बनवा डाला गया) मेरे साथ हमबिस्तर हुआ ही नहीं है.

 

Image Credit: FB/haseen.m.mirza

मां की आंख पर काला नकाब पड़ा था

मां की आंख पर मगर वहम कहूं या फिर शक और अपनी बहन व अपने मायकों वालों की अंधी-बहरी-गूंगी बेपनाह चाहत का काला नकाब पड़ा था. इसलिए उन्हें अपने गर्भ से पैदा बेटी झूठी और मेरे व मेरी मां के खिलाफ षडयंत्र रचने वाले ईमानदार व सही लगे. लिहाजा अगर कहूं कि मां की मेरे प्रति वह बेरुखी भी आज मेरी अशांति में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है, तो गलत नहीं होगा. मगर चूंकि अब मां-बाप दुनिया में नहीं हैं मेरे, लिहाजा अब मैं उन पर कोई ऐसा इल्जाम लगाकर अपना भविष्य नरक नहीं बनाना चाहती हूं. वे मेरे मां बाप थे बस. आपने मुझे कुरेदा तो मैंने बेबाकी से बेसाख्ता अपने सीने में अपनी जिंदगी में दफन दर्द बयां कर दिया है.”

ऐसे तबाह होती गई जिंदगी

स्टेट मिरर हिंदी के साथ लंबी खास बातचीत में हसीन मस्तान मिर्जा बोलीं, “दरअसल मैं आज लड़ाई इस बात की लड़ रही हूं कि मैं हसीन मिर्जा अपने वालिद मरहूम हाजी मस्तान मिर्जा और उनकी दूसरी बेगम मरहूमा शहंशाह मिर्जा उर्फ सोना की इकलौती संतान या कहूं बेटी हूं. इसके तमाम दस्तावेज मौजूद हैं. जिन्हें अब मेरे अब्बा और मेरी दूसरी मां के मेरे खून के करीबी रिश्तेदार ही मानने को राजी नहीं है. इसमें सबसे खतरनाक विलेन के रोल में मेरे मामू का बीते कल का वही बेहया लड़का और आज का मेरा तलाकशुदा शौहर है, जिसने अब तक मय मेरे साथ 6-7 निकाह किए. उसी ने मेरे साथ जबरिया 12 साल की उम्र में अपना पांचवा निकाह करने के लिए मुझे डरा-धमका कर तब 19 साल का करार दिलवा कर मुझसे शादी की. उससे मेरे दो बेटे और एक बेटी है. इन औलादों में से एक बेटा आज भी मेरी मुसीबत में साये की मानिंद मेरे साथ है. जबकि बेटी अलग रहती है. दूसरा बेटा मेरे तलाकशुदा शौहर के साथ ही रहता है.”

ताक में दुश्मन भी थे और दोस्त-ए-अजीज भी...

आज आप जिस तरह से खुद की दुश्वारियों से निकलने के लिए बेहाल हैं. कोर्ट-कचहरी-कानून पुलिस कोई आपकी मदद नहीं कर पा रहे हैं. आपको मदद के लिए प्रधानमंत्री-गृहमंत्री तक का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है. यह सब मुसीबतें तो आपके मां-बाप के सामने से ही हैं. आपके माता-पिता ने अपने जीते-जी क्यों नहीं आपका उनके साथ बेटी-मां-बाप का रिश्ता होने के सबूत-दस्तावेज तैयार करवाए? जिसके चलते आज आपके खुद को हाजी मस्तान मिर्जा की बेटी होने का सबूत देने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ रही है? एक साथ कई सवालों के जवाब में हसीन मस्तान मिर्जा कहती हैं, “दरअसल जिस लड़की के साथ 12 साल की छोटी उम्र में ही मां ने मुंह मोड़ लिया हो. बाप का इंतकाल हो चुका हो. खाला, मामा और मामा का बेटा जिस 12 साल की बच्ची पर साम-दाम दंड भेद से कब्जा करने को बेताब हुए बैठे हों. 12 साल की उम्र में ही जबरिया मां को झूठमूठ बहका कर जिस बच्ची का निकाह मौसी ने अपने भाई यानी मेरे सगे मामू के मुझसे दोगुनी (12 साल बड़े) बड़े लड़के के साथ जबरन करा डाला हो.

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अब खामोश रहूंगी तो...

जिस बच्ची को 12-13 साल की छोटी सी उम्र में दिन में चार-चार बार रेप करके जबरन गर्भवती करवा डाला गया हो. आप सोच सकते हैं कि मेरा अतीत किस कदर अपनों ने ही जहन्नुम बना डाला होगा. हां, अब मैं मगर खामोश रहने वाली नहीं हूं. जब मुझपे मुसीबतों के पहाड़ तोड़े जा रहे तब मैं महज 12 साल की न-समझ लड़की थी. आज मैं तीन-चार जवान बच्चों की मां हूं. आज मैं जान-समझ चुकी हूं कि मुझे जिन्होंने बर्बाद किया है उन्हें कानूनन कैसे सजा दिलवानी है. अब भी मैं अगर खामोश रहूंगी तो अपनी दुश्वारियों-तबाही के लिए ही नहीं मैं, देश की बाकी मेरी जैसी लाखों बहू-बेटियों की आने वाले वक्त में उनकी होने वाली तबाही के लिए भी मैं ही खुद को जिम्मेदार मानूंगी.”

पिता हाजी मस्तान स्मगलर नहीं ‘बिजनेसमैन’ थे

खास बातचीत के आखिर में एक बार नहीं बार-बार मरहूम हाजी मस्तान की बेटी हसीन मस्तान मिर्जा एक बात जरूर दोहराती हैं, “आज मेरी मुसीबत के इस दौर में जो भी मीडिया वाले या फिर कोई और मुझे अंडरवर्ल्ड डॉन, माफिया डॉन या फिर इंटरनेशनल गोल्ड स्मगलर की बेटी कहकर बुलाते हैं. या फिर मेरे मरहूम अब्बा के लिए ऐसे अल्फाज इस्तेमाल करते हैं. तो यह मुझे बेहद नगवार गुजरता है. और गुजरना भी चाहिए क्योंकि मेरे पिता कोई खूनी-बदमाश लुच्चा नहीं थे. उनकी अपने दौर में राजनीति से लेकर देश दुनिया के बड़े व्यापारियों तक में काबिल-ए-गौर पैठ रसूख-रुतबा था. वे गोल्ड के बड़े नामी बिजनेसमैन थे न कि गोल्ड स्मगलर.”

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