क्या धर्म के आधार पर मिल सकता है आरक्षण? कलकत्ता HC के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले पर सुनवाई की और कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें पश्चिम बंगाल में 2010 से कई जातियों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया गया था. कोर्ट में उच्च न्यायालय के 22 मई के फैसले को चुनौती देने वाली ममता सरकार की याचिका सहित सभी याचिकाओं पर जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथ की बेंच ने सुनवाई की.;

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Edited By :  निशा श्रीवास्तव
Updated On : 10 Dec 2024 10:08 AM IST

Supreme Court On Reservation: देश में अक्सर आरक्षण के मुद्दों को लेकर लोग विरोध करते नजर आते हैं. अलग-अलग जातियों के द्वारा आरक्षण की मांग उठाई जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 दिसंबर) को एक मामले पर सुनवाई की और कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता.

जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें पश्चिम बंगाल में 2010 से कई जातियों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया गया था. कोर्ट में उच्च न्यायालय के 22 मई के फैसले को चुनौती देने वाली ममता सरकार की याचिका सहित सभी याचिकाओं पर जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथ की बेंच ने सुनवाई की.

आरक्षण मामले पर क्या बोला कोर्ट

इस मामले पर जस्टिस गवई ने कहा, "आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता." इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, "यह धर्म के आधार पर नहीं है. यह पिछड़ेपन के आधार पर है." उच्च न्यायालय ने 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया था और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए आरक्षण को अवैध ठहराया था. अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड था" उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि "मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा घोषित करना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है."

फैसले का किस पर होगा प्रभाव

उच्च न्यायालय ने राज्य के 2012 के आरक्षण कानून और 2010 में दिए गए आरक्षण के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय करते हुए स्पष्ट किया कि हटाए गए वर्गों के नागरिक, जो पहले से सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हुए हैं, उनकी सेवाएं इस निर्णय से प्रभावित नहीं होंगी. उच्च न्यायालय ने कुल मिलाकर अप्रैल 2010 और सितम्बर 2010 के बीच दिए गए 77 प्रकार के आरक्षण को रद्द कर दिया.

क्या बोले कपिल सिब्बल?

इसने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2012 के तहत ओबीसी के रूप में दिए गए 37 वर्गों को आरक्षण देने से भी इन्कार कर दिया. बता दें कि सिब्बल ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों को रद्द कर दिया गया है. उन्होंने कहा, "ये बहुत गंभीर मुद्दे हैं. इससे उन हजारों छात्रों के अधिकार प्रभावित होते हैं जो विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के इच्छुक हैं, जो लोग नौकरी चाहते हैं." इसलिए सिब्बल ने पीठ से आग्रह किया कि कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाए और उच्च न्यायालय के आदेश पर एकतरफा रोक लगाई जाए. मामले पर अगली सुनवाई 7 जनवरी, 2025 को होगी.

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