बिहार चुनाव से पहले विवादित बिल पर झुकी कांग्रेस, PM-CM को हटाने वाले बिल पर लिया यू-टर्न, शीतकालीन सत्र में मचेगा कोहराम!
कांग्रेस ने बिहार चुनाव से पहले पीएम और सीएम हटाने वाले विवादित बिल पर लिया यू-टर्न. शीतकालीन सत्र में यह बिल राजनीतिक तूफान मचा सकता है. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इस बात के संकेत दिए थे कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथी दलों के बीच इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी और मिलकर ही सामूहिक फैसला लेगी.;
बिहार चुनाव 2025 से पहले कांग्रेस ने एक बड़ा सियासी कदम उठाया है. पार्टी ने उस बिल पर यू-टर्न लिया है, जो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने की प्रक्रिया से जुड़ा था. इस फैसले के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में राजनीतिक हलचल तेज होने की संभावना है. अब तक कांग्रेस के इस बिल पर नरम रुख से विपक्ष और सहयोगी दलों में गहरी नाराजगी थी. कांग्रेस ने उसी को पाटने की कोशिश की है.
विवादित बिल का क्या था मकसद?
बिल में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रस्ताव या Motion के जरिए उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव था. कांग्रेस ने शुरू में इसे समर्थन देने का संकेत दिया था, लेकिन सहयोगी दलों के दबाव के बाद पार्टी ने अपना रुख बदल दिया.
कांग्रेस का यू-टर्न क्यों?
सियासी विश्लेषकों के अनुसार बिहार में चुनाव से पहले गठबंधन दलों का दबाव और संभावित राजनीतिक fallout को देखते हुए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया. पार्टी ने साफ किया कि वे सहयोगी दलों की भावनाओं का सम्मान करती हैं.
इसी कड़ी में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के अंदर सभी साथी दलों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश में पीएम-सीएम को हटाने संबंधी 130 वें संविधान संशोधन बिल समेत कुल तीन विधेयकों पर बनी संयुक्त संसदीय समिति का बहिष्कार करने का फैसला किया है. यह वही बिल है, जिसमें प्रावधान किया गया है कि 30 दिनों की जेल की सजा काट रहे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को स्वतः बर्खास्त कर दिया जाएगा.
कांग्रेस का यह फैसला तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आप और शिवसेना द्वारा जेपीसी के बहिष्कार की घोषणा के बाद आया है. कांग्रेस भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाए जाने के डर से अब तक जेपीसी से बाहर रहने के फैसले से हिचकिचा रही थी. कांग्रेस के अलावा दूसरे प्रमुख विपक्षी दलों यानी डीएमके, एनसीपी और वाम दलों की भी JPC में भागीदारी भी संदिग्ध है.
दरअसल, संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन विधेयकों को संसद में पेश किया था, जिसे बाद में सदन ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को जांच के लिए भेज दिया था.
TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी ने जेपीसी से दूर रहने का औपचारिक फैसला ले लिया है और जल्द ही लोकसभा अध्यक्ष को इस बारे में सूचित किया जाएगा. पहले कांग्रेस इस तर्क के साथ जेपीसी में शामिल होने को तैयार हुई थी कि सरकार को इस समिति में मनमानी करने की पूरी छूट नहीं दी जा सकती, लेकिन इस विचार पर विपक्षी एकता भारी पड़ी और अब कांग्रेस ने उन चारों दलों का साथ देने का फैसला किया, जो पहले ही दिन से JPC का बहिष्कार कर रहे थे. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इससे पहले इस बात के संकेत दिए थे कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथी दलों के बीच इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी.
शीतकालीन सत्र में मचेगा कोहराम
शीतकालीन सत्र में यह बिल फिर से बहस के लिए प्रस्तुत होगा. विपक्ष और सरकार के बीच जमकर विवाद होने की संभावना है. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला बिहार चुनाव में चुनावी रणनीति और वोटरों पर सीधा असर डाल सकता है.
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इंडिया के सहयोगी दलों के नेताओं ने भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस के फैसले को अवसर के रूप में देख रहे हैं. विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की यह चाल गठबंधन में संतुलन बनाए रखने और चुनावी रणनीति में बदलाव का संकेत हैं. शीतकालीन सत्र में बिल पर बहस के दौरान राजनीतिक गहमागहमी तेज होगी. कांग्रेस के यू-टर्न से बिहार चुनाव की तस्वीर और भी जटिल हो सकती है.
130 वां संविधान संशोधन बिल क्या है?
यह बिल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की शक्तियों और उनके पद को हटाने या बदलने से संबंधित है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसे पद हटाने-सशर्त पदांतरण की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए लाया गया है.
मुख्य प्रावधान:
- राष्ट्रपति या राज्यपाल के माध्यम से पीएम/सीएम को हटाने का प्रावधान.
- कुछ मामलों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और विधानसभाओं की भूमिका तय करने का प्रावधान.
- केंद्रीय और राज्य स्तर पर पदाधिकारी में संतुलन.
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
इसे लेकर विभिन्न दलों में बहस जारी है. समर्थक कहते हैं कि यह व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगा. विरोधियों का कहना है कि इससे राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना बढ़ सकती है.
यह बिल संसद में पेश किया गया. अभी तक स्वीकृति या कानून बनने की अंतिम स्थिति पर अपडेट की जरूरत है. प्रधानमंत्री को हटाने का संवैधानिक तरीका लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence motion) के माध्यम से होता है. अगर बहुमत सांसद पीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर देते हैं, तो पीएम को पद छोड़ना पड़ता है.
जहां तक सीएम को हटाने का तरीका विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से होता है. अगर विधानसभा में बहुमत सीएम के खिलाफ हो, तो सीएम को पद छोड़ना पड़ता है. यानी, वर्तमान संविधान के अनुसार सीधे 'किसी बिल' से पीएम या सीएम को नहीं हटाया जा सकता. इसे केवल अविश्वास प्रस्ताव या इस्तीफा देने से हटाया जा सकता है.
संसद या राज्य सरकार नया बिल बनाना चाहे
- कोई बिल सीधे पीएम या सीएम को हटाने के लिए लाना संविधान के खिलाफ होगा, क्योंकि पीएम और सीएम का पद संविधान द्वारा निर्धारित है. केवल संविधान में संशोधन करके ही ऐसे अधिकार को बनाया जा सकता है.
- बतौर उदाहरण अगर कोई सुप्रीम कोर्ट की अनुशंसा या विशेष प्रक्रिया के तहत बिल लाया जाए, तो भी उसे राज्यसभा/लोकसभा और राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए. अभी तक ऐसा कोई बिल संविधान में मौजूद नहीं है.
- पीएम या सीएम को हटाने का केवल तरीका है अविश्वास प्रस्ताव या इस्तीफा, और ये प्रक्रिया संसद/विधानसभा की बहुमत पर आधारित है. कोई सीधे हटाने वाला बिल संविधान की मौजूदा व्यवस्था में वैध नहीं होगा.