भगवद गीता, वेदांत और योग धार्मिक ग्रंथ नहीं’- मद्रास हाई कोर्ट, गृह मंत्रालय का आदेश खारिज

मद्रास हाई कोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि भगवद गीता, वेदांत और योग को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं माना जा सकता. हाई कोर्ट के जज ने इस संबंध में गृह मंत्रालय के आदेश को भी खारिज कर दिया. जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने आदेश में कहा कि जो बात भगवद गीता पर लागू होती है, वही वेदांत पर भी लागू होगीजानिए, क्या है पूरा मामला?;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 23 Dec 2025 4:37 PM IST

मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को भगवद गीता, वेदांत और योग को लेकर लंबे समय से चल रही धार्मिक-सांस्कृतिक बहस पर बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इन ग्रंथों और दर्शन परंपराओं को सिर्फ धार्मिक ग्रंथों की संकीर्ण परिभाषा में सीमित नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट इसके साथ ही हाई कोर्ट ने गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा जारी उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें इन्हें धार्मिक श्रेणी में रखकर एक विशेष प्रशासनिक निर्णय लिया गया था. यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से अहम है, बल्कि धर्म, दर्शन और भारतीय सांस्कृतिक विरासत की व्याख्या को लेकर भी दूरगामी असर डाल सकता है.

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जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि जो बात भगवद गीता पर लागू होती है, वही वेदांत पर भी लागू होगी. यह हमारे पूर्वजों द्वारा विकसित शुद्ध दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है. मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि भगवद गीता एक नैतिक विज्ञान है और पूरी तरह से धार्मिक ग्रंथ होने के बजाय "भारतीय सभ्यता" का हिस्सा है.

जस्टिस जी आर स्वामीनाथन फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (FCRA) के तहत गृह मंत्रालय के आदेश के खिलाफ अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसने बिना पूर्व अनुमति के विदेशी योगदान फंड के आधार पर और संगठन के धार्मिक स्वरूप के कारण ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन को खारिज कर दिया था.

कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता भगवद गीता में बताए गए संदेश को फैलाने में भी लगा हुआ है, अथॉरिटी ने यह निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता एक धार्मिक संस्था है. भगवद गीता कोई धार्मिक किताब नहीं है. यह बल्कि एक नैतिक विज्ञान है."

हाई कोर्ट में याची ने अपने याचिका में तर्क दिया था कि भगवद गीता, वेदांत दर्शन और योग परंपरा को केवल धार्मिक ग्रंथ या धार्मिक अभ्यास मानना संविधान की भावना के खिलाफ है. क्योंकि इनका प्रभाव आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैश्विक मानव मूल्यों तक फैला हुआ है.

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि कोर्ट ने कहा कि भगवद गीता और वेदांत जीवन, कर्म और नैतिकता पर दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं. इन्हें किसी एक संप्रदाय तक सीमित नहीं किया जा सकता. योग एक वैश्विक अभ्यास है. हाई कोर्ट ने माना कि योग भारत से निकला जरूर है, लेकिन आज यह वैश्विक स्वास्थ्य और जीवन-शैली अभिन्न हिस्सा बन चुका है. कोर्ट के अनुसार, भारत का संविधान किसी दर्शन या ज्ञान परंपरा को केवल धार्मिक चश्मे से देखने की अनुमति नहीं देता. राज्य को धर्मनिरपेक्ष दृष्टि अपनानी होगी.

गृह मंत्रालय का आदेश क्यों हुआ खारिज?

मद्रास हाई कोर्ट ने पाया कि गृह मंत्रालय का आदेश सामान्यीकृत और सीमित व्याख्या पर आधारित था. इससे शिक्षा, संस्कृति और सार्वजनिक नीति पर अनावश्यक प्रतिबंध लग सकता था. इसी आधार पर कोर्ट ने आदेश को असंवैधानिक और टिकाऊ न मानते हुए रद्द कर दिया.

फैसले का महत्व क्यों है?

हाई कोर्ट का फैसला धर्म और संस्कृति के बीच कानूनी फर्क स्पष्ट है. शैक्षणिक संस्थानों में गीता और योग की पढ़ाई को लेकर स्पष्ट और भविष्य में सरकारी नीतियों के लिए दिशा निर्देशक है. भारत की सांस्कृतिक विरासत को समावेशी नजरिए से देखने की मिसाल है.

क्या है मामला?

अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट ने FCRA द्वारा सितंबर 2021 में एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के आवेदन को लेकर पारित आदेश के खिलाफ कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी. FCRA ने ट्रस्ट के आवेदन को दो आधारों पर खारिज कर दिया. पहला, याचिकाकर्ता ने बिना पूर्व अनुमति के विदेशी योगदान (FC) फंड प्राप्त किया था, और विदेशी योगदान फंड को एक दान के रूप में दूसरे संगठन को ट्रांसफर किया गया था, और दूसरा आधार यह था कि संगठन का स्वरूप धार्मिक प्रतीत होता है. ट्रस्ट ने कोर्ट से संबंधित रिकॉर्ड मंगवाने, विवादित आदेश को रद्द करने और अधिकारियों को एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए एप्लीकेशन को मंजूरी देने का निर्देश देने के लिए कहा था.

दरअसल, ट्रस्ट ने 2021 में एफसीआरए पंजीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन यह अनुरोध कई वर्षों तक लंबित रहा. गृह मंत्रालय ने 2024 और 2025 में स्पष्टीकरण मांगा. जनवरी 2025 में दायर किया गया एक नया आवेदन आखिरकार सितंबर 2025 में खारिज कर दिया गया. ट्रस्ट ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. मंत्रालय द्वारा आवेदन खारिज करने का एक प्रमुख कारण यह बताया गया कि 'ट्रस्ट धार्मिक प्रतीत होता है, जिसे अदालत ने मानने से इनकार कर दिया.'

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