Bangladesh Crisis: मिलिए शबनम फाजिल खान से, जिन्होंने दिल्ली में बैठे-बैठे ही 5 मिनट में हिला डाली बांग्लादेश और यूनुस की चूलें

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे कथित अत्याचारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस तेज होती जा रही है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत में राजनीतिक शरण लेने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सत्ता पर पाकिस्तान–चीन समर्थित होने और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर आंख मूंदने के आरोप लग रहे हैं. इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा की महिला विंग अध्यक्ष शबनम रोशन फाजिल खान ने दिल्ली स्थित बांग्लादेश उच्चायोग की ओर शांतिपूर्ण कूच किया. शबनम का कहना है कि यह कदम किसी राजनीतिक स्टंट के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश सरकार का ध्यान हिंदुओं पर हो रहे हमलों की ओर खींचने के लिए था.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 25 Dec 2025 6:29 PM IST

Bangladesh Crisis: अगस्त 2025 को जब से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में राजनीतिक शरण पाई है, तभी से भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान-चीन के हाथों की कठपुतली बना अपने यहां हिंदुओं के ऊपर कहर बरपा रहा है. सैकड़ों सनातनी मंदिरों को तबाह कर दिया गया. सनातन के कई बड़े धर्म-गुरुओं को गिरफ्तार करके बांग्लादेशी हुकूमत ने जेल में ठूंस दिया है. बांग्लादेश में वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ल-ए-आम अभी भी काबू होने का नाम नहीं ले रहा है. इसलिए क्योंकि इस खून-खराबे के लिए बांग्लादेश के मौजूदा अंतरिम राजनीतिक सलाहकार मोहम्मह युनूस का इस कत्ल-ए-आम के लिए मौन-स्वीकृति हासिल है, जो प्रभार संभालने वाले दिन से ही भारत से इस बात से खफा हैं कि भारत ने उनकी निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना को राजनीतिक शरण क्यों दी है?

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बीते एक साल से रुक रुककर बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके मंदिरों-घरों को तबाह किया जा रहा है. भारत मगर फिर भी इन दुस्साहसिक घटनाओं पर खामोश है. भारतीय हुकूमत ने इस ज्वलंत मुद्दे पर आखिर बांग्लादेश को उसी की भाषा में कोई कड़ा जवाब क्यों नहीं दिया है? इस सवाल को लेकर अब दुनिया भर के हिंदू समर्थक और सनातनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी विदेश-कूटनीति को ही पानी-पी-पी कर कोस रहे हैं. कुछ लोग मोदी और उनकी सरकार को बांग्लादेश के सामने ‘असहाय-कमजोर’ तक करार देने लगे हैं.

मोदी का होंठ कौन सिल सकता है?

मोदी सरकार की ओर उंगिलयां उठाने वाले उनके विरोधी और सनातन समर्थक सवाल उठा रहे हैं कि भारत और उसके हुक्मरानों के इस ज्वलंत मुद्दे पर आखिर होंठ क्यों सिले हुए हैं? पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के ऊपर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी भाषा में दिए गए जवाब सा ही आखिर, मोदी और उनकी हुकूमत बांग्लादेश में मारे-काटे जा रहे हिंदुओं की रक्षार्थ कोई कड़ा कदम क्यों नहीं उठा पा रही है. वह कदम जिसे देखकर बांग्लादेश के मक्कार और भारत विरोधी अंतरिम राजनीतिक सलाहकार मोहम्मद युनूस और उनके मुंहलगे सिपहसलारों की रुह कांप उठे.

 

शबनम ने नामचीन ‘नंगे’ कर दिए

बीते करीब एक साल से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के ऊपर बरपाए जा रहे कहर के मुद्दे पर जहां भारतीय जनता पार्टी विरोधी राजनीतिक दल, अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही घेरने-बटोरने में जुटे हुए थे, तब तक देश की एक मुस्लिम महिला शबनम रोशन फाजिल खान ने दिल्ली में बैठे-बैठे ही वह गजब का काम कर डाला, जिसे अब तक बीते एक साल में कोई नहीं कर सका था. हमेशा इस्लाम को न मानने वाले मुल्ला-मौलवियों का सिरदर्द बनी रहने वाली और उनकी खुलकर खिलाफत करती रहने वाली, खुद को हिंदू मुसलमान के दायरे से दूर रखकर सिर्फ और सिर्फ कट्टर भारतीय मानने वाली मुस्लिम महिला रोशन शबनम फाजिल खान बीते मंगलवार (23 दिसंबर 2025) को अचानक दोपहर के वक्त उस वक्त चर्चाओं में आ गईं, जब वह अपने समर्थकों-शुभचिंतकों के दल-बल संग नई दिल्ली में स्थित बांग्लादेश के दूतावास के करीब जा धमकीं.

भारतीय एजेंसियों के होश फाख्ता

दलबल सहित शबनम रोशन फाजिल खान के दिन-दोपहर नई दिल्ली स्थित बांग्लादेशी दूतावास पर पहुंचने की खबर ने हिंदुस्तानी खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस के हाथ-पांव फुला दिया, क्योंकि न केवल भारत को अपितु दुनिया को पता है कि अपने देश में बांग्लादेश वहां मौजूद अल्पसंख्यकों के ऊपर किस कदर के जुल्म कर रही है. बांग्लादेशी दूतावास की ओर बढ़ती भीड़ को रोकने की जिम्मेदारी तत्काल मौके पर पहुंची दिल्ली पुलिस ने संभाली. स्टेट मिरर हिंदी के साथ विशेष बातचीत में शबनम रोशन फाजिल खान ने कहा, “हमारा मकसद किसी की भावनाओं को भड़काने या फिर दिल्ली में मौजूद बांग्लादेश के उच्चायोग (दूतावास) को घेरने का मकसद शांति-भंग करना कतई नहीं था.

'जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है'

नई दिल्ली में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन संजीव चौहान के साथ अपनी बात जारी रखते हुए शबनम रोशन फाजिल खान कहती हैं, “दरअसल मंगलवार को बांग्लादेश उच्चायोग पर विरोध प्रदर्शन करके उनके देश में (बांग्लादेश) हिंदुओं और मंदिरों पर बरपाए जा रहे कहर को लेकर बांग्लादेश के मौजूदा हुक्मरानों तक हम अपनी बात पहुंचाना चाहते थे, जो पहुंच भी गई है. दुनिया सोच रही है कि भारत में मौजूदा नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली हुकूमत बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हो रहे अत्याचार को लेकर घोड़े बेचकर सो रही है. या मोदी कमजोर प्रधानमंत्री हैं... लेकिन ऐसा नहीं है.

‘ऑपरेशन-सिंदूर’ मोदी के जवाब देने का तरीका

शबनम रोशन फाजिल खान ने कहा कि मोदी जी और भारत की खामोशी को, दुनिया बांग्लादेश में हिंदुओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों के मसलहे पर कमजोर न समझे. मोदी और उनकी हुकूमत भारत व हिंदू विरोधी ताकतों को कैसा मुंह तोड़ जवाब देते हैं, बीते 6-7 मई 2025 को आधी रात जब भारतीय फौजें ऑपरेशन सिंदूर में काल बनकर मक्कार पाकिस्तान के ऊपर टूटा था, तो इन्हीं मोदी जी और इसी भारतीय जनता पार्टी का जलवा और दुश्मन को कड़ा जवाब देने का लहजा जमाने ने खुली आँखों से देखा था.

 

बांग्लादेश उच्चायोग की ओर कूच की रणनीति

मंगलवार को 'राष्ट्रीय लोक मोर्चा' पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के वरिष्ठ मंझे हुए राजनेता उपेंद्र कुशवाहा से मशविरे के बाद ही तय हुआ था कि बांग्लादेश को शांति से उसकी औकात बताने के लिए दिल्ली में स्थित बांग्लादेश उच्चायोग की ओर कूच करना बेहद जरूरी है. राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी की हाल ही में महिला-विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी शबनम रोशन फाजिल खान एक सवाल के जवाब में कहती हैं, “हमारा मकसद दिल्ली स्थित बांग्लादेश उच्चायोग पर शोर मचाना या बवाल खड़ा करना अथवा कानून व्यवस्था में व्यवधान बनना तो था ही नहीं. हमारी राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी बस इतना चाहती थी कि, बांग्लादेशी हुकूमत के कान और आंख खोलने के लिए बांग्लादेश उच्चायोग की ओर कूच करना जरूरी है. ताकि बांग्लादेश के अंधे बहरे गूंगे मौजूदा हुक्मरानों की आंखों पर पड़े पट्टों को उतार कर उनके कान खोले जा सके. हमने हमारी पार्टी ने तो अंहिसात्मक यानी शांति का रास्ता अख्तियार किया था. वरना याद करिए वह दिन जब इसी दिल्ली में अंग्रेजों के कान खोलने के लिए कभी शहीद भगत सिंह ने तो भरी असेंबली में बम तक फोड़ डाला था.”

"मैं अकेली नहीं, मेरे साथ लश्कर था"

जब भारत जैसे विशाल देश में किसी भी बड़े से बड़े नेता, और बात बात पर इस्लाम-कुरान की बात करने वाले मुल्ला-मौलवी की जुबान बांग्लादेश में हिंदुओं के ऊपर ढहाए जा रहे जुल्मों पर नहीं खुल रही है. सब बिलों में दुबके बैठे हैं. तब ऐसे में आप जैसी एक मुस्लिम महिला कैसे अकेले ही नई दिल्ली में स्थित बांग्लादेशी उच्चायोग की ओर कूच करने की हिम्मत जुटा सकीं? पूछने पर शबनम रोशन फाजिल खान कहती हैं, “नहीं मैं अकेली नहीं थी. मेरे साथ दिशा और खुला मार्ग दर्शन मेरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का था. साथ ही उस दिन के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में मेरे साथ पार्टी के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ए के बाजपेयी, हमारी राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पंकज नंदा, पृथ्वी सिंह जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता भी थे. वह प्रदर्शन किसी पॉलिटिकल पार्टी विशेष या शबनम फाजिल खान का एजेंडा भर नहीं था.

'शोर मचाना हमारा मकसद नहीं'

शबनल फाजिल खान ने कहा कि यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन सिर्फ भारत की ओर से बांग्लादेश की आंखें खोलने और उसके मक्कार हुक्मरानों को यह बताने के लिए था कि, मोदी और बीजेपी या भारत अपने भारतीयों को दुनिया भर में सुरक्षित रखने के मुद्दे पर कभी सोता नहीं है. खामोशी के साथ बस हम जवाब देने के लिए और अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का हिसाब बराबर करने के लिए सही वक्त का इंतजार करते हैं. जैसा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब के रूप में पाकिस्तान के ऊपर किया गया ऑपरेशन सिंदूर.

"आज हिंदू तो कल मुल्ला-मौलवी फंसेंगे"

कहते हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है. तब फिर ऐसे में कैसे अकेली शबनम रोशन फाजिल खान या उनकी एक अदद राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी बांग्लादेश की आंखें खोल सकती है? आपकी पार्टी के विरोधी इसे एक ‘पब्लिसिटी स्टंट’ बताते हैं. पूछने पर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष (महिला विंग) शबनम बोलीं, “यह वे मुल्ला मौलवी ही कहते हैं जो सिर्फ अपने अपने चंद निजी स्वार्थों के लिए सिर्फ और सिर्फ फतवेबाजी, हलाला कराओ मौज लूटो, के सिद्धांत पर बीते कई दशक से इस्लाम को बदनाम करने की जद्दोजहद से जूझ रहे हैं. इन मुल्ला मौलवियों का यही हाल रहा और अगर यह वक्त रहते नहीं सुधरे तो देखते जाइए वह दिन दूर नहीं है जब, जैसे आज बंग्लादेश में बेबस बेकसूर अल्पसंख्यक हिंदू मारे काटे जा रहे हैं. आने वाले वक्त में उससे भी बुरी तरह से मारकाट का नंबर इस्लाम को न मानने वाले इन्हीं मुल्ला-मौलवियों का लग जाए.

तो बांग्लादेश न हिला होता....

मंगलवार को दिल्ली में स्थित बांग्लादेशी उच्चायोग की ओर हमारा बढ़ना अगर सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट भर होता तो सोचिए फिर क्यों कैसे और क्या उसके चंद घंटे बाद ही ढाका (बांग्लादेश) में स्थित भारत के उच्चायोग में मौजूद भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को वहां की हुकूमत द्वारा बुलाया गया होता? जैसे ही हम लोगों द्वारा दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग की ओर कूच करने की खबर ब-जरिए मीडिया चंद मिनटों में बांग्लादेश पहुंची, वहां की अंधी गूंगी बहरी बनी बैठी बांग्लादेशी हुकूमत के हुक्मरानों ने तुरंत भारतीय उच्चायुक्त को दिल्ली में बांग्लादेशी उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर किए रहे इंतजामों की जानकारी के लिए वहां बुला लिया. मतलब दिल्ली में स्थित बांग्लादेश उच्चायोग की ओर हमारे कूच करने की आवाज किसी धमाके की तरह बांग्लादेश के हुक्मरानों के कानों तक जा पहुंची. तो फिर ऐसे में हमारी यह कोशिश पब्लिसिटी स्टंट कैसे और कौन कह सकता है?

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