गुजरात में केजरीवाल, बिहार में प्रशांत किशोर, मिशन एक, मैदान अलग! क्या दोनों का सियासी फॉर्मूला भी एक है?

अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर देश की राजनीति में अलग-अलग पेशे से आए हैं, लेकिन गुजरात में अरविंद केजरीवाल और बिहार में प्रशांत किशोर का मकसद एक ही है. और वो है सत्ता की नई इबारत लिखना. बहुत हद तक दोनों का सियासी स्टाइल भी एक समान ही है. क्या इनका मिशन, माइक्रो लेवल रणनीति और जनता से जुड़ने का फार्मूला एक जैसा है? आइए जानते हैं इन दो सियासी यात्राओं में क्या है समानता?;

( Image Source:  ANI )
By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 27 July 2025 4:24 PM IST

आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की अब गुजरात से तो जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर का सियासी लक्ष्य बीजेपी और एनडीए को बिहार की सत्ता से बेदखल करने की है. केजरीवाल गुजरात में जमीनी स्तर पर सत्ता के किले में सेंध लगाने की कोशिश में जुटे हैं, तो बिहार में प्रशांत किशोर 'जन सुराज' के सहारे जनमानस का भरोसा जीतने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. दोनों भारतीय राजनीति के दो अलग-अलग चेहरे हैं, दो अलग-अलग राज्य से ताल्लुक रखते हैं, पर  देश की राजनीति को बदलने का मिशन और जज्बा लगभग एक जैसा है?

दोनों के बीच किन-किन मसलों पर समानता

जमीनी कैंपेनिंग का फॉर्मूला

अरविंद केजरीवाल हों या प्रशांत किशोर, दोनों ने पार्टी कैडर के बजाय सीधे जनता से संवाद की नीति अपनाई है. डोर टू डोर कैंपेन, पब्लिक इंटरेक्शन, और गांव-गांव जाकर लोगों की समस्या सुनना दोनों के प्रचार की रीढ़ बन चुका है.

वैकल्पिक राजनीति

अरविंद केजरीवाल भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभरे हैं, तो प्रशांत किशोर भी आरजेडी-जदयू जैसे पारंपरिक दलों को चुनौती दे रहे हैं. दोनों नेताओं का दावा है कि वे नई राजनीति लाने इस क्षेत्र में आए हैं. जहां विकास और जवाबदेही हो, जाति और धर्म नहीं.

सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी 

आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की डिजिटल कैंपेनिंग पहले से ही मॉडल बन चुकी है और प्रशांत किशोर भी इस तकनीक से लैस माइक्रो-प्लानिंग के लिए जाने जाते हैं. सोशल मीडिया पर दोनों मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं. खासतौर से दोनों का लक्ष्य युवाओं को अपने पक्ष में करने की है.

चेहरा बनाम संगठन

गुजरात में AAP का चेहरा खुद अरविंद केजरीवाल हैं. जबकि बिहार में जन सुराज की पहचान खुद प्रशांत किशोर हैं. दोनों ही सियासत में संगठन से पहले व्यक्तिगत छवि को आगे रखते हैं. यह एक ट्रेंड है जो भारत की नई राजनीति में लगातार मजबूत हो रहा है.

चुनौतियां और फर्क

गुजरात में AAP को मोदी-शाह के किले में सेंध लगानी है, वहीं पीके को बिहार की जटिल जातीय राजनीति और महागठबंधन की पकड़ से निपटना है. एक के पास पार्टी और अनुभव है, दूसरे के पास रणनीति और नेटवर्क है.

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