पढ़ी लिखी हो भीख मत मांगो...पत्नी ने मांगा एलिमनी में BMW, फ्लैट और 12 करोड़ रुपये, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने सीआरपीसी की धारा 125 पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जो महिलाएं शिक्षित हैं और जिनके पास अच्छा अनुभव है, वे केवल भरण-पोषण पाने के लिए अपने करियर की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं.;
नई दिल्ली से उठती एक अहम आवाज़ में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान महिलाओं की आत्मनिर्भरता और कमाई की क्षमता पर जोर देते हुए बेहद तीखी और स्पष्ट टिप्पणी की है. मामला एक उच्च शिक्षित महिला द्वारा अपने पति से ₹12 करोड़ के अंतरिम भरण-पोषण और मुंबई में एक फ्लैट की मांग से जुड़ा था, जिससे नाराज़ होकर अदालत ने महिला की नीयत और उसकी मांगों पर सवाल उठाए. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जो उस खंडपीठ का नेतृत्व कर रहे थे, ने दो टूक कहा, 'आप इतनी पढ़ी-लिखी हैं...आपको खुद के लिए कमाना चाहिए, मांगना नहीं चाहिए.'
उन्होंने आगे कहा, 'जब आप आईटी क्षेत्र में काम कर चुकी हैं, एमबीए कर चुकी हैं, और बेंगलुरु व हैदराबाद जैसे शहरों में आपके लिए मौके हैं, तो आप क्यों नहीं काम करतीं?.' यह तीखी टिप्पणी उस वक्त आई जब महिला ने अदालत से यह दावा किया कि चूंकि उसका पति काफी अमीर है और वह शादी को ही अमान्य घोषित करना चाहता है, इसलिए वह गुजारा भत्ता और एक आलीशान लाइफस्टाइल की हकदार है. यही नहीं, महिला ने एक BMW कार तक की मांग रख दी.
18 महीने चली शादी
इस पर सीजेआई ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा, 'आपकी शादी सिर्फ 18 महीने चली और अब आप बीएमडब्ल्यू भी चाहती हैं?.' उन्होंने स्पष्ट किया कि या तो महिला को एक उचित फ्लैट मिलेगा और जीवन दोबारा शुरू करने का मौका मिलेगा, या फिर कोई राहत नहीं. अदालत ने इस पर भी गौर किया कि कानून का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा देना है, लेकिन यह उनके आलस और आर्थिक निर्भरता को प्रोत्साहित नहीं करता. यह पहला मामला नहीं है जब अदालत ने इस तरह के सख्त विचार रखे हों.
कानून ऐसी औरतों को मान्यता नहीं देता
इसी साल मार्च में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी एक मामले में समान भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा था कि कानून का उद्देश्य भरण-पोषण के नाम पर आलस्य को बढ़ावा देना नहीं है.' न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने सीआरपीसी की धारा 125 पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जो महिलाएं शिक्षित हैं और जिनके पास अच्छा अनुभव है, वे केवल भरण-पोषण पाने के लिए अपने करियर की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं. दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार की मांगे उन महिलाओं के लिए अनुचित हैं, जिनमें कमाई की क्षमता, शिक्षा और पेशेवर अनुभव मौजूद है. अदालत ने यह भी कहा कि न्यायालय ऐसी किसी स्थिति को मान्यता नहीं दे सकता जहां कोई महिला जानबूझकर आलसी और बेबस बनी रहे, केवल इसलिए कि उसे पति से पैसे मिल रहे हैं.
लाचारी का फायदा नहीं उठाने देंगे
इस पूरी बहस के केंद्र में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या उच्च शिक्षित और वर्किंग महिलाएं सिर्फ इस आधार पर भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं कि उनका जीवनसाथी समृद्ध है? सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट दोनों ने साफ कर दिया है कि कानून की मंशा किसी की आर्थिक लाचारी का फायदा उठाने की अनुमति नहीं देती, बल्कि वह आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करता है.