बॉर्डर छोड़कर भागी पाकिस्तानी सेना, तालिबान ने तोरखम सीमा पर कब्जे का किया दावा
तोरखम बॉर्डर पर इन दिनों पाकिस्तान और तालिबान के बीच तनाव चरम पर है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान ने तोरखम सीमा पर कब्जा करने का दावा किया है, जिससे पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. भारी गोलीबारी के बीच यह संघर्ष और तेज हो गया है.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तोरखम बॉर्डर पर तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान ने सीमा पर कब्जा करने का दावा किया है, जिससे भारी गोलीबारी हुई और हालात बिगड़ने के कारण पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा.
न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की वजह से तोरखम में हालात तनावपूर्ण हो गए हैं. दो दिन पहले पाकिस्तान और अफगान बलों के बीच फायरिंग शुरू हो गई, जिसका कारण अफगानिस्तान द्वारा नई सीमा चौकी का निर्माण बताया जा रहा है. यह विवाद एक सप्ताह से अधिक समय से चल रहा था, जिसके कारण बॉर्डर क्रॉसिंग भी बंद थी.
गोलीबारी के पीछे क्या है वजह?
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, तालिबान की कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी सेना को बॉर्डर से हटना पड़ा. हालांकि, इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच तनाव खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. तोरखम बॉर्डर दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए इस विवाद का बढ़ना क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान इस स्थिति को कूटनीतिक तरीके से हल कर पाता है या संघर्ष और बढ़ता है.
अफगान सुरक्षाकर्मियों ने कथित तौर पर सीमा पर नई चौकियों और बंकरों जैसी संरचनाएं बनाई हैं, जिसे पाकिस्तान ने पिछले समझौतों का उल्लंघन बताया है. पाकिस्तान इस क्षेत्र को अपना क्षेत्र मानता है, जिससे दोनों देशों के बीच विवाद और बढ़ गया है. इस स्थिति के चलते पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद कर दिया, जिससे व्यापार और आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
पाकिस्तान ने साधी चुप्पी
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान अफगानिस्तान पर आतंकवाद फैलाने का गलत आरोप लगा रहा है. हालांकि, सीमा बंद होने से सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान पाकिस्तान को हो रहा है, जिससे उसे रोजाना भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. पाकिस्तान और अफगान सेना के बीच अक्सर गोलीबारी होती रहती है, खासकर डूरंड रेखा के आसपास, जो 2,400 किलोमीटर लंबी सीमा है. इस रेखा को 1896 में ब्रिटिश हुकूमत ने खींचा था, लेकिन काबुल इस सीमा को अब भी विवादित मानता है.