वाशिंगटन में जश्न, दिल्ली में टेंशन- जनरल मुनीर के बाद एयर चीफ भी पहुंचे व्हाइट हाउस! क्या फिर पाकिस्तान की ओर झुक रहा अमेरिका?
पाकिस्तानी एयर चीफ की अमेरिका यात्रा और इससे पहले सेना प्रमुख की ट्रंप से मुलाकात यह संकेत देती है कि अमेरिका फिर से पाकिस्तान की सैन्य स्थापना के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा है. यह भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव का संकेत मिलता है. खासकर अफगानिस्तान और ईरान को लेकर अमेरिका को पाकिस्तान की भू-रणनीतिक भूमिका फिर से अहम लगने लगी है. इससे भारत की क्षेत्रीय प्राथमिकता और क्वाड में उसकी भूमिका पर असर पड़ सकता है.

US-Pakistan defence ties: एक दशक में पहली बार, पाकिस्तान के वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल जाहिर अहमद बाबर सिधू ने आधिकारिक अमेरिकी दौरा किया, जहां उन्होंने पेंटागन, स्टेट डिपार्टमेंट और कैपिटल हिल में उच्च स्तरीय बैठकें कीं. इस यात्रा का उद्देश्य अमेरिका-पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग को और मजबूत करना था. यह दौरा ऐसे वक्त पर हुआ, जब कुछ हफ्ते पहले ही पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ लंच किया था. इन दो दौरों के समय और प्रतीकात्मकता से संकेत मिलता है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं की पुनर्समीक्षा कर सकता है.
अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों में नया मोड़ क्यों?
पिछले एक दशक से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध ठंडे रहे. अमेरिका की रणनीति भारत की ओर झुक गई थी, जिसे चीन के प्रभाव को संतुलित करने वाला सहयोगी माना गया. वहीं पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर CPEC जैसी परियोजनाओं में शामिल रहा, जिससे अमेरिका के हितों के साथ उसका टकराव हो गया, लेकिन अब वाशिंगटन में पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व के लिए खोले गए दरवाजे इस समीकरण में बदलाव का संकेत दे रहे हैं. एयर चीफ सिधू की यात्रा ऐसे वक्त में हुई, जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी अमेरिका दौरे पर हैं. यह अमेरिका की रणनीति में ‘रणनीतिक अस्पष्टता’ (strategic ambiguity) की वापसी का संकेत है, जिससे वह भारत को पूरी तरह चीन से संतुलन साधने की स्थिति में मजबूर कर सके.
अमेरिका को क्यों फिर से चाहिए पाकिस्तान?
पाकिस्तान की सेना इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) के खिलाफ अभियान चला रही है, जो अफगानिस्तान से फैली है और अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय है. अमेरिका अफगानिस्तान से वापसी के बाद नए आतंकवाद-रोधी साझेदार की तलाश में है, और पाकिस्तान उसकी रणनीति में फिर अहम भूमिका निभा सकता है. साथ ही ईरान को लेकर अमेरिका की चिंताओं के बीच पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति और हवाई मार्ग तक उसकी पहुंच वाशिंगटन के लिए महत्वपूर्ण बन जाती है.
भारत के लिए क्या है खतरा?
भारत के लिए इस घटनाक्रम में कई खतरे निहित हैं. अमेरिका के साथ भारत की ‘विशेष रणनीतिक साझेदारी’, जिसमें रक्षा सहयोग, तकनीकी साझेदारी और खुफिया आदान-प्रदान शामिल है, को झटका लग सकता है, यदि अमेरिका पाकिस्तान को समान साझेदार के रूप में पेश करता है. इससे भारत की क्षेत्रीय प्राथमिकता कमज़ोर हो सकती है. इसके अलावा, पाकिस्तान की कमजोर लोकतांत्रिक व्यवस्था और आर्थिक संकट के बीच अगर उसे अमेरिका का सैन्य समर्थन फिर से मिलने लगता है, तो पाकिस्तानी सेना और वायुसेना और अधिक हावी हो सकती हैं. इसका सीधा असर भारत के खिलाफ उनकी आक्रामक रणनीति पर पड़ सकता है- खासकर कश्मीर और एलओसी पर.
यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यह एक पूर्ण रणनीतिक बदलाव है, लेकिन अमेरिका की ओर से पाकिस्तान की सेना के प्रति यह नया रुझान भारत के लिए चेतावनी है. भारत को अब एक ऐसी क्षेत्रीय रणनीति बनानी होगी, जहां वह चीन और अमेरिका दोनों के बीच संतुलन बनाकर अपनी कूटनीतिक और सामरिक स्थिति को मज़बूत बनाए रख सके.