सुन लें अयातुल्ला खामेनेई, आप सद्दाम हो भी नहीं सकते! दोनों के बीच है जमीन-आसमान का अंतर
ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर जारी है. दोनों पक्षों के बीच समझौता वार्ता को लेकर दबाव की राजनीति पर चरम पर है. इस बीच खामेनेई ने अमेरिका को साफ संकेत दिए हैं कि वो झुकने वाले नहीं हैं. खामेनेई की हत्या इतना आसान भी नहीं है. उन्हें ट्रंप सद्दाम हुसैन समझने की भूल न करें. आइए, देखतें हैं कि खामेनेई और सद्दाम में क्या समानताएं और अंतर हैं...

Saddam Hussein vs Ayatollah Khamenei: ईरान-इजरायल युद्धविराम के बीच ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने अमेरिका को दो टूक संदेश दिया है कि वे झुकने वाले नहीं हैं. खामेनेई की तुलना सद्दाम हुसैन से करने की कोशिशें पश्चिमी राजनीति की पुरानी चाल है, लेकिन खामेनेई का धार्मिक, सामरिक और वैचारिक आधार कहीं ज्यादा गहरा और व्यापक है. ईरान आज केवल एक देश नहीं, बल्कि क्षेत्रीय रणनीतिक शक्ति है जो अमेरिका और इजरायल की नीतियों को चुनौती देता है. ऐसे में ट्रंप द्वारा खामेनेई को ‘सद्दाम’ समझना एक घातक भूल हो सकती है.
ऐसे में सवाल है कि क्या खामेनेई की तुलना सद्दाम हुसैन से करना सही है और क्या वे सद्दाम हो सकते हैं. आइए, इस बारे में विस्तार से जानते हैं...
क्या खामेनेई सद्दाम हुसैन हो सकते हैं? एक ऐतिहासिक तुलना
सद्दाम हुसैन इराक का तानाशाह था. वह 1979 से लेकर 2003 तक राष्ट्रपति रहा. वह अमेरिका का कभी सहयोगी था, लेकिन बंद में दुश्मन नंबर एक बन गया. 1990 में कुवैत पर हमला कर सद्दाम ने खुद के ताबूत पर कील ठोंक दी. 2003 में अमेरिका ने "Weapons of Mass Destruction" के बहाने इराक पर हमला किया. सद्दाम को तानाशाही, दमन और जुल्म का प्रतीक बना दिया गया. उसे अंत में 2006 में फांसी पर लटका दिया गया.
अयातुल्ला खामेनेई ईरान के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता हैं. वे 1989 से लेकर अब तक इस पद पर कायम हैं. वे अमेरिका और इजराइल के कट्टर आलोचक हैं. उनका शासन विचार आधारित "विलायत-ए-फकीह" चलता है. खामेनेई कट्टर इस्लामिक व्यवस्था के समर्थक हैं. उनका प्रभाव लेबनान (हिजबुल्लाह), गाजा (हमास), यमन (हूती), इराक और सीरिया तक है.
खामेनेई और सद्दाम हुसैन में क्या समानताएं हैं?
- दोनों अमेरिका-विरोधी
- दोनों ने इजरायल को खुली चुनौती दी
- दोनों को CIA और मोसाद से खतरा
- दोनों के लिए पश्चिमी मीडिया में 'डिक्टेटर' की छवि गढ़ी गई
खामेनेई और सद्दाम हुसैन में क्या अंतर है?
सद्दाम अकेला था, जबकि खामेनेई का धार्मिक नेटवर्क मजबूत है. सद्दाम ने अमेरिका से सीधे टकराव किया, खामेनेई 'प्रॉक्सी वार' से लड़ते हैं. सद्दाम के पास नैतिक वैधता नहीं थी, खामेनेई के पास एक विचारधारा है. सद्दाम शिया विरोधी था, जबकि खामेनेई शिया नेता है, जिन्हें पूरे मुस्लिम शिया समुदाय का समर्थन हासिल है.
ईरान-इजरायल युद्ध: मौजूदा हालात
गाजा और लेबनान में झड़पें रुकी हुई हैं, लेकिन टकराव किसी भी वक्त फिर से भड़क सकता है. अमेरिका और यूरोपीय संघ सीजफायर को स्थायी बनाने की कोशिश में जुटे हैं. खामेनेई का कहना है कि इजराइल को खत्म करना ही हमारा अंतिम लक्ष्य है. वहीं, अमेरिका इशारा कर रहा है कि खामेनेई को 'सद्दाम मॉडल' में फिट किया जा सकता है
क्या खामेनेई अगला निशाना हो सकते हैं?
अमेरिका-इजरायल खुफिया तंत्र पहले ही ईरान के भीतर साइबर हमलों, ब्लैकआउट और वैज्ञानिक हत्याओं में सक्रिय रहे हैं. खामेनेई की हत्या की आशंका को वह खुद भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार चुके हैं, लेकिन ईरान अब 1980 का ईरान नहीं है, उसके पास ड्रोन, मिसाइल, साइबर हथियार और प्रॉक्सी शक्तियां हैं.
खामेनेई का संदेश: “मैं सद्दाम नहीं हूं, मेरे साथ खेलोगे तो भुगतोगे”
खामेनेई की नीति स्पष्ट है- प्रतिरोध और आत्मबलिदान. जहां सद्दाम अमेरिका के सामने झूठी ताकत दिखाकर गिर गया, वहीं खामेनेई धीरे-धीरे अमेरिका के चारों तरफ जाल बुनते जा रहे हैं.
खाड़ी में नया युद्ध या नया संतुलन?
ईरान-इजरायल युद्ध और खामेनेई पर अंतरराष्ट्रीय दबाव से ये स्पष्ट है कि दुनिया एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है. खामेनेई को अगर सद्दाम समझने की भूल की गई, तो परिणाम पूरे मिडिल ईस्ट को चीर सकते हैं.