नेपाल के नए 100 रुपये के नोट पर बवाल, क्या है पूरा विवाद? जयशंकर बोले - 'नक्शा बदलने से...'
नेपाल ने अपने नए 100 रुपये के नोट पर कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा वाला मैप दिखाकर पांच साल पुराने सीमा विवाद को नया मोड़ दे दिया. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसके जवाब में कहा कि नोट पर नया नक्शा लगा देने से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाती. नेपाल के इस रुख से दोनों देशों के बीच एक बार फिर सीमा विवाद गहरा गया है.
पूरा विवाद क्या है?
नेपाल ने 27 नवंबर 2025 को नए 100 रुपये के नोट जारी किए जिन पर देश का संशोधित मैप छपा है. इस मानचित्र में विवादित क्षेत्र यानी Kalapani, Lipulekh और Limpiyadhura को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है. नेपाल राष्ट्र बैंक (NRB) के नए नोट पर पूर्व गवर्नर महा प्रसाद अधिकारी के सिग्नेचर हैं. बैंकनोट पर जारी होने की तारीख 2081 BS है, जो साल 2024 के बराबर है.
भारत-नेपाल के बीच ये इलाके विवादित क्यों?
भारत और नेपाल के बीच ये वे इलाके हैं जिन्हें भारत खासकर उत्तराखंड राज्य अपना मानता है. 2020 में नेपाल सरकार ने एक नया राजनीतिक नक्शा पेश किया था, जिसमें इन इलाकों को शामिल किया गया था. भारत ने उस कदम को एकतरफा और कृत्रिम विस्तार बताया था.
नोट पर क्यों दिखाया ऐसा नक्शा?
नेपाल का दावा है कि पुरानी मुद्रा नोट पर पुराने मानचित्र छपे थे और अब उन्होंने नक्शा अपडेट करते हुए नया नोट जारी किया है. हालांकि, विवादित इलाकों को जोड़ना भारत–नेपाल सीमा विवाद को आसान बना देता है.
विदेश मंत्रालय का रिएक्शन
भारत ने इसे एक पक्षीय और अतिवादी कदम बताते हुए नई नोट छपाई की निंदा की है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि सीमाओं का विवाद बातचीत से हल होना चाहिए. नोट पर नक्शा बदलने से जमीन पर वास्तविकता नहीं बदलेगी.
सीमावर्ती क्षेत्र में आर्थिक और व्यापार पर होगा असर
नेपाल–भारत सीमा वाले इलाकों में विशेषकर उत्तराखंड के धारचूला जैसे कस्बों में स्थानीय व्यापारियों ने कहा है कि वे विवादित नोट स्वीकार नहीं करेंगे. इससे दोनों देशों के बीच रोजमर्रा के लेन-देन पर असर पड़ सकता है.
राजनीतिक एवं कूटनीतिक नतीजे
यह कदम Nepal के लिए घरेलू स्तर पर राष्ट्रीयता और सार्वभौमिकता का संदेश हो सकता है. वहीं भारत–नेपाल संबंधों में विश्वास और सहमति की चुनौतियां बढ़ सकती हैं, क्योंकि यह unilateral कार्रवाई मानी जा रही है.
नोट की प्रिंटिंग और अंतरराष्ट्रीय भूमिका
विवाद में यह बात भी आ रही है कि नया नोट चीन की एक कंपनी द्वारा प्रिंट किया गया है. इस कारण से कुछ विश्लेषक इसे geo-political संकेत भी मान रहे हैं. बता दें कि 2020 में भी Nepal-भारत के बीच सीमा विवाद सुर्खियों में रहा था. 5 साल में यह घटना दोनों देशों के संबंधों में नया मोड़ है. नोट पर नक्शा एक स्थायी दस्तावेज की तरह देखा जाता है. इससे दोनों देशों के बीच पुनः तनाव की संभावना बनी है.
NRB के एक स्पोक्सपर्सन के हवाले से पीटीआई ने बताया कि यह मैप पहले से ही पुराने ₹100 के बैंकनोट पर था और सरकार के फैसले के हिसाब से इसे बदल दिया गया है. उन्होंने साफ किया कि ₹10, ₹50, ₹500, और ₹1,000 जैसे अलग-अलग वैल्यू के बैंक नोटों में से सिर्फ ₹100 के करेंसी नोट पर नेपाल का मैप है.
ओली सरकार ने जारी किया था पॉलिटिकल मैप
मई 2020 में, के पी शर्मा ओली की सरकार ने एक नया पॉलिटिकल मैप जारी किया था, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाकों को नेपाल का इलाका दिखाया गया. बाद में नेपाली संसद ने इस कदम को मंजूरी दे दी थी. भारत ने इस 'एकतरफा काम' को अमान्य करार दिया था. यह कहता रहा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा भारतीय इलाके हैं.
2024 में जब काठमांडू ने 100 रुपये के नए करेंसी नोट की छपाई की घोषणा की तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि नेपाल के अपने करेंसी नोट में भारतीय इलाकों को शामिल करने के कदम से स्थिति या जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी. हमारी स्थिति बहुत साफ है. नेपाल के साथ हम एक स्थापित प्लेटफॉर्म के जरिए अपने सीमा मामलों पर चर्चा कर रहे हैं. नेपाल और भारत के बीच बॉर्डर 1,850 km से ज्यादा लंबा सीमा है, जो भारत के पांच राज्यों सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को जोड़ता है.
लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा विवाद
ये तीनों क्षेत्र भारतीय हैं. नेपाल का यह नया नोट गुरुवार से चलन में आया. वहीं भारत ने इस कदम को विस्तारवादी करार दिया है.तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान नेपाल ने मई 2020 में संसद के अनुमोदन के माध्यम से कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को शामिल करते हुए मानचित्र को अपडेट किया था.
4 मार्च 1816 से लागू हुई सुगौली संधि
भारत और नेपाल के बीच 2 दिसंबर 1815 को दोनों पक्षों के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे सुगौली संधि कहा जाता है. यह संधि बिहार के चंपारण जिले के सुगौली नामक स्थान पर की गई थी. कंपनी की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडश और नेपाल की ओर से राजगुरु गजराज मिश्र ने इस पर हस्ताक्षर किए. दिसंबर 1815 में दस्तखत होने के बावजूद यह संधि औपचारिक रूप से 4 मार्च 1816 से लागू मानी गई. इस समझौते ने नेपाल की सीमाओं को हमेशा के लिए बदल दिया.
सिक्किम, गढ़वाल और कुमाऊं पर उसे अपना दावा छोड़ना पड़ा. युद्ध से पहले नेपाल का विस्तार पश्चिम में सतलज नदी तक और पूर्व में तीस्ता नदी तक फैल गया था, लेकिन सुगौली संधि के बाद वह पश्चिम में महाकाली और पूर्व में मैची नदी तक सीमित हो गया. इसने नेपाल के आधुनिक भौगोलिक स्वरूप को स्थायी रूप से तय कर दिया.
भारत-नेपाल सीमा पर 54 जगह विवाद
सुगौली संधि ने यह तो तय कर दिया था कि नेपाल की सीमाएं पश्चिम में महाकाली नदी और पूर्व में मैची नदी तक रहेंगी, लेकिन संधि में इन सीमाओं की स्पष्ट रेखांकन नहीं किया गया. यही अस्पष्टता बाद के वर्षों में दोनों देशों के लिए समस्या का आधार बनी. नदी किस हिस्से से गुजरती है, उसका मूल स्रोत कहां है और किस दिशा में उसका प्रवाह सीमा रेखा को प्रभावित करता है. इन सवालों के स्पष्ट उत्तर उस समय दस्तावेज में दर्ज नहीं किए गए थे.
इसी अधूरे विवरण की वजह से आज भारत और नेपाल की सीमा पर लगभग 54 स्थान ऐसे हैं जहां समय-समय पर विवाद पैदा होता रहता है. कालापानी-लिम्प्याधुरा, सुस्ता, मैची घाटी, टनकपुर, संदकपुर, पशुपतिनगर और हिले-थोरी जैसे क्षेत्र अक्सर चर्चा में रहते हैं. अनुमान है कि इन विवादित हिस्सों का कुल क्षेत्रफल करीब 60 हजार हेक्टेयर के आसपास हो सकता है. विवाद की जड़ यही है कि दोनों देशों ने संधि की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की है.





