अमेरिका के बंकर बस्टर का कहर! फोर्डो में तबाही, कैसे ट्रंप ने ईरान के न्यूक्लियर पावर का सपना किया चकनाचूर?
ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका की एंट्री ने एक नया मोड़ ले लिया है. यूएस के बंकर बस्टर का कहर फोर्डो से लेकर इस्फ़हान तक तबाही मचा चुका है. ये जगहें ईरान के परमाणु डेवलेपमेंट का गढ़ मानी जाती हैं. अब इस हमले के चलते ईरान के न्यूक्लियर पावर का सपना टूट चुका है.

इजरायल और ईरान की जंग में अब अमेरिका ने मैदान में उतरकर बड़ा धमाका कर दिया है, जिसकी दुनिया को आशंका थी, अब वो हकीकत बन चुकी है. अमेरिका ने सीधे ईरान के तीन सबसे अहम परमाणु स्थलों नतांज, फोर्डो और इस्फहान पर धावा बोला है. ये वो ठिकाने हैं जिन्हें ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम की रीढ़ की हड्डी माना जाता था.
सीधे शब्दों में कहें तो ये हमले केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि ईरान के परमाणु भविष्य को सालों पीछे धकेलने की साज़िश हैं. अमेरिका ने दावा किया है कि इन हमलों के बाद अब ये तीनों साइट्स पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं. अब ऐसे में जानते हैं यूएस ने ईरान के न्यूक्लियर कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी कैसे तोड़ी.
'बंकर बस्टर' का कहर
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस ऑपरेशन में अमेरिका ने GBU-57A/B मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) बम का इस्तेमाल किया, जिसे बंकर बस्टर कहा जाता है. यह सिर्फ एक बम नहीं, बल्कि एक उड़ता हुआ तबाही का औज़ार है. इसका वजन करीब 14,000 किलोग्राम है. इसे खास तौर पर ऐसे बंकरों को ध्वस्त करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो जमीन के 60 मीटर नीचे तक बने होते हैं. इस ऑपरेशन में कम से कम 6 ऐसे बम गिराए गए हैं. जब ये बम अपने निशाने तक पहुंचे, तो सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि ईरान के वर्षों की वैज्ञानिक मेहनत भी मलबे में बदल गई.
कितनी गहराई तक मार करता है ये बम?
इसकी वास्तविक क्षमताओं को लेकर भले ही अलग-अलग आंकड़े हों, लेकिन सभी एक बात पर सहमत हैं कि ये बम बेहद घातक है. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, MOP 200 फीट मोटी कंक्रीट को भेद सकता है. दूसरी रिपोर्टों में कहा गया है कि यह 60 मीटर तक की ठोस कंक्रीट, 40 मीटर तक की कठोर चट्टान और 8 मीटर यानी लगभग 3 मंज़िल जितनी गहराई की 10,000 PSI ताकत वाली मजबूत कंक्रीट को भी तोड़ सकता है.
ईरान का जवाब
हमले के बाद ईरान ने एक शुरुआती बयान में कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम जारी रहेगा, लेकिन हकीकत ये है कि अगर नतांज, फोर्डो और इस्फहान वाकई खत्म हो चुके हैं, तो अब ईरान के लिए परमाणु बम बनाने का सपना अगले कई वर्षों तक अधूरा ही रहने वाला है.
इजरायल का सपना, अमेरिका की ताकत
दरअसल, इजरायल अकेले इन अत्यधिक संरक्षित ठिकानों को खत्म करने की क्षमता नहीं रखता था. उसने लंबे समय से अमेरिका को इस युद्ध में शामिल होते देखने की उम्मीद पाल रखी थी और जब अमेरिका ने हमले किए, तो ये साफ हो गया कि इजरायल के रणनीतिक उद्देश्यों को अब वैश्विक समर्थन मिल चुका है.