ईरान के पास ऐसा क्या है, जिसके दम पर वह अमेरिका को दे रहा खुली धमकी?
ईरान पर अमेरिकी सैन्य हमले से पहले तेहरान ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को स्लीपर सेल सक्रिय करने की धमकी दी थी. ये स्लीपर सेल अमेरिका में छुपे ऐसे एजेंट होते हैं, जो सामान्य जीवन जीते हैं, लेकिन आदेश मिलने पर आतंकी कार्रवाई कर सकते हैं. अमेरिका की खुफिया एजेंसियां और एफबीआई इस चेतावनी के बाद हाई अलर्ट पर हैं, खासकर हिजबुल्लाह जैसे ईरान समर्थक संगठनों से जुड़े नेटवर्क को लेकर. वहीं, अमेरिका ने ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान स्थित परमाणु ठिकानों पर हमला कर इस संघर्ष को और गहरा कर दिया है.

Iranian sleeper cells threat to US: अमेरिका ने जब हाल ही में ईरान के तीन अहम परमाणु ठिकानों, फोर्डो, नतांज और इस्फहान, पर सैन्य हमला किया, उससे पहले ईरान ने एक गंभीर चेतावनी दी थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को संदेश दिया था कि अगर हमला हुआ, तो अमेरिका में मौजूद 'स्लीपर सेल' को सक्रिय किया जा सकता है. अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां, खासकर व्हाइट हाउस और एफबीआई, इस संभावित खतरे को लेकर हाई अलर्ट पर हैं.
अमेरिका की कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन (CBP) ने कहा है कि इस समय ईरानी स्लीपर सेल का खतरा 'इतिहास में सबसे अधिक' है. हालांकि अभी तक किसी ठोस खतरे की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन एजेंसी ने बताया कि हजारों ईरानी नागरिकों को अमेरिका में गैरकानूनी रूप से प्रवेश करते हुए पाया गया है.
क्या होते हैं स्लीपर सेल?
स्लीपर सेल ऐसे जासूस या आतंकवादी होते हैं जो किसी देश में आम नागरिक की तरह शांत और सामान्य जीवन जीते हैं. ये तब तक पूरी तरह निष्क्रिय रहते हैं, जब तक उन्हें अपने मूल देश से कोई आदेश नहीं मिलता. आदेश मिलते ही वे जासूसी, तोड़फोड़ या हमला जैसे काम अंजाम दे सकते हैं.
कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि इन स्लीपर सेल्स का संबंध ईरान समर्थित लेबनानी आतंकवादी संगठन हिज़बुल्लाह से हो सकता है। हिज़बुल्लाह ईरान का करीबी और सक्रिय प्रतिनिधि समूह है. एक स्वतंत्र रिपोर्ट के अनुसार, ईरान पर अमेरिकी हमले से पहले ही एफबीआई प्रमुख काश पटेल ने इन एजेंटों पर निगरानी का आदेश दे दिया था।
ईरान की चेतावनी कब और कैसे दी गई?
एनबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान एक मध्यस्थ के माध्यम से ट्रंप तक यह चेतावनी पहुंचाई थी. यह वही सम्मेलन था, जिसमें सातों शक्तिशाली देशों ने इसराइल को समर्थन देते हुए ईरान को मध्य पूर्व में अस्थिरता का कारण बताया था. इसके कुछ ही दिनों बाद, अमेरिका ने इजराइल के साथ मिलकर ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया, जिससे तनाव और ज़्यादा बढ़ गया.