चीन से लेकर अमेरिका तक... शहबाज के साथ हर जगह मुनीर, पाकिस्तान में सत्ता का असली मालिक कौन?
पाकिस्तान की सियासत में नया समीकरण उभर रहा है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के विदेशी दौरों में हर जगह सेना प्रमुख आसिम मुनीर की मौजूदगी ने साफ किया कि असली ताकत अब नागरिक सरकार के हाथ में नहीं बल्कि सेना के पास है. अमेरिका, सऊदी अरब और चीन तक मुनीर की भागीदारी से यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति पूरी तरह सेना के नियंत्रण में है. नागरिक नेतृत्व का दायरा सीमित होता जा रहा है.

पाकिस्तान में एक बार फिर यह बहस तेज हो गई है कि असली हुकूमत किसके हाथ में है. चुनी हुई सरकार के या वर्दीधारी जनरलों के. हाल के हफ्तों में पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर की हर बड़े कूटनीतिक मंच पर मौजूदगी ने इस सवाल को और गहरा दिया है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की विदेश यात्राओं से लेकर रणनीतिक बैठकों तक, मुनीर की मौजूदगी ने यह संकेत दिया है कि पाकिस्तान की विदेश नीति में सेना की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक हावी हो चुकी है.
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का हालिया विदेश दौरा सऊदी अरब, ब्रिटेन और अमेरिका तक फैला रहा. दिलचस्प बात यह रही कि हर जगह उनके साथ आर्मी चीफ मुनीर भी मौजूद थे. रियाद में दोनों ने मिलकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से रक्षा समझौते पर मुहर लगाई. समझौते में यह प्रावधान रखा गया कि किसी एक देश पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा. इसे पाकिस्तान की कूटनीति में सेना की सीधी घुसपैठ का सबूत माना जा रहा है.
अमेरिका में बढ़ता आर्मी चीफ का कद
22 से 26 सितंबर तक अमेरिका में हुए कार्यक्रमों में भी मुनीर की मौजूदगी सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मुस्लिम देशों के चुनिंदा नेताओं के साथ विशेष बैठक में मुनीर की भागीदारी ने उनके वैश्विक कद को और मजबूत कर दिया. यह वही मुनीर हैं, जिन्हें ट्रंप ने जून में सीधे व्हाइट हाउस बुलाकर मुलाकात की थी. विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना प्रमुख का इस तरह से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उभरना, पाकिस्तान की सियासत में नागरिक नेतृत्व को और कमजोर करता है.
चीन में भी दिखी सेना की पकड़
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री शरीफ के साथ मुनीर ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात की. इस मुलाकात में रक्षा और सुरक्षा मुद्दों से आगे बढ़कर रणनीतिक और राजनीतिक विषयों पर भी बातचीत हुई. इससे यह धारणा और मजबूत हुई कि पाकिस्तान की कूटनीति अब सीधे तौर पर सेना के हाथों में जा चुकी है.
शरीफ की मजबूरी या सोची-समझी रणनीति?
विशेषज्ञ मानते हैं कि शरीफ सरकार की सीमित ताकत और सेना की महत्वाकांक्षा, दोनों इस नए समीकरण के पीछे की वजह हैं. पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में जहां सरकार आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है, वहीं सेना खुद को "स्टेबल पावर सेंटर" के तौर पर पेश कर रही है. इसीलिए शरीफ के लिए मुनीर की मौजूदगी न केवल मजबूरी है बल्कि एक तरह का सुरक्षा कवच भी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नया संदेश
पाकिस्तान का यह नया मॉडल अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी एक स्पष्ट संदेश दे रहा है कि असली ताकत नागरिक सरकार नहीं बल्कि सेना के पास है. विदेश नीति, रक्षा समझौते और सुरक्षा रणनीति—हर जगह मुनीर की मौजूदगी यह साबित कर रही है कि पाकिस्तान की डोर अब पूरी तरह सेना के हाथों में है.
घरेलू राजनीति पर असर
पाकिस्तान के भीतर भी इस बदलाव के गंभीर असर दिख रहे हैं. विपक्ष लगातार सरकार पर "सेना की कठपुतली" होने का आरोप लगा रहा है. आम जनता के बीच भी यह धारणा गहरी होती जा रही है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया महज दिखावा है और असली फैसले सेना के जनरल ही लेते हैं.
पाकिस्तान का भविष्य किस दिशा में?
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शरीफ सरकार सेना की इस बढ़ती दखलंदाजी को चुनौती दे पाएगी या फिर पाकिस्तान की सियासत हमेशा की तरह "वर्दी के साए" में ही चलती रहेगी. मौजूदा हालात तो यही बता रहे हैं कि पाकिस्तान में असली ताक़त नागरिक हाथों में नहीं बल्कि जनरल आसिम मुनीर और उनकी सेना के पास है.