अमेरिकी सेना में दाढ़ी रखने पर बैन! सिख, मुस्लिम और यहूदी जवानों में चिंता, अश्वेत सैनिकों पर भी पड़ेगा असर?
अमेरिकी रक्षा विभाग की नई ग्रूमिंग नीति ने सिख, मुस्लिम और यहूदी सैनिकों के धार्मिक अधिकारों को चुनौती दी है. दाढ़ी और पगड़ी जैसी धार्मिक पहचान पर प्रतिबंध के कारण सेना में अल्पसंख्यक समुदायों में चिंता बढ़ गई है. नई नीति 2010 से पहले के सख्त नियमों पर लौट रही है और अधिकांश धार्मिक छूट को समाप्त कर रही है. सिखों के लिए यह नीति समावेशिता की लड़ाई को प्रभावित कर सकती है, जबकि मुस्लिम और यहूदी सैनिकों के लिए दाढ़ी और पवित्र चिन्हों पर भी असर पड़ सकता है. नीति के नस्लीय और चिकित्सकीय प्रभाव भी चर्चा में हैं. विशेषज्ञ और समुदाय संगठन इस नीति के धार्मिक स्वतंत्रता पर पड़ने वाले प्रभावों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) ने हाल ही में जारी किए गए मेमो के तहत सेना के जवानों को दाढ़ी रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है. रक्षा सचिव पीट हेगसेथ के इस आदेश से सिख, मुस्लिम और यहूदी सैनिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर संकट मंडरा रहा है. नई नीति 2010 से पहले लागू नियमों पर लौटती है, जिसमें दाढ़ी रखना 'सामान्यतः अनुमत नहीं' होगा.
मरीन कॉर्प्स बेस क्वांटिको में वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए हेगसेथ ने "सुपरफिशियल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति" वाले दाढ़ी को समाप्त करने की घोषणा की. इसके बाद पेंटागन ने सभी सैन्य शाखाओं को निर्देशित किया कि धार्मिक छूट सहित अधिकांश दाढ़ी छूट को 60 दिनों के भीतर हटाया जाए. विशेष बलों के लिए स्थानीय आबादी में घुलमिलने हेतु दी जाने वाली अस्थायी छूट को छोड़कर अन्य सभी प्रभावित होंगे.
पिछली छूट और नई नीति में फर्क
सिख सैनिकों को 2017 में दाढ़ी और पगड़ी की स्थायी छूट दी गई थी. मुस्लिम और ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों को भी धार्मिक आधार पर अनुमति मिली हुई थी. जुलाई 2025 में नीति अपडेट की गई थी, लेकिन धार्मिक छूट बरकरार थी. अब नई नीति इन प्रगतिशील बदलावों को उलट रही है और 1981 के सुप्रीम कोर्ट के सख्त ग्रूमिंग नियमों की ओर लौट रही है.
सिख समुदाय में टेंशन
सिख कोअलिशन ने हेगसेथ की नीति पर 'गहरी चिंता और गुस्सा' जताया. संगठन ने कहा कि सिखों के केश और पगड़ी उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. एक सिख सैनिक ने लिखा, "मेरे केश मेरी पहचान हैं. यह समावेशिता के लिए संघर्ष के बाद विश्वासघात जैसा है." सिख अमेरिकी सेना में 1917 से सेवा दे रहे हैं, और अदालतों ने बार-बार उनके धार्मिक अधिकारों को मजबूत किया है.
धार्मिक अधिकार और सैन्य सेवा में असर
सिख सैनिकों ने साबित किया है कि दाढ़ी और पगड़ी उनके सैन्य प्रदर्शन में बाधा नहीं डालती. उन्होंने गैस मास्क और अन्य परीक्षण पास किए हैं. इसके बावजूद नई नीति उनके धार्मिक अधिकारों को चुनौती दे रही है, जो पहली बार 1981 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मान्यता प्राप्त हुए थे.
मुस्लिम और यहूदी सैनिकों पर प्रभाव
यह नीति केवल सिखों तक सीमित नहीं है. मुस्लिम सैनिकों के लिए दाढ़ी धार्मिक दायित्व है, जबकि ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों के लिए पायोट और दाढ़ी पवित्र हैं. काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (सीएआईआर) ने सुरक्षा सचिव को पत्र लिखकर स्पष्टता मांगी है कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता बरकरार रहेगी.
अश्वेत सैनिकों पर भी पड़ेगा असर
अश्वेत सैनिकों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि छद्म फॉलिकुलाइटिस बार्बे (रेजर बंप्स) के कारण चिकित्सकीय छूट स्थायी नहीं रहेगी. इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यह नीति नस्ल और धर्म पर आधारित भेदभाव को बढ़ावा दे सकती है.
नॉर्स पगान सैनिकों की चिंता
सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि नॉर्स पगान सैनिकों ने भी इस नीति को अपनी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ बताया है. इस नीति के लागू होने से सैन्य सेवा में विविधता और समावेशिता को खतरा है और समुदायों में व्यापक असंतोष फैलने की संभावना है.