डोनाल्ड ट्रंप ने 'Pentagon' का नाम बदल क्यों कर कर दिया 'युद्ध विभाग', क्या है इसकी कहानी?
Department Of War America: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हमेशा अपने बयानों और फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में उन्होंने पेंटागन (Pentagon) का नाम बदलकर "युद्ध विभाग" (Department of War) कर नई बहस छेड़ दी है. दरअसल, ट्रंप ने यह बयान अमेरिका की रक्षा नीति और सैन्य खर्च को लेकर दिया जो कि इतिहास से भी जुड़ा हुआ है.

Pentagon Renamed War Department: डोनाल्ड ट्रंप अपने विवादित बयानों से अक्सर राजनीतिक हलचल मचाते रहते हैं. इस बार उन्होंने अमेरिका के रक्षा मुख्यालय ‘पेंटागन’ को ‘युद्ध विभाग’ कहकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. ट्रंप का मानना है कि पेंटागन और अमेरिकी रक्षा नीति असल में सिर्फ 'रक्षा' नहीं बल्कि 'युद्ध' पर केंद्रित है. इसलिए, रक्षा विभाग का नाम भी उसी के अनुरूप रहे, तो बेहतर रहेगा. जानिए, पेंटागन का नाम बदलने की उनकी दलील और इसके पीछे की पूरी कहानी?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 5 सितंबर को देश के रक्षा विभाग (डीओडी) का नाम बदलकर युद्ध विभाग (डीओडब्लू) कर दिया. इसके लिए जरूरी आदेश भी उनके कार्यालय की ओर से जारी कर दिया गया है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रक्षा विभाग का नाम बदलने का प्रस्ताव पहली बार अगस्त 2025 में रखा था. जब उन्होंने कहा था कि युद्ध विभाग 'एक बेहतर नाम' लगता है.
उन्होंने रक्षा विभाग नाम पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "रक्षा बहुत ज्यादा रक्षात्मक है... और हम रक्षात्मक होना चाहते हैं, लेकिन अगर जरूरत पड़े तो हम आक्रामक भी होना चाहते हैं." राष्ट्रपति के इस सोच का ख्याल रखते हुए रक्षा विभाग ने यह कदम उठाया है. द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार "रक्षा विभाग का नाम 'युद्ध विभाग' जंग लड़ने की क्षमताओं का प्रदर्शन करने और उसकी ज्यादा आक्रामक छवि पेश करने के लिए दिया गया है.
क्या है अमेरिकी रक्षा विभाग का इतिहास?
रक्षा विभाग का गठन 1947 में राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के कार्यकाल में राष्ट्रीय सैन्य प्रतिष्ठान के रूप में एक एकीकृत सैन्य कमान बनाने के मकसद से किया गया था. इसका दूसरा मकसद यह था कि फिजूलखर्ची वाले सैन्य खर्च और अंतर्विभागीय संघर्षों को यह खत्म करेगा.
इससे पहले 158 वर्षों के इतिहास में अमेरिकी 'युद्ध विभाग' अमेरिकी सेना के संचालन और रखरखाव का प्रभारी था. ट्रंप का यह फैसला इसी इतिहास को ध्यान में रखकर लिया गया है. उन्होंने विशेष रूप से प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) और द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) का जिक्र करते हुए कहा, "जब यह युद्ध विभाग था, तब हमारी जीत का एक अविश्वसनीय इतिहास रहा."
दरअसल, अमेरिकी कांग्रेस ने सेना, नौसेना और मरीन कॉर्प्स के संचालन और रखरखाव की देखरेख के लिए 1789 में औपचारिक रूप से युद्ध विभाग की स्थापना की थी. तब कैबिनेट स्तर के युद्ध सचिव सिविल इसके वित्त और सैन्य मामलों के संचालन का काम देखते थे. उस समय रक्षा विभाग की भूमिका बहुत छोटी थी.
1798 में नौसेना की देखरेख नए नौसेना विभाग को सौंपी गई. 1834 में मरीन कॉर्प्स को भी इसमें स्थानांतरित कर दिया गया. युद्ध विभाग के अधीन अमेरिकी सेना वायु सेना का गठन किया गया, जो 1940 के दशक तक यानी 1926 में सैन्य प्रतिष्ठान की सबसे महत्वपूर्ण शाखा बनी रही.
1940 के दशक के आरंभ में जब अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा था, सेना का व्यापक पुनर्गठन हुआ. लड़ाकू बलों और रसद को नए क्षेत्रीय संगठनों में समूहीकृत किया गया. सेना की थल सेना, सेना की वायु सेना और सेना की सेवा सेना बनाए गए. इस बीच सेना और नौसेना दो अलग-अलग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनी रहीं.
ऐसे हुआ युद्ध विभाग का उदय
अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध दो मुख्य मोर्चों पर लड़ा. पहला प्रशांत मोर्चा जहां जापान के विरुद्ध द्वीप-कूद अभियान का नेतृत्व एडमिरल चेस्टर डब्ल्यू निमित्ज के नेतृत्व में नौसेना (और मरीन) ने किया था. यूरोपीय मोर्चा, जहां भूमि अभियान का नेतृत्व जनरल (बाद में राष्ट्रपति) ड्वाइट डी. आइजनहावर के नेतृत्व में सेना ने किया था.
युद्धोत्तर काल के आकलनों में इस संगठनात्मक व्यवस्था को अपर्याप्त पाया गया. राष्ट्रपति ट्रूमैन और कई कमांडरों का मानना था कि शाखाओं के बीच विखंडन और प्रतिद्वंद्विता ने समग्र प्रभावशीलता को कम कर दिया. इस प्रकार ट्रूमैन ने राष्ट्रीय रक्षा तंत्र को एक एकीकृत विभाग के अंतर्गत लाने का प्रयास किया.
इस योजना के तहत कई प्रस्तावों का मसौदा तैयार किया गया, और ट्रूमैन ने 1947 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पारित कर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और केंद्रीय खुफिया एजेंसी और राष्ट्रीय सैन्य प्रतिष्ठान (एनएमई) की स्थापना की.
इस अधिनियम ने नौसेना और युद्ध विभागों और नव-स्वतंत्र वायु सेना को एक एकल संगठन, एनएमई में विलय कर दिया, जिसका नेतृत्व एक असैन्य रक्षा सचिव करता था, जो संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ की भी देखरेख करता था.
एनएमई ने सितंबर 1947 में अपना संचालन शुरू किया, लेकिन दो साल से भी कम समय बाद इसका नाम बदलकर रक्षा विभाग कर दिया गया. इसकी वजह ये बताई गई कि एनएमई नाम "दुश्मन" जैसा लगता था.
रक्षा विभाग को लोग क्यों मानते हैं पेंटागन, खास बातें
- अमेरिकी रक्षा मंत्रालय को लोग पेंटागन (The Pentagon) के नाम से इसलिए जानते हैं क्योंकि उसकी मुख्य इमारत पांच भुजाओं (Pentagon Shape) में बनी है. यह इमारत अमेरिका के वर्जीनिया राज्य के आर्लिंगटन काउंटी में स्थित है और इसे अमेरिकी रक्षा विभाग (U.S. Department of Defense) का मुख्यालय माना जाता है.
- दरअसल, अमेरिकी रक्षा विभाग के इमारत का नक्शा पांच-कोणीय (five-sided polygon) है. इसका निर्माण 1941–1943 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ. इसका नाम इसके आकार की वजह से 'Pentagon' पड़ा. इतना ही नहीं नाम समय के साथ अमेरिकी रक्षा विभाग का प्रतीक बन गया.
- पेंटागन बिल्डिंग में लगभग 26 हजार लोग काम करते हैं. इनमें लगभग 17 हजार सैन्य और असैन्य कर्मचारी हैं. लगभग 9 हजार कॉन्ट्रैक्टर व सपोर्ट स्टाफ शामिल हैं. यह दुनिया की सबसे बड़ी ऑफिस बिल्डिंग है, जो लगभग 65 लाख वर्ग फीट क्षेत्रफल में फैला है. इमारत के अंदर 17.5 मील (28 किलोमीटर) लंबे कॉरिडोर बने हुए हैं.
- पेंटागन में हर दिन हजारों लोग आते-जाते हैं, लेकिन इसकी सुरक्षा बेहद कड़ी होती है.
- 11 सितंबर 2001 को यह आतंकी हमले का शिकार हुआ था, जब एक हाईजैक विमान टकरा गया था.
- यह केवल अमेरिका का रक्षा मुख्यालय ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर सैन्य रणनीति का प्रतीक भी है.
इसलिए रखा पेंटागन का नाम युद्ध विभाग
डोनाल्ड ट्रंप अक्सर पेंटागन और अमेरिकी जनरल्स पर आरोप लगाते रहे हैं कि वे "war industry" (युद्ध उद्योग) को बढ़ावा देते हैं.ठेकेदार कंपनियों (Defense Contractors) के लिए युद्ध चलाते हैं. इसी संदर्भ में उन्होंने पुराना नाम 'War Department' दोहराया और कहा कि यह सही मायनों में उसकी असलियत है.