गाजा भेजेंगे सेना या बनाएंगे दूरी? पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर की दुविधा, ट्रंप को कैसे करें इनकार
पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख आसिम मुनीर अमेरिका के दबाव में गाजा में शांति के लिए सेना भेजने पर विचार कर रहे हैं. यह कदम उनके अपने ही देश में घरेलू विरोध और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है. मुनीर का ट्रंप के साथ करीबी रिश्ता पाकिस्तान को सुरक्षा मदद दिला सकता है, लेकिन विदेश नीति और जनभावनाओं के लिहाज से यह चुनौतीपूर्ण साबित होगा.
इजरायल और हमास के बीच गाजा में जारी युद्ध के बीच पाकिस्तानी सेना के प्रमुख आसिम मुनीर वहां सेना भेजने की तैयारी में जुटे हैं. इस फैसले ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. सबकी नजर इस पर है कि क्या मुनीर घरेलू दबाव, आर्थिक संकट और वैश्विक कूटनीति को दरकिनार कर गाजा में पाकिस्तानी की सेना को भेजेंगे. वो भी तब जब गाजा में जारी भीषण संघर्ष ने मुस्लिम देशों के सामने नैतिक और कूटनीतिक दोनों तरह की चुनौती खड़ी कर दी है. ऐसे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के सामने 'आगे कुआं, पीछे खाई' जैसी स्थिति बन गई है. जहां हर फैसला उनके लिए किसी न किसी मोर्चे पर भारी पड़ सकता है.
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ट्रंप का दबाव
गाजा में इजरायल-हमास युद्ध के चलते पाकिस्तान की सड़कों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं. धार्मिक संगठन खुलकर सरकार और सेना से गाजा में हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. सोशल मीडिया से लेकर संसद तक यह सवाल गूंज रहा है कि क्या पाकिस्तान सिर्फ बयान देगा या जमीन पर भी कुछ करेगा.
मुनीर के लिए फैसला मुश्किल क्यों?
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के लिए सेना भेजने का फैसला कई स्तरों पर जोखिम भरा है. सेना भेजने पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की नाराजगी, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का खतरा और IMF से मिलने वाली आर्थिक मदद पर असर पड़ सकता है. देश के भीतर धार्मिक समूहों का गुस्सा, सरकार पर दबाव और सेना की साख पर सवाल उठ सकता है.
इस्लामी एकजुटता बनाम कूटनीति
पाकिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. IMF के कर्ज और विदेशी सहायता पर उसकी निर्भरता किसी भी सैन्य एडवेंचर को लगभग नामुमकिन बना देती है. गाजा में सेना भेजना न केवल आर्थिक रूप से भारी पड़ेगा बल्कि वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग भी कर सकता है.
दूसरी तरफ पाकिस्तान की चिंता यह है कि वह खुद को लंबे समय से इस्लामी दुनिया का नेतृत्वकर्ता बताता रहा है. गाजा मुद्दे पर चुप्पी साधना इस छवि को नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन दूसरी ओर, कूटनीतिक सच्चाई यह है कि पाकिस्तान के पास न तो सीधी सैन्य क्षमता है और न ही वैश्विक समर्थन, जिससे वह गाजा जैसे जटिल युद्ध में उतर सके. विशेषज्ञों का मानना है कि आसिम मुनीर ऐसी दुविधा में बीच का रास्ता अपना सकते हैं. जैसे गाजा के समर्थन में कड़े बयान, OIC और संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक दबाव, मानवीय सहायता और राहत सामग्री भेजना. ताकि प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाना संभव हो सके.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक वॉशिंगटन स्थित अटलांटिक काउंसिल में साउथ एशिया के सीनियर फेलो माइकल कुगेलमैन ने कहना है, "गाजा में फोर्स न भेजने से ट्रंप नाराज हो सकते हैं, जो एक पाकिस्तानी सरकार के लिए कोई छोटी बात नहीं है, उनकी नजरों में अच्छा बने रहने के लिए आसिम मुनीर अभी तक काफी उत्सुक दिखाई देते रहे हैं. खासकर अमेरिकी निवेश और सुरक्षा मदद पाने की दृष्टि से.
एक गलत कदम पाकिस्तान को हिला सकता है
दरअसल, सीडीएफ (CDF) बने आसिम मुनीर न केवल सुरक्षा नीति, बल्कि आंतरिक राजनीति और विदेश नीति के निर्णायक चेहरा बन चुके हैं. लेकिन वह अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां एक गलत कदम पूरे पाकिस्तानी तंत्र को हिला सकता है. यह है गाजा के लिए प्रस्तावित 'इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स' की डिमांड. पाकिस्तान तें तहरीक-ए-लब्बैक और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के लोग सड़कों पर और मीडिया प्लेटफॉर्म पर इजरायल और अमेरिका के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे हैं. अब उन्हें ही गाजा में अहम भूमिका निभाने को कहा जा रहा है.
अमेरिका चाहता है कि गाजा में हमास को हथियार विहिन करने का काम पाकिस्तानी सेना करे. ऐसा करने से पहले फील्ड मार्शल असीम मुनीर आने वाले हफ्तों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने के लिए वाशिंगटन जा सकते हैं. छह महीनों में यह उनकी तीसरी मुलाकात होगी, जिसमें शायद गाजा फोर्स पर फोकस किया जाएगा. कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि वॉशिंगटन इस बहुराष्ट्रीय बल के लिए मुस्लिम-बहुल देशों से योगदान चाहता है. ताकि उसके इस अभियान को वैधता मिले.





