धराली हादसे का जिम्मेदार ग्लेशियर फॉल! 1.4 लाख स्विमिंग पूल जितना मलबा लाया मौत का सैलाब; सेटेलाइट डाटा से क्या चला पता?
यह पूरा मलबा एक ऐसी जगह से गिरा जिसे हिमनद तलछट जमाव (glacial sediment deposit) कहा जाता है. ये वे इलाके होते हैं जहां बर्फ के ग्लेशियर अपने साथ पत्थर और कीचड़ जमा करते रहते हैं. समय के साथ ये जमाव बहुत भारी हो जाते हैं.

उत्तराखंड के धराली गांव में मंगलवार को जो विनाशकारी बाढ़ आई, उसे देखकर लोग पहले तो यही समझे कि ये सिर्फ भारी बारिश या बादल फटने का नतीजा है. लेकिन जब वैज्ञानिकों और भूविज्ञानियों ने इस घटना की जाँच शुरू की, तो सच्चाई और भी ज़्यादा डरावनी निकली. दरअसल, ये हादसा सिर्फ बारिश की वजह से नहीं हुआ था. इसके पीछे एक बेहद जटिल और खतरनाक भूवैज्ञानिक कारण छिपा हुआ था – पहाड़ों के ऊपर स्थित ग्लेशियर (हिमनद) से जुड़ा एक विशाल मलबा क्षेत्र अचानक टूटकर गिर पड़ा.
यह घटना इतनी बड़ी थी कि जब वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों और पहाड़ों की ढलानों का अध्ययन किया, तो पाया कि लगभग 36 करोड़ घन मीटर मलबा – कीचड़, पत्थर और बर्फ का मिश्रण तेजी से नीचे की ओर बहता हुआ धराली गांव से टकराया. अगर आप यह समझना चाहें कि यह मलबा कितना था, तो सोचिए कि 1.4 लाख ओलंपिक साइज के स्विमिंग पूल अगर एक साथ किसी पहाड़ी से गिरा दिए जाएं तो वह कितना विनाशकारी होगा. धराली के लोगों के पास भागने का या बचने का कोई मौका ही नहीं था.
कैसे हुआ यह सब?
यह पूरा मलबा एक ऐसी जगह से गिरा जिसे हिमनद तलछट जमाव (glacial sediment deposit) कहा जाता है. ये वे इलाके होते हैं जहां बर्फ के ग्लेशियर अपने साथ पत्थर और कीचड़ जमा करते रहते हैं. समय के साथ ये जमाव बहुत भारी हो जाते हैं, लेकिन साथ ही साथ अस्थिर भी रहते हैं. इस बार पहाड़ों में कई दिनों से हो रही भारी बारिश और गर्मी के कारण बर्फ ज्यादा पिघली, जिससे ये जमाव और भी कमजोर हो गए. ऊपर से पानी रिसने से भी यह ज़मीन और मलबा ढीला हो गया और आखिरकार मंगलवार को यह पूरा क्षेत्र टूट कर खिसक गया. यह गिरावट 6,700 मीटर (लगभग 22,000 फीट) की ऊंचाई से शुरू हुई, जहां यह मलबा एक हैंगिंग वैली में जमा था. यह एक स्वाभाविक रूप से अस्थिर संरचना थी, मतलब वो पहले से ही खतरे में थी.
मलबे में समाए 20 से ज्यादा मकान
जिस धारा से यह मलबा नीचे आया उसे खीर गाद कहा जाता है. यह एक संकरी और तेज ढलान वाली नदी है, जिसके रास्ते में तीखे मोड़ और गहरे कटाव हैं. जब यह मलबा उस रास्ते से नीचे आया, तो इसकी रफ्तार इतनी तेज थी कि कुछ ही सेकंडों में यह धराली गांव में घुस गया और रास्ते में आई हर चीज को तबाह कर गया. करीब 20 से ज़्यादा मकान मलबे में समा गए और कम से कम चार लोगों की मौत हो गई, सरकारी आंकड़ों के अनुसार.
क्या यह सिर्फ एक प्राकृतिक हादसा था?
भूटान की पुनात्सांगछू-I जलविद्युत परियोजना में काम करने वाले भूविज्ञानी (geologist) इमरान खान ने सैटेलाइट इमेज का एनालिसिस किया और बताया, यह कोई सामान्य बादल फटने की घटना नहीं थी. उनका मानना है कि यह एक लंबे समय से बनती आ रही आपदा थी, जिसे थोड़ी बारिश ने बस ट्रिगर कर दिया. उन्होंने कहा कि 1.1 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए इस मलबा क्षेत्र की मोटाई लगभग 300 मीटर थी, जो भारी मात्रा में दबाव बना रहा था. दून यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिक प्रोफेसर राजीव सरन अहलूवालिया ने बताया कि इस तरह के मलबे की रफ्तार अगर 6-7 मीटर प्रति सेकंड हो तो ये किसी भी इमारत को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है और अगर यह गति दोगुनी हो जाए तो इसकी विनाशकारी शक्ति 64 गुना तक बढ़ सकती है.
ऊपर इलाका इस वजह हो गया है कमजोर
विज्ञानी मानते हैं कि तापमान में हालिया बढ़ोतरी ने ग्लेशियरों को तेजी से पिघलाया, जिससे ऊपर का इलाका और भी ज्यादा कमजोर हो गया. अभी भी असली कारण पूरी तरह से तभी सामने आ पाएंगे जब घटना के ठीक पहले और बाद की रियल टाइम की सैटेलाइट तस्वीरों का डीप एनालिसिस किया जाएगा या फिर एक्सपर्ट्स की एक ज़मीनी टीम उस क्षेत्र में जाकर सीधे निरीक्षण करेगी. एक सीनियर ग्लासिओलॉजिस्ट ने कहा, 'ऐसा लग रहा है कि तीन संकरी घाटियों से यह बाढ़ एक साथ निकली, लेकिन खीर गाद में इसका सबसे खतरनाक असर देखने को मिला. वहां ज़रूर कुछ असाधारण हुआ है जिसकी तुरंत जांच होनी चाहिए.'