सिर्फ बारिश से ये संभव नहीं... पल भर में धराली कैसे बन गया मृत्युलोक? उत्तरकाशी में बादल फटने को लेकर वैज्ञानिकों ने किए ये सवाल
Uttarkashi Cloudburst: उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. मौसम विज्ञानी और सैटेलाइट डेटा विश्लेषक इस बात की जांच कर रहे हैं. प्रभावित इलाके में 24 घंटे में केवल बहुत हल्की से मध्यम बारिश हुई. वैज्ञानिकों ने कहा इतनी बारिश भयंकर तबाही लाने के लिए काफी नहीं है.

Uttarkashi Cloudburst: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने से एक भयंकर त्रासदी आई. अचानक बादल फटने से कितने लोग बेघर हो गए हैं. सोशल मीडिया पर तबाही का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. रोज की तरह लोग अपने सामान्य जीवन में व्यस्त थे और अचानक बादल फटने से सब कुछ बर्बाद हो गया.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, धराली गांव में बादल अचानक क्यों फटा, इसको लेकर वैज्ञानिकों ने अहम जानकारी दी है. अब वैज्ञानिकों और विश्लेषकों की समीक्षा में स्पष्ट हुआ कि इसके पीछे ग्लेशियर का ढहना या ग्लेशियल झील का टूटना (GLOF) ही मुख्य कारण था.
कैसे फटा बादल?
उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. मौसम विज्ञानी और सैटेलाइट डेटा विश्लेषक इस बात की जांच कर रहे हैं कि कहीं प्रभावकारी भारी हिमस्खलन, ग्लेशियर का अचानक टूटना या ऊपरी क्षेत्र में बनी ग्लेशियल झील का टूटना तो फ्लैश फ्लड को ट्रिगर नहीं कर गया था.
आपदा के समय न्यूनतम बारिश हो रही थी. हर्षिल में 6.5 मिमी ही वर्षा हुई पिछले 24 घंटे में सिर्फ 9 मिमी और भटवारी में 11 मिमी बारिश दर्ज की गई. इतनी सी बारिश में बादल फटने की घटना से वैज्ञानिक भी हैरान है. इसलिए जांच कर रहे हैं और कई सवालों के जवाब तलाश रहे हैं.
घटना पर क्यों उठ रहे सवाल?
TOI से बात करते हुए क्षेत्रीय मौसम विभाग विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ रोहित थपलियाल ने कहा, प्रभावित इलाके में 24 घंटे में केवल बहुत हल्की से मध्यम बारिश हुई. सबसे ज्यादा बारिश जिला मुख्लायल में 27 मीमी थी. एक अन्य ने कहा, इतनी बारिश भयंकर तबाही लाने के लिए काफी नहीं है. यह ग्लेशियर फटने या GLOF जैसी किसी घटना का संकेत देती है.
वैज्ञानिकों ने कहा, खीर गाड धारा के बिल्कुल ऊपर एक ग्लेशियर है. हिमनद झील के फटने या ग्लेशियर के फटने से अचानक पानी निकलते ही साल 2021 फरवरी में चमोली के रैनी में अचानक बाढ़ आ गई थी. राज्य की छोटी झीलों से लेकर बड़े जलाशयों तक 1, 266 हिमनद झीलें हैं और इसमें अचानक गंभीर खतरा पैदा हो सकता है.
वहीं उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला का कहना है कि ऐसे आपदाएं ज्यादा ऊंचाई पर ज्यादा पानी होने से होती है. सिर्फ बारिश से बादल फटना संभव नहीं. इस प्राकृतिक आपदा के तुरंत बाद जिलाधिकारियों, ITBP, NDRF, SDRF और सेना ने राहत व बचाव कार्यों को जंग की तरह तेज गति से शुरू कर दिया है.