योग गुरु स्वामी शिवानंद का निधन, पद्मश्री से हुए थे सम्मानित; जानें 128 साल की उम्र तक कैसे खुद को रखा निरोग
काशी के विख्यात योग गुरु स्वामी शिवानंद का 128 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पद्मश्री से सम्मानित बाबा संयम, तप और योग साधना के प्रतीक थे. उन्होंने आधा पेट भोजन, फल-दूध से परहेज़ और नियमित योग के बल पर दीर्घायु प्राप्त की. राष्ट्रपति भवन में उनकी नंदीवत प्रणाम मुद्रा आज भी देश की स्मृति में अमर है. उनका निधन अध्यात्म जगत की बड़ी क्षति है.

काशी की आध्यात्मिक भूमि ने एक विरल तपस्वी को खो दिया. योगाचार्य स्वामी शिवानंद का 128 वर्ष की आयु में वाराणसी के बीएचयू अस्पताल में निधन हो गया. सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित यह योगी न केवल अपनी लंबी उम्र, बल्कि संयमित जीवनशैली और त्यागमयी साधना के लिए भी पहचाने जाते थे.
बाबा शिवानंद का जन्म 1896 में तत्कालीन बंगाल के श्रीहट्टी जिले में हुआ था. अत्यंत निर्धन परिवार में जन्मे बाबा ने जीवन की शुरुआत ही संघर्ष से की. माता-पिता का बचपन में ही निधन हो गया, लेकिन बाबा ने भीख मांगते बचपन से योग और संयम के बल पर ऐसा जीवन गढ़ा, जो आज के भौतिक युग में आश्चर्य का विषय है. वे सदैव आधा पेट भोजन करते थे, फल और दूध को त्याग दिया था क्योंकि उनका मानना था, "जो गरीब को नसीब नहीं, वह मुझे क्यों चाहिए?
काशी की गलियों से विश्व मंच तक
1979 में बाबा वाराणसी आए और यहीं के कबीर नगर कॉलोनी के एक छोटे से कमरे को अपना निवास बना लिया. वे घाटों पर योग सिखाते थे और सादगी से जीते थे. उनके शिष्य बताते हैं कि बाबा की दिनचर्या सुबह 3 बजे शुरू होती थी- योग, ध्यान, गीता और चंडी पाठ से दिनचर्या संचालित होती थी. बिना किसी दिखावे के उन्होंने योग को जीवन का यज्ञ बना दिया.
2022 में मिला था पद्मश्री पुरस्कार
बाबा शिवानंद को जब 2022 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया, तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में सम्मान लेने से पहले तीन बार नंदीवत योग मुद्रा में झुककर प्रणाम किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उनकी इस विनम्रता और गरिमा से प्रभावित हुए. यह दृश्य केवल सम्मान का नहीं, भारतीय योग परंपरा की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता था.
2017 में डाला था वोट
बाबा शिवानंद राजनीति से दूर रहे लेकिन जनचेतना से नहीं. उन्होंने पहली बार 2017 में वोट डाला और कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें प्रेरित किया. उस समय वे 121 वर्ष के थे. उनका मानना था कि सही नेता को चुनना भी तप का एक भाग है।
हरिश्चंद्र घाट पर होगा अंतिम संस्कार
128 वर्षों तक संयम, योग और तप के पथ पर चलने वाले इस संत का अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर रविवार को किया जाएगा. लेकिन उनके विचार, उनका जीवन और योग की जो लौ उन्होंने जलाकर रखी, वह काशी की हवाओं में अनंत काल तक जीवित रहेगी. उनके निधन से एक युग का अंत नहीं, बल्कि एक परंपरा का स्थायित्व सिद्ध होता है.