बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा शुरू, जानें क्या है मंदिर में जलने वाले दीपक का रहस्य
चारधाम यात्रा का अंतिम पड़ाव बद्रीनाथ धाम रविवार सुबह विधिविधान से श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया. वैदिक मंत्रोच्चार और जयकारों के बीच हजारों भक्तों ने दर्शन किए. विष्णु के बैकुंठ कहे जाने वाले इस धाम में अब छह महीने तक दर्शन होंगे. दीपक रहस्य, रावल परंपरा और शाश्वत आस्था के बीच यह तीर्थ केवल यात्रा नहीं, आत्मा की जागृति है.

उत्तराखंड के पवित्र बद्रीनाथ धाम में रविवार सुबह ठीक 6 बजे वैदिक मंत्रोच्चार और 'जय बदरीविशाल' के उद्घोष के साथ कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए. सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का यह एक और अध्याय था, जिसमें हजारों श्रद्धालु साक्षी बने. कपाट खुलते ही न केवल मंदिर परिसर बल्कि श्रद्धालुओं के हृदयों में भी आध्यात्मिक ऊर्जा की लहर दौड़ गई.
बद्रीनाथ को केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि पृथ्वी पर बैकुंठ कहा जाता है. अलकनंदा नदी के तट पर, नर-नारायण पर्वतों के मध्य स्थित यह धाम भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप को समर्पित है. माना जाता है कि विष्णु यहां 6 माह योगनिद्रा में और 6 माह जागृत रहते हैं. इस समय वे अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. एक ऐसा अनुभव जिसे आत्मा जीवन भर याद रखती है.
नंबूदरी ब्राह्मण करते हैं पूजा
बद्रीनाथ धाम की सबसे विशिष्ट बात इसकी पूजा परंपरा है, जो दक्षिण भारत के नंबूदरी ब्राह्मणों द्वारा निभाई जाती है. ये पुजारी 'रावल' कहलाते हैं और केवल वे ही भगवान की मूर्ति को स्पर्श कर सकते हैं. नारदीय पंचरात्र परंपरा में की जाने वाली यह पूजा, हिमालय की ऊंचाई पर एक अद्वितीय वैदिक परंपरा का उदाहरण है, जहां उत्तर और दक्षिण की आध्यात्मिक धाराएं एक-दूसरे से मिलती है.
छह माह जलता है मंदिर का दीपक
बद्रीनाथ धाम से जुड़ा एक रहस्य आज भी भक्तों की आस्था को अद्भुत बना देता है. जब मंदिर सर्दियों के लिए बंद किया जाता है, तब अंतिम पूजा के बाद एक दीपक जलाकर छोड़ा जाता है. छह माह बाद जब कपाट खोले जाते हैं, तो वह दीपक अब भी जल रहा होता है और मंदिर अंदर से उसी तरह स्वच्छ और सुव्यवस्थित मिलता है, जैसा छोड़कर गए थे. यह घटना विज्ञान से परे जाकर आस्था की सीमा को विस्तार देती है.
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चारों धाम फिर से भक्तों के लिए खुले
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा पूर्ण रूप से आरंभ हो चुकी है. गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट अक्षय तृतीया पर, और केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को खुल चुके थे. बद्रीनाथ का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि यह नर-नारायण की तपोभूमि है, और कलियुग में यह वह स्थल है जहां हर कोई भगवान विष्णु के विग्रह रूप में दर्शन कर सकता है.