जल जीवन मिशन में घोटाला! 15 राज्यों में 596 अफसर, 822 ठेकेदार और 152 एजेंसियां जांच के घेरे में, यूपी सबसे आगे
इन मामलों में सीबीआई ने सात केस दर्ज किए हैं, जबकि कुछ राज्यों में लोकायुक्त और भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां जांच कर रही हैं. केंद्र सरकार ने राज्यों को आदेश दिया था कि वे यह बताएं कि कितने अफसरों को सस्पेंड, बर्खास्त या जिन पर एफआईआर दर्ज की गई है.
देश के गांवों में हर घर तक नल से साफ पेयजल पहुंचाने के लिए शुरू किए गए केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन (JJM) में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामले सामने आए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 596 सरकारी अधिकारी, 822 ठेकेदार और 152 तृतीय पक्ष जांच एजेंसियां (TPIA) इस भ्रष्टाचार की जांच के घेरे में आ चुके हैं. इन सभी के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं (financial irregularities), घटिया कामकाज और योजना के दुरुपयोग के मामलों में कार्रवाई की गई है. सूत्रों के अनुसार, जल जीवन मिशन से जुड़ी कुल 16,634 शिकायतें विभिन्न राज्यों में दर्ज की गईं. इनमें से 16,278 मामलों में जांच रिपोर्ट भी जमा हो चुकी है. इनमें उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां से 14,264 शिकायतें आईं यानी कुल शिकायतों का करीब 85 प्रतिशत.
असम में 1,236 शिकायतें और त्रिपुरा में 376 शिकायतें दर्ज हुईं. अफसरों और ठेकेदारों पर सबसे ज्यादा कार्रवाई. भ्रष्टाचार और काम में गड़बड़ी के मामलों में भी उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा. वहीं अधिकारियों पर कार्रवाई पर गौर किया जाए तो, यूपी (171), राजस्थान (170), मध्य प्रदेश (151) मामले. वहीं ठेकेदारों पर कार्रवाई- त्रिपुरा (376), यूपी (143), पश्चिम बंगाल (142). इनके अलावा छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, लद्दाख, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने भी जांच रिपोर्ट सौंपी है.
सीबीआई कर रही है जांच, कई एजेंसियां भी जुड़ीं
सूत्रों के मुताबिक, इन मामलों में सीबीआई ने सात केस दर्ज किए हैं, जबकि कुछ राज्यों में लोकायुक्त और भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां जांच कर रही हैं. केंद्र सरकार ने राज्यों को आदेश दिया था कि वे यह बताएं कि कितने अफसरों को सस्पेंड, बर्खास्त या जिन पर एफआईआर दर्ज की गई है. जल शक्ति मंत्रालय के अधीन आने वाला पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (DDWS) इन मामलों की निगरानी कर रहा है. अक्टूबर में विभाग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजकर रिपोर्ट मांगी थी. जिसमें भ्रष्टाचार, खराब निर्माण कार्य, जुर्माने और ब्लैकलिस्ट ठेकेदारों की जानकारी शामिल थी.
मिशन का लक्ष्य और विवाद
2019 में लॉन्च हुए जल जीवन मिशन का मकसद था
2024 तक हर ग्रामीण घर तक नल से साफ पानी पहुंचाना
लेकिन मिशन की अवधि पूरी होने के बाद भी कई गांवों में काम अधूरा है
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने 1 फरवरी 2025 के बजट भाषण में कहा था कि मिशन को अब 2028 तक बढ़ाया जाएगा, और इसके लिए अतिरिक्त फंड भी दिया जाएगा. हालांकि इस प्रस्ताव को अभी केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलनी बाकी है.
कैसे बढ़ा खर्च और घोटाला?
रिपोर्ट बताती है कि 2021 में मिशन के दिशा-निर्देशों में किए गए बदलावों के कारण खर्च पर नियंत्रण कमजोर हो गया. इसके चलते 14,586 योजनाओं में 16,839 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत आई यानी अनुमानित लागत से 14.58% ज्यादा खर्च. इसी ढीले नियंत्रण और भ्रष्टाचार के चलते मिशन की विश्वसनीयता पर अब सवाल उठने लगे हैं.
कई राज्यों ने जानकारी नहीं दी
छह राज्यों जिसमें अंडमान-निकोबार, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप और सिक्किम ने केवल आंशिक रिपोर्ट दी है. जबकि दादरा-नगर हवेली, हिमाचल, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु समेत कई राज्यों ने अब तक कोई जानकारी नहीं भेजी.





