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गाय को बताया राष्ट्रीय पशु, तो मुस्लिमों को कहा 'कठमुल्ला', कौन हैं विवादास्पद बयान देने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने अपने बयान में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया है. साथ ही, कहा कि मुसलमान देश के लिए हानिकारक हैं. न्यायमूर्ति शेखर इससे पहले भी कई ऐसे फैसले ले चुके हैं, जिनके कारण वह चर्चा में आए.

गाय को बताया राष्ट्रीय पशु, तो मुस्लिमों को कहा कठमुल्ला, कौन हैं विवादास्पद बयान देने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव?
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 9 Dec 2024 7:42 PM IST

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने रविवार को विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में भाग लेकर एक गरमागरम बहस छेड़ दी, जहां उन्होंने भारत के बहुसंख्यक समुदाय और मुस्लिम आबादी के बारे में ध्रुवीकरण वाली टिप्पणी की. समान नागरिक संहिता पर अपने भाषण के दौरान न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत बहुसंख्यक आबादी की इच्छा के अनुसार काम करेगा.

"मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा. यह कानून है. यह एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बोलने के बारे में नहीं है; बल्कि कानून बहुसंख्यकों के अनुसार काम करता है. इसे एक परिवार या समाज के संदर्भ में देखें - केवल वही स्वीकार किया जाएगा, जो बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी को सुनिश्चित करता है".

मुस्लमानों को कहा कठमुल्ला

इतना ही नहीं, इस भाषण के दौरान न्यायाधीश ने कई अन्य विवादित टिप्पणियां भी की, जिसमें उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक शब्द "कठमुल्ला" का इस्तेमाल किया. शेखर यादव ने चरमपंथियों को "कठमुल्ला" कहा और सुझाव दिया कि देश को उनसे सावधान रहना चाहिए. चलिए जानते हैं कौन है न्यायाधीश शेखर कुमार यादव?

कौन हैं शेखर कुमार यादव ?

शेखर कुमार यादव वर्तमान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने 1990 में एक वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुख्य रूप से नागरिक और संवैधानिक कानून पर फोकस लॉ करियर की शुरुआत की.

इन पदों पर रहे कार्यरत

शेखर कुमार यादव उत्तर प्रदेश राज्य के लिए एक एडिशनल गवर्नमेंट एडवोकेट और स्थायी वकील के रूप में कर चुके हैं. इसके बाद उन्होंने अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील की ज़िम्मेदारी संभाली. इतना ही नहीं, उन्होंने रेलवे के लिए सीनियर पैन वकील के रूप में भी काम किया है. वीबीएस पूर्वांचल यूनिवर्सिटी उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए एक अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता और स्थायी वकील के रूप में काम किया और बाद में अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील की ज़िम्मेदारी संभाली. उन्होंने भारत संघ और रेलवे के लिए वरिष्ठ पैनल वकील के रूप में भी काम किया और वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर का स्थायी वकील के रूप में प्रतिनिधित्व किया.

12 दिसंबर, 2019 को न्यायमूर्ति यादव को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया था. 2 साल बाद 26 मार्च, 2021 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में चुना गया. शेखर कुमार 15 अप्रैल, 2026 में रिटायर होंगे.

पहले भी चर्चा में रहे चुके हैं जस्टिस शेखर

यह पहली बार नहीं है, जब शेखर सुर्खियों में हैं. इससे पहले साल 2021 में एक महिला को गैरकानूनी रूप से इस्लाम में परिवर्तित करने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति यादव ने कहा था कि देश में धार्मिक कट्टरता, लालच या भय के लिए कोई जगह नहीं है. अगर बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति अपमानित होने के बाद दूसरे धर्म में परिवर्तित हो जाता है, तो देश कमजोर हो जाता है, जिससे विनाशकारी शक्तियों को लाभ मिलता है.

गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का फैसला

उत्तर प्रदेश में गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत आरोपित एक आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "गोरक्षा का काम सिर्फ एक धार्मिक संप्रदाय का नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर नागरिक का है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो...जब गाय का कल्याण होगा, तभी देश का कल्याण होगा." इसी क्रम में उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि गाय एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन लेती और छोड़ती है.

भगवद गीता को सम्मान देने के लिए कानून

कोर्ट के बाहर की गई टिप्पणियों के अलावा जस्टिस यादव ने अपने कुछ फैसलों में वैचारिक रंग भर दिया है. अक्टूबर 2021 में उन्होंने केंद्र सरकार से भगवान राम, भगवान कृष्ण, रामायण, महाभारत और भगवद गीता को सम्मान देने के लिए कानून लाने का आग्रह किया था. उस मामले में जमानत देते हुए उन्होंने राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह उन लोगों के पक्ष में है जो "राम" में आस्था रखते हैं. जस्टिस यादव ने कहा, "राम इस देश के हर नागरिक के दिल में बसते हैं, वे भारत की आत्मा हैं. राम के बिना इस देश की संस्कृति अधूरी है." जस्टिस शेखर यादव ने इस बात पर भी जोर दिया कि भगवान कृष्ण और राम को सम्मान देने के लिए कानून लाने के साथ-साथ "देश के सभी स्कूलों में इसे अनिवार्य विषय बनाकर बच्चों को शिक्षित करने की जरूरत है, क्योंकि शिक्षा से ही व्यक्ति संस्कारवान बनता है और अपने जीवन मूल्यों और अपनी संस्कृति से अवगत होता है.

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