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पहले ‘चुटिया-कटवा’, ‘ड्रोन-डाकू’ फिर दरवाजों पर ‘खूनी पंजे’ और अब ‘न्यूड-गैंग’, हर कलेश की शिकार ग्रामीण-महिलाएं क्यों होती हैं?

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में समय-समय पर अजीबो-गरीब घटनाएं सामने आती रही हैं, जिनका सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है. पहले ‘चुटिया-कटवा’, फिर ‘ड्रोन-डाकू’, उसके बाद ‘खूनी पंजे’ और अब ‘न्यूड गैंग’ जैसी घटनाएं चर्चा में हैं. इनमें कई बार पुलिस भी जांच करती है, लेकिन ठोस सबूत नहीं मिलते. विशेषज्ञों का मानना है कि ये अफवाहें अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से ही शुरू होती हैं, जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि मुश्किल है.

पहले ‘चुटिया-कटवा’, ‘ड्रोन-डाकू’ फिर दरवाजों पर ‘खूनी पंजे’ और अब ‘न्यूड-गैंग’, हर कलेश की शिकार ग्रामीण-महिलाएं क्यों होती हैं?
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 6 Sept 2025 6:20 PM IST

देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश है. इसलिए अजीब-ओ-गरीब “कहानी-किस्से” भी यहीं की भीड़ से निकल कर आते हैं. ध्यान देने की बात यह है कि इन किस्सों में कहीं न कहीं किसी रूप से विशेषकर ‘ग्रामीण-महिलाओं’ के रुझानों की मौजूदगी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा दिखाई देती है.

स्टेट मिरर हिंदी के पाठकों को याद दिलाना जरूरी है कि अब से करीब 7-8 साल पहले इसी सूबे के सैकड़ों ग्रामीण-इलाकों से खबरें आने शुरू हुई थीं कि, उनके दरवाजों के बाहर ‘लाल खूनी रंग के पंजे’ लगे मिलते हैं. उस तमाशा कहिए या फिर बवाल की बातें थाना पुलिस तक पहुंची. तो जनमानस की सुरक्षा के प्रति-जवाबदेह पुलिस भी उन कथित खूनी पंजों की जांच में कूद पड़ी.

जब गांव वालों को दिखे चुड़ैल के खूनी पंजे

हालांकि उन खूनी पंजों की डरावनी कहानी की सच्चाई उत्तर प्रदेश की पुलिस तो कई साल बाद भी बाहर निकाल कर नहीं ला सकी. इसके बाद भी मगर संबंधित गांव की महिलाओं और कुछ पुरुषों ने अपनी ‘हवाई-रिसर्च’ में यह तक दावा ठोंक दिया कि, उनके दरवाजों के बाहर सुबह के वक्त लगे मिलने वाले वे खूनी-पंजे ‘चुड़ैल’ के हैं. चुड़ैल किसने अपनी आंखों से देखी? इस सवाल का माकूल जवाब उन गावों में मौजूद किसी भी महिला और पुरुष के पास नहीं था, जिनका दावा था कि, खूनी पंजे ‘चुड़ैल’ के ही हैं.

जब 'चुटिया कटवा' का मचा हल्‍ला...

कुछ महीने चले कोहराम के बाद जब न तो गांव वालों को और न ही पुलिस को उन कथित खूनी पंजों वाली ‘चुड़ैल’ हाथ लगी, तो मीडिया के लिए गरमा-गरम सुर्खियों भरी खबर और पुलिस के लिए महीनों तक ‘सिरदर्दी’ बना रहा वह मुद्दा कब कैसे कहां कफन-दफन हो गया? किसी को आज याद नहीं होगा. खूनी पंजों वाली रहस्यमयी चुड़ैल का जंजाल दबे हुए कुछ ही साल बीते होंगे कि फिर एक तमाशा शुरू हो गया. वह यह कि रात के वक्त उत्तर प्रदेश के ही सैकड़ों गांवों में कोई अनजान रहस्यमयी छवि आती है. वह सोती हुई महिलाओं-लड़कियों की ‘चोटियां’ काटकर ले जाती है. उस मामले की जड़ तक पहुंचने में जुटी पुलिस कोई ठोस-वैज्ञानिक तथ्य निकाल कर सामने ला पाती, उससे पहले ही संबंधित गांव के लोगों ने उस कांड का नामकरण भी कर डाला “चुटिया-कटवा”.

रात भर पहरेदारी के बावजूद काट ली जा रही थीं महिलाओं की चोटी

उस रहस्यमयी चुटिया कटवा कांड की तह तक पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश के कई थानों की पुलिस ने कुछ इलाकों में तो विशेष-रूप से ‘नाइट पेट्रोलिंग’ (नाइट गश्त) तक बढ़ा दी. गंभीर कहिए या फिर मजेदार बात यह रही उस चुटिया-कटवा कांड में कि, रात-रात भर पुलिस पहरा देती रहती. खौफ के साए में जी रहे ग्रामीण रात-रात भर जागकर पहरेदारी करते. इसके बाद भी किसी न किसी गांव के किसी न किसी घर के भीतर लेटी-बैठी-सो रही मां-बहन बेटी की चुटिया तब भी काट कर गायब कर दी जा रही. गंभीर यह है कि चुटिया काटने वाला या काटने वाली कौन थी कौन था, इसकी पुष्टि के लिए, महीनों तक चले उस तमाशे में भी कोई चश्मदीद गवाह जमाने में कभी किसी के हाथ नहीं लगा. लिहाजा हार-थक उस कथित चुटिया कटवा और खूनी पंजा कांड की डरावनी मगर वाहियात किस्से-कहानियां भी समय के साथ ज़मींदोज हो गए.

मतलब, चाहे तो उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के घरों के बाहर चुड़ैल के कथित खूनी पंजों की कहानी हो या फिर ‘चुटिया-कटवा-कथा’. दोनों ही कांडों में जितना ड्रामा-तमाशा हो सकता था हुआ. और उस तमाशे की तह तक पहुंचने के लिए वह बिचारी पुलिस भी भागती रही, जिस पुलिस का ऐसे कांडों से दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था. मगर चूंकि पुलिस जनसेवक है. जनता अगर किसी खूनी पंजों वाली चुड़ैल या फिर चुटिया-कटवा से जूझ रही है. तब ऐसे में अगर पुलिस सक्रिय नहीं होगी. तब भी तो पुलिस ही निकम्मी और कामचोर कहलाएगी.

ड्रोन डकैतों की बे-सिर-पैर की कहानी

कुछ महीने पहले ही पश्चिमी यूपी के कई जिलों में रात के वक्त ‘ड्रोन-डकैतों’ के बावत बे-सिर-पैर की कहानी चल पड़ी. फिर वही बवाल शुरू हो गया जो अदृश्य “खूनी पंजों वाली चुड़ैल” और “चुटिया-कटवा कांड” के दौरान मचा था. बवाल यह भी सिर्फ और सिर्फ उत्तर प्रदेश के ही कुछ इलाकों में मचना शुरू हुआ. फिर मुसीबत पुलिस की ही हुई. बस बाकी अजीब-ओ-गरीब कांडों से हटकर इस बार ‘ड्रोन-डकैत’ के बवाल में यह फर्क था कि, इसमें ग्रामीण महिलाओं की भूमिका पूरी तरह गायब देखी गई. इस बार ‘ड्रोन-डकैत’ कथित कांड को आगे बढ़ाने का जिम्मा आया ग्रामीण महिलाओं की जगह गांव के पुरुषों के कंधों पर.

शहरी क्षेत्रों में क्‍यों नहीं आते ऐसे ऊल-जलूल मामले?

इन घटनाओं में कथित दावे किए गए कि रात के वक्त ग्रामीण इलाकों में (आबादी और खेतों में) आसमान में ड्रोन उड़ते हैं. यह कथित ड्रोन धरती पर जब पहुंचते हैं वैसे ही कुछ अपराधी किस्म के लोग उन ड्रोन के आस-पास दिखाई देते हैं. बे-सिर-पैर की यह चर्चाएं जब पुलिस तक पहुंची तो उसने भी संबंधित इलाकों में रात्रि-गश्त तेज कर दी. यह अलग बात है कि ग्रामीणों और पुलिस के संयुक्त भागीरथ-प्रयासों के बाद भी बीते दो-तीन महीने में यह कथित ड्रोन और ड्रोन वाले डकैत न तो किसी ग्रामीण को ही मिले हैं न ही संबंधित इलाकों की पुलिस को. ऐसे में सवाल यह पैदा होना लाजिमी है कि आखिर खूनी पंजों वाली चुड़ैल, चुटिया-कटवा या फिर ड्रोन डकैतों वाली कथित सिरदर्द वाली खबरों की शुरूआत कैसे कहां से होती है? कहां से को तो मान सकते हैं कि यह सब तमाशे जब भी समाज के सामने आए हैं तब ग्रामीण-क्षेत्रों से ही निकले हैं. इन ऊल-जलूल बे-सिर-पैर की घटनाओं का शहरी क्षेत्रों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं रहा है.

मेरठ के कुछ गांवों में 'न्‍यूड गैंग' का आतंक

अब सुना है कि मेरठ के दौराला थाना-क्षेत्र के कुछ गांवों बीते कुछ दिनों से ‘न्यूड-गैंग’ का जिन्न आसपास के ग्रामीण इलाकों में ‘गदर’ काटे हुए है. यह न्यूड गैंग दिन के वक्त ही दिखाई देता है. बाकी पुराने तमाशों से इस तमाशे में इस बार थोड़ा सा फर्क है. इस न्यूड गैंग को आंखों से देखने का कथित दावा पुलिस के सामने दो ग्रामीण महिलाओं ने भी किया है. हालांकि, इन प्रत्यक्षदर्शी महिलाओं ने भी बेहद संक्षिप्त जानकारी पुलिस को यह दी है कि, राह-चलते दोनों महिलाओं का सामना दो युवाओं से हुआ था. उन दोनों के बदन पूरी तरह से नंगे थे. वे ‘न्यूड गैंग’ के सदस्य किधर से आए और किधर गायब हो गए? इन सवालों का जवाब संबंधित ग्रामीण महिलाओं के पास नहीं है.

क्‍या इस मामले का भी होगा पहले जैसा अंजाम?

अब देखिए इस कथित ‘न्यूड-गैंग’ की कहानियां कब तक पुलिस को पसीना लाए रहती हैं और ग्रामीणों की नींद उड़ाए रहती हैं? हां, इन बे-सिर-पैर की खबरों की पुष्टि भी करनी ग्रामीणों को ही है. पुलिस तो इनकी बताई जानकारी पर ही आगे बढ़ सकेगी. फिलहाल इस कथित न्यूड गैंग के मामले में मिली शिकायत के आधार पर मेरठ जिले के दौराला थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. इसकी पुष्टि शनिवार को स्टेट मिरर हिंदी से बातचीत में खुद मेरठ पुलिस के ‘मीडिया-सेल’ ने भी की है. क्या इस ‘न्यूड-गैंग’ की कहानी का हश्र भी, चुड़ैल के खूनी पंजों, चुटिया-कटवा और ड्रोन डकैत की कहानियों से भी बदतर हो सकता है? इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में ही है.

बहादुर गांववालों से बच कैसे निकलते हैं ऐसे गैंग वाले?

इस बारे में 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी, मेरठ रेंज के पूर्व पुलिस उप-महानिरीक्षक, महानिरीक्षक मेरठ रेंज और उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह से स्टेट मिरर हिंदी ने बात की. उन्होंने कहा, “पिछली जितनी भी इस तरह की चर्चाएं उठीं बे सब तो बे-सिर-पैर की ही साबित हुई हैं. आज तक पुलिस को किसी भी चर्चा में कोई दम पुष्ट तरीके से नहीं मिला. अब सुना है कि मेरठ के दौराला में फिर एक जिन्न किसी न्यूड गैंग का निकल आया है. मेरी समझ में नहीं आता है कि आखिर ग्रामीणों का सामना जब इस तरह के ऊट-पटांग गैंग्स से होता है. तो यह गैंग बहादुर ग्रामीणों के सामने से साबुत बचकर निकल ही कैसे जाते हैं? अरे भाई शहर में चलिए कोई किसी का साथ नहीं देता है. गांव वाले तो बहादुर बहुत होते हैं. उनमें तो शहर वालों के मुकाबले में कहीं ज्यादा यूनिटी-एका भाईचारा होता है.

फिर भी इन ग्रामीणों की नजर से ऐसे कथित गैंग्स का बच निकल जाना, आसानी से किसी भी पढ़े लिखे या फिर पुलिस के गले आसानी से कैसे उतर सकता है? मेरी नजर में तो पुलिस को ऐसे मामलों की तह तक पहुंचने के लिए बिना शोर मचाए, अपने स्तर पर भी गोपनीय तरीके से जांच करनी चाहिए कि इन खबरों में दम भी है या फिर यह बेबुनियाद खबरें कहीं पुलिस को ही छकाने के लिए तो नहीं उड़ाई जा रही हैं. पुलिस को पैनी नजर रखने के दौरान इन दो चार बिंदुओं का खास ध्यान रखना होगा कि, यह खबरें ग्रामीण इलाकों से ही क्यों उठ रही है? जो ग्रामीण इनसे संबंधित बातें बता रहे हैं पुलिस को, शिकायत करने के दौरान वे किस हद तक विश्वसनीय हैं? और इस तरीके की खबरों की वैज्ञानिक पुष्टता कितनी कहां तक संभव है?”

स्टेट मिरर स्पेशलcrime
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