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EXCLUSIVE: पुलिस कमिश्नर ने जिस दारोगा से ‘कॉलगर्ल-सरगना’ पकड़वाया, उसी दलाल की शिकायत पर ‘दारोगा’ ट्रांसफर कर दिया!

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के पूर्व डीसीपी एल.एन. राव ने अपनी आत्मकथा में खुलासा किया है कि 1987 में कुख्यात कॉलगर्ल सरगना कंवलजीत वालिया को उन्होंने तत्कालीन पुलिस आयुक्त वेद मारवाह के आदेश पर गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के बाद वालिया ने पैसे और समझौते के ऑफर दिए, लेकिन राव ने ठुकरा दिया. कुछ दिनों बाद अचानक उनका ट्रांसफर हो गया. राव ने आरोप लगाया कि जिस सरगना को पकड़वाने के आदेश मिले, उसी की शिकायत पर उनका तबादला कर दिया गया.

EXCLUSIVE: पुलिस कमिश्नर ने जिस दारोगा से ‘कॉलगर्ल-सरगना’ पकड़वाया, उसी दलाल की शिकायत पर ‘दारोगा’ ट्रांसफर कर दिया!
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( Image Source:  Sora AI )
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 29 Aug 2025 11:56 AM IST

कहते हैं दुनिया की कोई भी फोर्स ‘अनुशासन’ के कड़े कायदे-कानून से बंधी होती है. अनुशासन चरमराया तो समझो कि पुलिस हो या मिलिट्री उसका बेड़ा गर्क होना तय है. जब किसी पुलिस या फोर्स का ‘मुखिया’ ही अनुशासन तोड़ने पर आमादा हो जाए, तब तो फिर भगवान भी नहीं बचा सकता है. हू-ब-हू एक ऐसा ही सच्चा किस्सा है ‘स्कॉटलैंट स्टाइल’ पर काम करने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस का. अब से करीब 40-41 साल यानी चार दशक पुराना साल 1984-1985 का.

तब दिल्ली के पुलिस आयुक्त हुआ करते थे 1956 बैच अग्मूटी कैडर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (IPS Ved Prakash Marwah) वेद मारवाह. वेद मारवाह 1985 से लेकर 1988 तक दिल्ली पुलिस चीफ (Ved Prakash Marwah Delhi Police Commissioner) यानी देश की राजधानी पुलिस के ‘बॉस’ रहे. यह उन्हीं वेद मारवाह की दिल्ली पुलिस-कमिश्नरी का दौर था, जिन वेद मारवाह ने खुद माना था कि, “मैं 1984 के दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों के दोषियों के कत्ल-ए-आम के दोषियों को सजा दिला पाने में नाकाम रहा. जोकि मेरे दिल्ली पुलिस आयुक्त कार्यकाल और आईपीएस जीवन की सबसे बड़ी हार या कहूं कि विफलता रही.”

AGMUT कैडर से दिल्‍ली के पहले पुलिस कमिश्‍नर

ऐसे वेद मारवाह अब हमारे बीच नहीं हैं. 87 साल की आयु में लंबी बीमारी के बाद 5 जून 2020 को ऐसे वेद मारवाह का गोवा में निधन हो गया. हिंदुस्तान की तत्कालीन हुकूमतों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नरी से रिटायर होने के बाद इन्हीं वेद मारवाह को मिजोरम, झारखंड और मणिपुर का राज्यपाल भी बनाया था. अविभाजित भारत के पेशावर में साल 1934 में जन्मे वेद मारवाह का परिवार भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से भारत में आकर बस गया था. वेद मारवाह ही भारतीय पुलिस सेवा यूटी कैडर के ऐसे पुलिस अधिकारी भी थे जिन्हें सबसे पहले दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सौभाग्य हासिल हुआ था.

दरअसल वेद मारवाह जैसी शख्शियत के बारे में उनकी खूबियों और नाकामियों का जिक्र यहां इसलिए भी करना जरूरी है कि, स्टेट मिरर हिंदी यहां जिस सच्ची कहानी का जिक्र कर रहा है, इस कहानी के अब से चार दशक पहले वे स्वयं अहम किरदार रहे थे. इस कहानी में वेद मारवाह की अहम भूमिका की पुष्टि होती है दिल्ली पुलिस स्पेशल-सेल के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव द्वारा देश के मशहूर खोजी पत्रकार संजीव चौहान के साथ लिखी गई उनकी किताब, “दारोगा से डीसीपी एल एन राव आत्मकथा” से.

31 जुलाई 2025 को दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में आयोजित पुस्तक के विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि थे, दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिव नारायण ढींगरा (Justice Shiv Narayan Dhingra Delhi High Court). एल एन राव के निहायत-निजी संस्मरणों के हवाले से किताब के सह-लेखक वरिष्ठ पत्रकार संजीव चौहान द्वारा अध्याय-8 'कॉलगर्ल-गुरु और मैं' लिखा गया है. इस अध्याय में देश के 1980 और 1990 के दशक के कुख्यात बदनाम इंटरनेशनल कॉलगर्ल सरगना कंवलजीत वालिया का विस्तार से जिक्र किया गया है.

हर महीने पहुंचता रहेगा लिफाफा...

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के पूर्व डीसीपी एल एन राव लिखते हैं कि, “सितंबर 1984 में मैंने दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ में ज्वाइन किया था. उसी दौरान मेरे पास एक छोटी गरदन, गोरा-चिट्टा रंग, शरीर से थुलथुल-बेडौल अजीब-ओ-गरीब सी भाव-भंगिमाओं वाला अनजान शख्स एक दिन मेरे सामने आ खड़ा हुआ. उसने मेरी तरफ एक लिफाफा बढ़ा दिया. मैं हैरत में था कि जान-न-पहचान. यह अजनबी बड़ी ही बेखौफी से आखिर मुझे बंद लिफाफा क्यों थमा रहा है? मैं जब तक कोई सवाल कर सकूं, उससे पहले ही मेरे सामने खड़ा वह घाघ कहूं या फिर बेहद चतुर और बेखौफ अजनबी मुझे बोला, जनाब यह मेरी तरफ से छोटा सा नजराना समझ कर रख लीजिए. हर महीने यह लिफाफा आपके बिना मांगे ही आपकी जेब तक पहुंचता रहेगा.”

'सर मेरा नाम कंवलजीत वालिया है'

अपनी आत्मकथा के इस बेहद दिलचस्प सच्चे किस्से की बानगी पेश करते अध्याय “कॉल गुरु और मैं” में एल एन राव आगे लिखते हैं, “मैं उस अजनबी और उसके हाथ में मौजूद मुझे देने के लिए लाए गए लिफाफे को देखकर असमंजस में था. सोच रहा था कि जिस शख्स की मैंने पुलिस की तब तक की नौकरी में कभी पहले शक्ल तक नही देखी वह इंसान मुझे आखिर इतनी बेखौफी के साथ लिफाफा क्यों देने आ पहुंचा है? मैं अभी स्व-सवालों की श्रृंखला में मन-ही-मन उलझा हुआ था कि, तब तक वह अजनबी ही बोलने लगा- सर मेरा नाम कंवलजीत वालिया है. मेरा आपके इलाके में छोटा-मोटा खाने-कमाने का कारोबार है. ऐसा कारोबार जो दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ को खुश रखे बिना चल ही नहीं सकता है.”

भारत का सबसे बड़ा 'कॉलगर्ल-दलाल'

बिना सांस रोके वह अजनबी धारा-प्रवाह अपनी बात कहकर मेरे जवाब के इंतजार में मेरा मुंह ताकने लगा. मैंने उसकी ऐसी हिमाकत के चलते उसे कुर्सी पर बैठाना भी मुनासिब नहीं समझा. हां, मैं इतना समझ गया उसका नाम जानते ही कि उस जमाने में कंवलजीत वालिया से बड़ा भारत में दूसरा और कोई 'कॉलगर्ल-दलाल' नहीं था. जो कुछ रहे भी होंगे वे भी उसी की देख-रेख में देह-व्यापार का अनैतिक धंधा कर और करा रहे होंगे. उसकी इस हरकत से मैं समझ गया कि मुझसे पहले उस जमाने में दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ में जो भी थानेदार तैनात रहकर जा चुके होंगे, कंवलजीत वालिया उनकी 'लिफाफा सेवा' करता रहा होगा. इसीलिए वह बेखौफ होकर मुझे भी 'नजराने' का वह लिफाफा देने की भयंकर भूल करने चला आया. दिल्ली पुलिस में मेरी नौकरी का अतीत जाने बिना ही.”

जब तक दिल्ली पुलिस और मेरी बदनामी नहीं होगी तब तक...

'दारोगा से डीसीपी एल एन राव आत्मकथा' में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के पूर्व अधिकारी आगे लिखते हैं, “मुझे गुस्सा तो बहुत आया. मगर मंझा हुआ पुलिसिया दारोगा होने के चलते मैं उस वक्त खून का घूंट पीकर खुद को खामोश रख गया. मैंने अपनी भाषा या चेहरे से उस कॉलगर्ल दलाल को इसका कतई अहसास नहीं होने दिया कि, मैं उसकी उस शर्मनाक हरकत से किस कदर उससे मन ही मन खार खा चुका था. मैंने उससे कहा कि लिफाफा आप मुझे न दें. मैं तब तक आपके काले-कारोबार (कॉलगर्ल रैकेट संचालन का घिनौने बदनाम धंधा) की ओर पुलिसिया नजर उठाकर नहीं देखूंगा, जब तक दिल्ली पुलिस और मेरी बदनामी नहीं होगी. या अगर किसी दिन दिल्ली के किसी आम-नागरिक ने अगर मुझसे आकर उसकी शिकायत की तब भी मैं उसके ऊपर टूट पड़ूंगा. वह मेरी नसीहत सुनकर खामोशी के साथ चला गया. यह मानकर कि मैं बाकी पुलिस वालों की तरह मंथली वसूली में विश्वास नहीं करता हूं.”

जब आई कंवलजीत वालिया के गिरफ्तारी की बारी

एल एन राव आगे लिखते हैं कि, “उस दिन कॉलगर्ल दलाल-सरगना कंवलजीत वालिया से मंथली का वह लिफाफा न लेना और आगे से उसके रास्ते बंद कर देना मुझे आइंदा बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ. उस घटना के करीब तीन साल बाद यानी साल 1987 के सितंबर-अक्टूबर महीने में एक दिन दक्षिणी दिल्ली जिला डीसीपी का संदेश मिला कि, पुलिस आयुक्त (आईपीएस वेद मारवाह) तत्काल कानूनी रूप से कॉलगर्ल सरगना कंवलजीत वालिया का काला कारोबार नेस्तनाबूद करवाना चाहते हैं. यह जिम्मेदारी डीसीपी ने मेरे ऊपर दी. तो मैं खुशी-खुशी कंवलजीत वालिया को गिरफ्तार करने को तैयार हो गया. मेरी खुशी की दो वजहें थीं कि, मैं उससे मंथली-चौथ-वसूली का लिफाफा हर महीने नहीं लेता था, इसलिए मुझे उसे गिरफ्तार करने में कतई संकोच नहीं था. दूसरे, जिला डीसीपी ने सीधे मुझे उसकी गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंपी थी. तीसरी और असल बात थी कि दिल्ली पुलिस के तब के कमिश्नर वेद मारवाह जी खुद कंवलजीत वालिया जैसी समाज की गंदगी को साफ करने पर आमादा था.”

गिरफ्तारी के साथ ही पहुंच गया वकील

बस फिर क्या था, तत्कालीन सहायक पुलिस आयुक्त टी एस भल्ला के नेतृत्व में बनी टीम की मदद से मैंने कंवलजीत वालिया को मय तीन कॉगर्ल्स के गिरफ्तार कर लिया. उसकी गिरफ्तारी की खबर से अगले दिन देश और दिल्ली के अखबार अटे पड़े थे. क्योंकि कोई भी पुलिस अधिकारी उस जमाने में कंवलजीत वालिया जैसे कॉलगर्ल सरगना की ओर आंख उठाकर देखने की जुर्रत करने से पहले सौ-बार सोचता था. किताब के मुताबिक, “जैसे ही उन दिनों दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ के दारोगा रहे एल एन राव ने कॉलगर्ल सरगना को मय तीन लड़कियों के गिरफ्तार किया. उसी वक्त उसका वकील मौके पर आ गया. वह वकील भी दिल्ली पुलिस का एक रिटायर्ड एसीपी ही था.”

वालिया ने बात न मानने पर दी ट्रांसफर की धमकी

एल एन राव अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “दिल्ली पुलिस के उस पूर्व एसीपी और कॉलगर्ल सरगना कंवलजीत वालिया के वकील ने मुझे ऑफर किया कि मैं उसके मुवक्किल (कॉलगर्ल दलाल कंवलजीत वालिया) को मौके पर ही कानूनी खानापूर्ति करके जमानत दे दूं. उसे कोर्ट में पेश न किया जाए. इसके बदले में मुझे 5 लाख रुपए मौके पर ही देने का लालच भी दिया गया. जब मैं गिरफ्तार आरोपियों को कोर्ट में पेश करने की जिद पर अड़ा ही रहा तब, उसके वकील ने कहा कि तब फिर मीडिया के सामने उसके मुवक्किल और उसके साथ गिरफ्तार लड़कियों की तस्वीरें न खिंचवाई जाएं. इससे बदनामी होगी. इसके बदले उसके वकील ने तीन लाख रुपए देने का पासा फेंका. वह भी मैंने जब फेल कर दिया. तब बौखलाया कंवलजीत वालिया कोर्ट में पेशी के दौरान मुझे धमकाते हुए बोला, तुमने मेरी बात नहीं मानी है. अब देखना मैं तुम्हें साउथ डिस्ट्रिक्ट से ही न ट्रांसफर करवा दूं तो कहना.”

'जिसने गिरफ्तार करवाया, उसी ने कर दिया मेरा ट्रांसफर'

“कंवलजीत वालिया जैसे देश के कुख्यात दलाल को तो डीसीपी ने खुद ही मुझसे, तब के दिल्ली पुलिस कमिश्नर वेद मारवाह के आदेश पर गिरफ्तार करवाया था. इसलिए मुझे तो डरने की कोई बात ही नहीं थी. भला मेरा ट्रांसफर एक कॉलगर्ल दलाल की धमकी पर पुलिस आयुक्त क्यों और कैसे कर देंगे, जब उन्होंने ही कंवलजीत को गिरफ्तार करके जेल में डालने का आदेश दिया था. मैंने तो अपने जिला डीसीपी के जरिए मिले पुलिस आयुक्त के ही आदेश की तामील की थी. मैं इसी विश्वास में डूबा खुश हो रहा था. मुझे धक्का तो तब लगा जब मेरे द्वारा कंवलजीत वालिया की गिरफ्तारी किए जाने के तीन दिन बाद ही दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ से मेरा ट्रांसफर का आदेश आ गया. वह भी उन्हीं पुलिस आयुक्त वेद मारवाह के आदेश पर जिन्होंने खुद ही डीसीपी के जरिये मुझे कंवलजीत को गिरफ्तार करवाया था. मेरा ट्रांसफर स्पेशल ब्रांच में किया गया था.''

यह बात जैसे ही डीसीपी पी आर एस बरार तक पहुंची तो वह भी भौंचक्के रह गए कि, जिन पुलिस कमिश्नर वेद मारवाह ने ही मुझसे कंवलजीत वालिया को गिरफ्तार करवाया. वही पुलिस आयुक्त भला उसकी गिरफ्तारी के तीन दिन बाद ही कैसे दारोगा राव का ट्रांसफर कर देंगे. बहरहाल मुझे डीसीपी बरार ने किसी भी कीमत पर दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ की टीम से ट्रांसफर पर स्पेशल ब्रांच उस वक्त नहीं जाने दिया. हालांकि कुछ महीने बाद मैं दक्षिणी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ से ट्रांसफर हो गया.”

crimeस्टेट मिरर स्पेशल
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