फतेहपुर में दलित के आशियाने पर चला बुलडोजर, PCS अफसर पर गिरी गाज; कौन हैं निलंबित SDM अर्चना अग्निहोत्री?
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में दलित दिव्यांग का घर गिराए जाने के बाद प्रशासन पर गाज गिरी है. SDM अर्चना अग्निहोत्री को लापरवाही के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है. सरकार ने तेज़ जांच के आदेश दिए हैं. मामला सिर्फ बुलडोजर कार्रवाई तक सीमित नहीं, बल्कि सिस्टम की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में दिव्यांग अनिल कुमार का मकान प्रशासन द्वारा गिरा दिया गया. अनिल एक दलित हैं और उनका घर भूमिधरी ज़मीन पर बना हुआ था. आरोप है कि प्रशासन ने गलत तरीके से कार्रवाई करते हुए गाटा संख्या 52 के हिस्से में बुलडोजर चलाया, जबकि आदेश गाटा संख्या 36 को लेकर था. इस कार्रवाई ने प्रशासनिक संवेदनशीलता और न्यायिक प्रक्रिया पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं.
मामला सामने आते ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सख्ती दिखाई. SDM और PCS अधिकारी अर्चना अग्निहोत्री को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया. प्रमुख सचिव कार्मिक एम. देवराज ने उनके खिलाफ विभागीय जांच के आदेश जारी किए. जांच के लिए लखनऊ मंडल के आयुक्त को नामित किया गया है. सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया कि किसी भी स्तर की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
SDM पर क्या है आरोप?
अर्चना अग्निहोत्री पर आरोप है कि उन्होंने बेदखली की कार्रवाई से पहले न तो मौके का मुआयना किया और न ही उचित प्रशासनिक सावधानी बरती. प्रमुख सचिव ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन व अपील) नियमावली 1999 के तहत कर्तव्यपालन में घोर लापरवाही की है. यह लापरवाही सीधे तौर पर गरीब और वंचित वर्ग के अधिकारों का उल्लंघन मानी जा रही है.
प्रशासनिक स्तर पर बड़ी चूक
जांच में यह भी पता चला कि राजस्व विभाग की टीम ने जिस जमीन पर बुलडोजर चलाया, वह गलत गाटा संख्या की थी. आदेश 36 पर था, जबकि तोड़फोड़ 52 पर हुई. इस तकनीकी गलती ने पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक निगरानी को कठघरे में ला खड़ा किया है. इससे पहले कानूनगो जितेंद्र सिंह और लेखपाल अराधना देवी को भी निलंबित किया जा चुका है.
कौन हैं अर्चना अग्निहोत्री?
2021 बैच की PCS अधिकारी अर्चना अग्निहोत्री का बैकग्राउंड शहरी और अंतरराष्ट्रीय है. दिल्ली में पली-बढ़ीं अर्चना ने अमेरिका से शिक्षा प्राप्त की और एक वैश्विक कंपनी में कार्यरत रहीं. देश सेवा के उद्देश्य से उन्होंने सरकारी सेवा में आने का फैसला किया. कुछ समय के लिए वह आम आदमी पार्टी से भी जुड़ीं, लेकिन बाद में कथित भ्रष्टाचार के चलते अलग हो गईं. उनके करियर की यह बड़ी गिरावट मानी जा रही है.
दलित उत्पीड़न का एंगल भी आया सामने
चूंकि पीड़ित परिवार दलित समुदाय से आता है और अनिल कुमार दिव्यांग भी हैं, इसलिए इस मामले ने सामाजिक संवेदनशीलता का भी आयाम ले लिया है. विपक्षी दलों और दलित संगठनों ने इसे दलित उत्पीड़न का मामला बताते हुए सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की. यह केस अब महज़ प्रशासनिक लापरवाही से आगे बढ़कर सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का मुद्दा बन चुका है.
क्या सिस्टम में फैली है अनदेखी की संस्कृति?
यह घटना दर्शाती है कि ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी में भारी खामियां हैं. आदेश कुछ और होता है, कार्यवाही कहीं और की जाती है. खासकर जब मामला गरीब या हाशिए पर मौजूद समुदाय का हो, तब ऐसी लापरवाहियाँ और भी घातक साबित होती हैं. इसने सरकारी मशीनरी की जवाबदेही और निगरानी प्रणाली पर कठोर समीक्षा की जरूरत को उजागर कर दिया है.
मिसाल बनेगा या फिर भुला दिया जाएगा?
योगी सरकार की सख्त कार्रवाई ने इस मामले को गंभीरता से लेने का संकेत जरूर दिया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या आगे भी ऐसे मामलों में कार्रवाई इसी तत्परता से होगी? क्या दोषियों को वाकई सजा मिलेगी या यह केस भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दब जाएगा? यह आने वाले वक्त में स्पष्ट होगा कि यह कार्रवाई मिसाल बनेगी या सिस्टम का एक और हिस्सा बनकर रह जाएगी.