लिंग परिवर्तन के बाद बदल सकता है नाम? इलाहाबाद हाईकोर्ट में उठा अहम सवाल; 30 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई
शाहजहांपुर के एक शिक्षक का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में सामाजिक और कानूनी दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस सुनवाई से यह तय होगा कि भारत में लिंग परिवर्तन के बाद नाम बदलने का अधिकार कितना सरल, स्पष्ट और कानूनी रूप से सुरक्षित है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट में इन दिनों एक ऐसा अहम मामला सामने आया है, जो पहचान, अधिकार और सामाजिक स्वीकृति से जुड़ा हुआ है. यह मामला शाहजहांपुर के एक सहायक शिक्षक से जुड़ा है, जिन्होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी (Gender Reassignment Surgery) के बाद अपने सरकारी रिकॉर्ड में नाम बदलने की अनुमति मांगी है. इस याचिका पर कोर्ट ने कहा है कि अब वह यह तय करेगा कि क्या लिंग परिवर्तन के बाद कोई व्यक्ति कानूनी रूप से अपना नाम बदल सकता है या नहीं.
मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी कर रहे हैं. अदालत ने इस विषय को बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण मानते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एच. आर. मिश्रा और अधिवक्ता वी. आर. तिवारी से इस पर कानूनी रूप से मदद करने का अनुरोध किया है. कोर्ट ने दोनों अधिवक्ताओं को यह भी निर्देश दिया है कि वे कर्नाटक और मणिपुर हाईकोर्ट के 19 अगस्त 2025 को दिए गए फैसलों का अध्ययन करें और यह देखें कि उन मामलों में न्यायालयों ने लिंग परिवर्तन के बाद पहचान और नाम बदलने के विषय में क्या निर्णय दिए थे. इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को निर्धारित की जाएगी.
याचिकाकर्ता कौन हैं?
यह याचिका शाहजहांपुर जिले के एक सहायक शिक्षक ने दाखिल की है. उन्होंने अदालत से गुहार लगाई है कि लिंग परिवर्तन के बाद उन्हें अपना नाम बदलने का कानूनी अधिकार दिया जाए और यह बदलाव सरकारी रिकॉर्ड जैसे- सेवा रजिस्टर, शैक्षणिक दस्तावेज़ और पहचान पत्रों में किया जा सके. शिक्षक ने बताया कि उन्होंने साल 2020 में अपना लिंग परिवर्तन कराने की प्रक्रिया शुरू की थी. यह प्रक्रिया लंबी और जटिल थी, जिसमें मेडिकल सर्जरी, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और कानूनी औपचारिकताएं शामिल थी. तीन साल के बाद 2023 में यह सर्जरी पूरी तरह सफल हो गई.
ज़िला प्रशासन में क्या हुआ?
लिंग परिवर्तन के बाद याचिकाकर्ता ने ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) के पास आवेदन देकर लिंग परिवर्तन प्रमाणपत्र और नया पहचान पत्र भी प्राप्त कर लिया. यानी प्रशासनिक स्तर पर उन्हें नए लिंग की पहचान मिल चुकी है. अब उन्होंने अगला कदम उठाते हुए अदालत से यह मांग की है कि सरकारी रिकॉर्ड में उनका नाम भी उसी के अनुरूप बदला जाए, ताकि उनकी नई पहचान पूरी तरह से मान्यता प्राप्त कर सके.
किन विभागों को बनाया गया है पक्षकार?
इस मामले में याची ने राज्य सरकार, माध्यमिक शिक्षा के निदेशक, बरेली के क्षेत्रीय सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद, और शिक्षा निदेशालय, बलदा कॉलोनी, न्यू हैदराबाद, निशातगंज (लखनऊ) को प्रतिवादी बनाया है. इन सभी विभागों को नोटिस जारी किया गया है ताकि वे कोर्ट में अपनी-अपनी प्रतिक्रिया और तर्क पेश कर सकें.
क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?
यह मामला केवल एक व्यक्ति के नाम परिवर्तन का नहीं, बल्कि लिंग परिवर्तन के बाद पहचान के अधिकार से जुड़ा एक बड़ा सवाल उठाता है. भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय और लिंग परिवर्तन कराने वाले व्यक्तियों को कानूनी मान्यता तो मिलती है, लेकिन कई बार सरकारी दस्तावेजों में नाम और लिंग में बदलाव कराने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल हो जाती है. कोर्ट का यह फैसला आगे चलकर एक नज़ीर (precedent) बन सकता है, जो भविष्य में ऐसे अन्य मामलों के लिए दिशा तय करेगा.
अगली सुनवाई
अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को होगी, जब कोर्ट यह तय करेगा कि क्या लिंग परिवर्तन के बाद व्यक्ति को सरकारी रिकॉर्ड में नाम बदलने की अनुमति दी जा सकती है. अदालत ने साफ कहा है कि यह संविधान में प्रदत्त पहचान और समानता के अधिकारों से जुड़ा मुद्दा है, और इसलिए इस पर गहराई से विचार किया जाएगा.