बनवाने गई थी पति का डेथ सर्टिफिकेट, बन गया खुद का; अब जिंदा होकर भी महिला काट रही दफ्तरों के चक्कर
अलीगढ़ में सरोज देवी अपने पति का डेथ सर्टिफिकेट बनवाने गईं, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें ही मृत घोषित कर दिया गया. एक साधारण से दस्तावेज़ की इस गलती ने उनकी पूरी जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी है. कागज़ों में ‘मृत’ घोषित होते ही उनका आधार कार्ड ब्लॉक हो गया और सरकारी योजनाओं से मिलने वाले सभी लाभ एक झटके में बंद हो गए.
अलीगढ़ में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां 58 साल सरोज देवी की जिंदगी पिछले तीन सालों से एक अजीब और दर्दनाक लड़ाई में फंसी हुई है. वह जिंदा हैं, लेकिन कागज़ों पर उन्हें 'मृत' घोषित कर दिया गया है. इस गलती ने न सिर्फ उनकी पहचान पर सवाल खड़ा कर दिया है, बल्कि उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को भी ठप कर दिया है.
दरअसल वह अपने पति का डेथ सर्टिफिकेट बनवाने गई थी, लेकिन सिस्टम ने उन्हें जिंदा होते हुए उनका मृत्यु प्रणाम पत्र दे दिया. ब अब ऐसे में सरोज देवी जिंदा होकर भी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं, सिर्फ यह साबित करने के लिए कि वह सच में जीवित हैं.
जिंदा होकर भी कागज़ों में 'मृत'
चमन नगरिया गांव की सरोज देवी अपने पति जगदीश प्रसाद की मृत्यु का प्रमाणपत्र लेने गई थीं. पति का निधन 19 फरवरी 2000 को हुआ था और सालों बाद जब उन्होंने 2022 में इसका प्रमाणपत्र बनवाने की कोशिश की, तो उनके हाथ में जो कागज़ आया, उसने उनकी पूरी दुनिया उलटकर रख दी.नागर पंचायत के कर्मचारियों ने गलती से उनके पति का नहीं, बल्कि उनका खुद का डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया. वहीं से शुरू हुआ उनका संघर्ष.
आधार हुआ ब्लॉक
डेथ सर्टिफिकेट की इस चूक ने उनकी पहचान को ही सवालों में डाल दिया. उनका आधार कार्ड ब्लॉक हो गया. सरकारी योजनाओं के लाभ मिलना बंद हो गए. बैंक, अस्पताल, राशन, किसी भी सरकारी काम के लिए आधार जरूरी है, और सरोज देवी के पास वह सुविधा अब नहीं है. एक जीवित महिला होने के बावजूद वह हर दफ्तर में यह साबित करने में लगी हैं कि वह सच में जिंदा हैं.
दफ्तरों के चक्कर और बढ़ती बेबसी
सरोज देवी पिछले कई महीनों से अलग-अलग कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं. हर जगह जाने पर नए बहाने सुनने को मिले. न कोई सुनवाई, न कोई समाधान. थककर उन्होंने शनिवार को खैर के एसडीएम शिशिर कुमार से मुलाकात की. उन्होंने अफसर को पूरी बात बताई. सरोज देवी ने कहा कि 'मैं महीनों से गलती सुधरवाने के लिए चक्कर काट रही हूं. लेकिन अधिकारी सिर्फ तारीखें बढ़ाते रहते हैं. अब आधार भी बंद हो गया है.'
एसडीएम की कार्रवाई, लेकिन क्या मिलेगा न्याय?
एसडीएम शिशिर कुमार ने बताया कि उन्होंने शिकायत ले ली है और एक जांच समिति बनाई गई है. समिति क्या करेगी, कितने समय में रिपोर्ट देगी, यह अभी साफ है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि एक साधारण सी लिखाई की भूल की सजा एक बुजुर्ग महिला क्यों भुगत रही है? क्या किसी की पहचान इतनी सस्ती है कि एक कागज़ की गलती उसे मिटा दे? क्या सरकारी दफ्तरों की लापरवाही जिंदगी भर की पहचान खत्म कर सकती है?





