जब 216 रुपये के बिस्किट के बदले कंपनी को चुकाने पड़े 3816 रुपये, आखिर क्या है पूरा मामला?
Parle-G बिस्किट्स प्राइवेट लिमिटेड और रिलायंस स्मार्ट को जिला उपभोक्ता आयोग ने 3,816 रुपये तत्काल भुगतान करने को कहा है. दरअसल ग्राहक को एक बिस्किट में मरी हुई मक्खी चिपकी हुई दिखाई दी. इससे परिवार के सदस्यों की तबीयत बिगड़ गई. जिसके बाद ग्राहक ने शिकायत दर्ज कराई.
जिला उपभोक्ता आयोग ने एक गंभीर उपभोक्ता शिकायत पर निर्णय सुनाते हुए Parle-G बिस्किट्स प्राइवेट लिमिटेड और रिलायंस स्मार्ट को संयुक्त रूप से दोषी ठहराया है. आयोग ने दोनों कंपनियों पर उपभोक्ता को खराब उत्पाद बेचने और इससे हुई मानसिक पीड़ा एवं असुविधा के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया है.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
उपभोक्ता आयोग के सदस्य मुकेश शर्मा और राजेंद्र प्रसाद ने शिकायतकर्ता को बिस्किट की कीमत 216 रुपये, मानसिक पीड़ा, हानि और असुविधा के लिए 2,500 रुपये तथा 1,100 रुपये केस खर्च के रूप में कुल 3,816 रुपये तत्काल भुगतान करने को कहा है.
पैकेट खोलने पर मिला मरा हुआ कीड़ा
रेवाड़ी निवासी रमन कुमार ने अपनी शिकायत में बताया कि उन्होंने 12 मार्च 2024 को रिलायंस स्मार्ट बीएमजी मॉल से घरेलू सामान खरीदा था, जिसमें पारलेजी गोल्ड (1 किलो, 126 रुपये) और पारलेजी ग्लूकोज (90 रुपये) शामिल थे. घर पहुंचकर जैसे ही पैकेट खोला, एक बिस्किट में मरी हुई मक्खी चिपकी हुई दिखाई दी. इससे परिवार के सदस्यों की तबीयत बिगड़ गई. इसके बाद उन्होंने दोनों कंपनियों के खिलाफ 5 लाख रुपये मुआवजा और 25,000 रुपये मुकदमा खर्च की मांग करते हुए शिकायत दर्ज कराई.
कंपनियों का बचाव
उत्तर में पारलेजी कंपनी ने कहा कि उनका उत्पाद पूरी तरह सुरक्षित और FSSAI प्रमाणित है. यदि पैकेट में कोई खराबी आई है, तो वह परिवहन के दौरान सील ढीली होने के कारण हो सकती है. रिलायंस स्मार्ट ने कहा कि वह केवल रिटेलर है और उसने पैकेट उपभोक्ता को सील स्थित में दिया था, इसलिए उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं बनती.
आयोग ने दोनों पक्षों के तर्क खारिज किए
उपभोक्ता आयोग ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता द्वारा पेश फोटो और पैकेट में मक्खी साफ़ दिख रही है. दोनों कंपनियां यह साबित नहीं कर पाईं कि उत्पाद में दोष नहीं था. आयोग ने कहा कि निर्माता और रिटेलर दोनों सप्लाई चेन का हिस्सा होने के कारण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत दोनों संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं.
आयोग ने आदेश दिया कि 45 दिनों के अंदर राशि न देने पर मुआवज़े पर 9% सालाना ब्याज लागू होगा. अगर आदेश का पालन नहीं किया गया तो शिकायतकर्ता, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 71 के तहत एक्जीक्यूशन पिटीशन दायर कर सकता है. धारा 72 के अनुसार दोषी पक्ष पर तीन साल तक की जेल, एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.





