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भजन-कीर्तन और मुर्गे का आशीर्वाद! भरतपुर के 'कुआं वाला' मेला में बच्चे के मुंडन की अजीबोगरीब पंरपरा, जानें इसके बारे में

Bharatpur News: भरतपुर जिले के प्रसिद्ध ‘कुआं वाला मेला’ में बच्चों का मुंडन संस्कार कराने के बाद एक बेहद अनोखा धार्मिक-आस्था आधारित उत्सव होता है. ज्यादातर लोग अपने छोटे बच्चों का मुंडन करवाने और मुर्गे से आशीर्वाद दिलाने आते हैं.

भजन-कीर्तन और मुर्गे का आशीर्वाद! भरतपुर के कुआं वाला मेला में बच्चे के मुंडन की अजीबोगरीब पंरपरा, जानें इसके बारे में
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( Image Source:  canava )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 2 July 2025 7:30 AM IST

Bharatpur News: राजस्थान अपनी अनोखी संस्कृति और मान्यताओं के लिए जाना जाता है. यहां पर अलग-अलग त्योहार और अनुष्ठान को लेकर आज भी पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है. इनमें से ही एक है, बच्चे के मुंडन पर मुर्गे का आशीर्वाद दिलाना. जी हां राज्य के भरतपुर जिले में आषाढ़ माह में 'कुआं वाला' मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें यह अजीबोगरीब परंपरा निभाई जाती है.

भरतपुर का 'कुआं वाला' मेला लोगों की धार्मिक आस्था और पारंपरिक मान्यताओं का प्रतीक है. लोग इसमें बड़ी श्रद्धा से शामिल होते हैं. मुर्गे का आशीर्वाद दिलाना सुनने में अजीब लगता है, लेकिन ये परंपरा है तो है. आइए इसके बारे में आपको बताते हैं.

कुआं वाला मेले का आयोजन

हर साल आषाढ़ माह में कुआं वाला मेला में राजस्थान के अलग-अलग गांव से लोग शामिल होने आते हैं. ज्यादातर लोग अपने छोटे बच्चों का मुंडन करवाने और मुर्गे से आशीर्वाद दिलाने आते हैं. ऐसा माना जाता है कि कुआं बाबा की कृपा से बच्चों की लगी बुरी नजर उतर जाती है. साथ ही भूत बाधा की नकारात्मक शक्ति से छुटकारा मिलता है.

मुंडन के लिए विशेष पूजा का आयोजन

इस अनोखे मेले में बच्चे के मुंडन के लिए विशेष पूजा कराई जाती है. पूजा संपन्न होने के बाद जिंदा मुर्गे से बच्चे को आशीर्वाद दिलाने के लिए मर्गे को बच्चे के आसपास घुमाया जाता है. ऐसा करने से बच्चों की बुरी नजर उतर जाती है. इतना ही नहीं श्रद्धालु अपने घरों से खाने का सामान सब्जी सब लेकर आते हैं और यहीं पर बनाकर प्रसाद के रूप में उसे बांटते हैं. यहां तक की ढोल-नगाड़े के साथ भजन-कीर्तन भी किया जाता है.

कब-कब लगता है मेला?

कुआं वाला मेला आषाढ़ माह में हर सोमवार के दिन लगता है, जिसमें भारी संख्या में महिलाएं अपने बच्चों को लेकर आती हैं. बच्चे को झाड़-फूंक भी दिलाई जाती है. इस मेले से मुर्गे वालों की तो मौज हो जाती है और वह खूब कमाई करते हैं. लोग मेले से पहले रात को ही पुआ, पुरी-सब्जी बनाकर रख देते हैं. सुबह मेले और पूजा के बाद सब मिलकर खाते हैं.

मुंडन को लेकर मान्यताएं

हिंदू धर्म में मुंडन संस्कार को बहुत महत्व दिया जाता है, जो आमतौर पर बच्चे की पहली सालगिरह या तीन वर्ष की आयु में होता है. शास्त्रों में वर्णित है कि आत्मा कई जन्मों के बाद मानव शरीर प्राप्त करती है. लगभग 84 लाख योनीयां और मुंडन उस पहले बाल को हटाकर पिछले जन्मों की नकारात्मक धारणाएं मिटाता है. मुंडन को नए जीवन की शुरुआत, अहंकार व बुराई से दूर होने और भगवत समर्पण का प्रतीक माना जाता है.

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