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नहीं मिली एंबुलेंस, बेटी के शव को कपड़े में लपेटकर 90 किमी तक पिता ने किया सफर; दिल दहला देगी मुंबई की यह घटना

पालघर के सखाराम कावर को नासिक सिविल अस्पताल से एम्बुलेंस न मिलने के कारण अपनी मृत बच्ची का शव प्लास्टिक बैग में लेकर 90 किमी तक बस से सफर करना पड़ा. पत्नी अविता को समय पर इलाज नहीं मिला और प्रसव के बाद बच्ची मृत पैदा हुई. अस्पतालों की लापरवाही, एम्बुलेंस की कमी और सिस्टम की बेरुखी ने इस आदिवासी परिवार को दर्दनाक हालात झेलने पर मजबूर कर दिया. यह घटना देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करती है.

नहीं मिली एंबुलेंस, बेटी के शव को कपड़े में लपेटकर 90 किमी तक पिता ने किया सफर; दिल दहला देगी मुंबई की यह घटना
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Sakharam Kavar story maharashtra: मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर पालघर जिले के एक छोटे से गांव जोगलवाड़ी में रहने वाले सखाराम कावर की आवाज़ उस समय कांप उठी, जब उन्होंने अपनी नवजात मृत बच्ची को लेकर किए गए 90 किलोमीटर के दर्दनाक सफर को याद किया. कटकारी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 28 वर्षीय सखाराम ने नासिक सिविल अस्पताल से अपनी बेटी का शव घर लाने के लिए जब एम्बुलेंस मांगी, तो उन्हें मना कर दिया गया. मजबूरन, उन्होंने 20 रुपये में एक कैरी बैग खरीदा, बच्ची को कपड़े में लपेटा और महाराष्ट्र राज्य परिवहन (MSRTC) की बस से शव को लेकर अपने गांव पहुंचा.

सखाराम और उनकी 26 वर्षीय पत्नी अविता तीन सप्ताह पहले ही ईंट भट्ठे की मजदूरी छोड़कर अपने गांव लौटे थे. उनकी तीसरी संतान का जन्म होने वाला था और वे चाहते थे कि यह प्रसव सुरक्षित और अपने घर के पास हो, लेकिन 11 जून को जब अविता को लेबर पेन शुरू हुआ, उनकी मुसीबतों की शुरुआत हो गई.

"हम सुबह से एम्बुलेंस के लिए कॉल करते रहे लेकिन कोई नहीं आया,"

सखाराम ने बताया, "हम सुबह से एम्बुलेंस के लिए कॉल करते रहे लेकिन कोई नहीं आया," गांव की आशा वर्कर भी शुरू में उपलब्ध नहीं थी. जब बाद में उन्होंने 108 इमरजेंसी नंबर पर कॉल किया, तो कोई जवाब नहीं मिला. अंततः एक प्राइवेट गाड़ी का इंतज़ाम हुआ और अविता को खोदाला पीएचसी ले जाया गया.

उपचार में देरी और अपमानजनक व्यवहार

अविता बताती हैं, "रास्ते में गर्भ में हरकत महसूस हो रही थी, लेकिन पीएचसी पहुंचने पर मुझे एक घंटे से ज़्यादा इंतज़ार कराया गया." बाद में उन्हें मोखाडा ग्रामीण अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां उन्हें एक कमरे में अलग-थलग कर दिया गया. जब सखाराम ने इस बात का विरोध किया, तो अस्पताल प्रबंधन ने पुलिस को बुला लिया. आरोप है कि पुलिस ने सखाराम की पिटाई की.

डॉक्टरों ने बताया कि भ्रूण की धड़कन नहीं सुनाई दे रही है, और तुरंत नासिक सिविल अस्पताल रेफर कर दिया. चूंकि एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी, इसलिए आसे गांव से 25 किलोमीटर दूर से एम्बुलेंस मंगाई गई.

मृत बच्ची का जन्म और शव ले जाने की पीड़ा

अविता रात को देर से नासिक पहुंचीं और 12 जून की सुबह 1:30 बजे उन्होंने एक मृत बच्ची को जन्म दिया. अगले दिन अस्पताल ने शव सखाराम को सौंप दिया, लेकिन शव घर ले जाने के लिए कोई एम्बुलेंस नहीं दी गई. उन्होंने बताया, "मैंने 20 रुपये में कैरी बैग खरीदा, बच्ची को कपड़े में लपेटा और बस से गांव पहुंच गया. किसी ने मुझसे नहीं पूछा कि मैं क्या ले जा रहा हूं." उसी दिन बच्ची का गांव में अंतिम संस्कार कर दिया गया।

13 जून को फिर हुई एम्बुलेंस की बेइज्जती

13 जून को जब सखाराम अपनी पत्नी को अस्पताल से घर लाने नासिक पहुंचे, तो उन्हें एक बार फिर एम्बुलेंस देने से मना कर दिया गया. अविता, जो शारीरिक रूप से बेहद कमज़ोर थीं, को भी बस से ही गांव लौटना पड़ा. उन्हें कोई दवा भी नहीं दी गई.

मोखाडा ग्रामीण अस्पताल के डॉक्टर भाऊसाहेब चत्तर ने इस घटना की पुष्टि की, लेकिन दावा किया कि अस्पताल ने एम्बुलेंस की पेशकश की थी और सखाराम ने कथित तौर पर मना कर दिया. हालांकि, सखाराम ने इस दावे को नकारते हुए कहा- मैंने अपनी बच्ची को उनकी लापरवाही की वजह से खो दिया.

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