किन्तूर गांव से क्रांति तक... ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का बाराबंकी से क्या है कनेक्शन?
ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच यह ऐतिहासिक तथ्य फिर से चर्चा में है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की पारिवारिक जड़ें भारत के उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किन्तूर गांव से जुड़ी हैं. उनके दादा, सैय्यद अहमद मूसवी 'हिंदी', इसी गांव में जन्मे थे और 19वीं सदी में धार्मिक शिक्षा और अध्यात्मिक जीवन की तलाश में ईरान चले गए, जहां उनका परिवार स्थायी रूप से बस गया. यह संबंध केवल खून का नहीं, बल्कि भारत और ईरान के गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव का भी प्रतीक है.

Ayatollah Ali Khamenei Barabanki connection: ईरान और इजराइल के बीच तनाव अपने चरम पर है. इजराइल ने ईरान पर एयरस्ट्राइक की तो ईरान ने भी इजराइल पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं. दोनों पक्षों के कई लोगों की मौत हुई है. पश्चिम एशिया बारूद के ढेर पर बैठा है. ऐसे वक्त में एक चौंकाने वाली बात ने भारतीयों का ध्यान खींचा है कि क्या ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की जड़ें भारत के उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से जुड़ी हैं?
यह सवाल अचानक नहीं उठा. कई वर्षों से खुफिया, इतिहास और शिया परंपरा से जुड़े दस्तावेजों में खामेनेई की भारतीय विरासत की बात सामने आती रही है. अब जब ईरान-इजराइल संघर्ष अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है, यह ‘बाराबंकी लिंक’ फिर से गर्म बहस का विषय बन गया है.
अयातुल्ला अली खामेनेई का क्या है बाराबंकी कनेक्शन?
अयातुल्ला अली खामेनेई के दादा सैयद अहमद मूसवी 'हिंदी' को लेकर कुछ दस्तावेज बताते हैं कि वह भारत के बाराबंकी जिले के किन्तूर गांव के रहने वाले थे. उनका जन्म 1790 में हुआ था. वे एक समर्पित शिया मौलाना थे, जो 1830 के आस-पास धर्म के प्रचार के लिए ईराक और ईरान गए. फिर ईरान के ही 'खुमैन' कस्बे में बस गए. यहीं से उनका परिवार ईरान की क्रांतिकारी राजनीति में स्थापित हुआ. मूसवी ने भारत की पहचान को याद रखने के लिए अपने नाम के साथ 'हिंदी' उपनाम जोड़ा.
अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने 1979 की इस्लामी क्रांति का किया नेतृत्व
सैयद अहमद मूसवी 'हिंदी' के वंशज अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने 1979 की इस्लामी क्रांति का नेतृत्व किया और पश्चिम समर्थित शाह की सत्ता को उखाड़ फेंका. खुमैनी के बाद, अयातुल्ला अली खामेनेई 1989 से ईरान के सर्वोच्च नेता हैं. आज वही शख्स हैं, जो इजराइल से युद्ध की रणनीति तय कर रहे हैं.
ईरान-इजराइल संघर्ष और भारत का सूफी-संबंध
यह देखना बेहद दिलचस्प है कि जो व्यक्ति आज इज़राइल के खिलाफ ईरान की रणनीतिक और धार्मिक प्रतिक्रिया का नेतृत्व कर रहा है, उसके पूर्वज कभी अवध के सूफी-सांस्कृतिक केंद्र बाराबंकी में रहते थे. बाराबंकी सिर्फ एक भूगोलिक पहचान नहीं, बल्कि भारत के गंगा-जमुनी तहज़ीब और शिया-सुन्नी मेलजोल का प्रतीक रहा है. इसका मतलब यह नहीं कि भारत इस संघर्ष का हिस्सा है, लेकिन यह अवश्य दर्शाता है कि पश्चिम एशिया की राजनीति में भारत का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धागा बुना हुआ है.
भारत और खामेनेई: चुपचाप जुड़ा हुआ इतिहास
ईरानी क्रांति के बाद भारत और ईरान के रिश्ते हमेशा जटिल रहे हैं- कभी तेल, कभी अफगानिस्तान, कभी पाकिस्तान पर नजरिए को लेकर... अब, जबकि खामेनेई इज़राइल के खिलाफ खुलकर चेतावनी दे रहे हैं, भारत के लिए यह संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वह इजराइल और ईरान, दोनों का रणनीतिक साझेदार है, लेकिन खामेनेई के 'हिंदी' खून की यह विरासत दिखाती है कि भारत का प्रभाव वैश्विक राजनीति की जड़ों में कहीं न कहीं समाहित है.
इतिहास राजनीति को कैसे प्रभावित करता है
आज जब हम पश्चिम एशिया में संभावित युद्ध की ओर बढ़ते हुए तनाव को देख रहे हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि कैसे इतिहास, भूगोल और विरासत वैश्विक समीकरणों को प्रभावित करते हैं. बाराबंकी से निकला एक 'हिंदी' विद्वान, जिसने सैकड़ों साल पहले भारत छोड़ा, आज एक ऐसे राष्ट्र का नेतृत्व कर रहा है, जो पूरे मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन को बदलने की स्थिति में है... और शायद, यही 'इतिहास की साइलेंट डिप्लोमेसी' है, जो बिना किसी शोर के, वैश्विक घटनाओं की पृष्ठभूमि तय करती है.