गांव में ना पुल, ना सड़क! शिक्षा के लिए बहती नदी से लड़ते मास्टर साहब, वृंदाहा नदी बनी जीवन की सबसे बड़ी बाधा
यह तीनों गांव मानसून में तब टापू बन जाते हैं. जहां शिक्षक और बच्चे नदी पार करके स्कूल जाते हैं. स्कूल के करीब 60 से 70 बच्चे भी रोज इसी नदी को पार करके पढ़ाई करने आते हैं. किसी का कोई साधन नहीं, सिर्फ साहस और शिक्षा की चाह.

झारखंड के कोडरमा जिले में बसे झरकी, बिशुनपुर और सपहा गांव, ये तीनों नाम शायद किसी सरकारी फाइल में मामूली से लगें, लेकिन यहां की जमीनी सच्चाई ऐसी है, जो आपको झकझोर कर रख देगी. इन गांवों तक आज भी पक्की सड़क नहीं पहुंची. न कोई पुल, न कोई पक्का रास्ता और जब बारिश होती है, तो यह इलाका देश के नक्शे से जैसे कट जाता है.
इन गांवों तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता वृंदाहा नदी. गर्मियों और सर्दियों में तो लोग किसी तरह इसे पार कर ही लेते हैं, लेकिन बरसात के मौसम में यह नदी रौद्र रूप ले लेती है. पानी इतना बढ़ जाता है कि गांव के लोग लगभग 4 महीने तक बाहर की दुनिया से कट जाते हैं.
मानसून में गांव बन जाते हैं टापू
यह तीनों गांव मानसून में तब टापू बन जाते हैं. जहां शिक्षक और बच्चे नदी पार करके स्कूल जाते हैं. स्कूल के करीब 60 से 70 बच्चे भी रोज इसी नदी को पार करके पढ़ाई करने आते हैं. किसी का कोई साधन नहीं, सिर्फ साहस और शिक्षा की चाह.
आठवीं के बाद बंद हो जाती है पढ़ाई
इन तीन गांवों की संयुक्त आबादी करीब 1500 है, जिनमें 650 से ज्यादा मतदाता हैं, लेकिन स्कूल सिर्फ आठवीं तक है. इसके बाद बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते क्योंकि आगे जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है. दो स्कूल हैं, पर उनमें से एक तक भी पहुंचना मानसून में ‘मिशन’ जैसा बन जाता है.
प्रशासन का जवाब
इस मामले में जिले के उपायुक्त ऋतुराज ने बताया कि प्रशासन को जानकारी मिली है और उन्होंने पहले ही संबंधित विभाग को पत्र भेजा था. उन्होंने कहा कि 'हमें डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार कर भेजने को कहा गया था, जो भेजी जा चुकी है. जल्द ही समाधान की उम्मीद है.' फिलहाल प्रशासन ने स्थानीय पदाधिकारियों को अलर्ट मोड पर रखा है ताकि लोग नदी के पास न जाएं. साथ ही वैकल्पिक व्यवस्था पर भी काम चल रहा है.
आखिर कब तक?
हर बरसात में यह सवाल फिर से उठता है कि क्या इस बार गांववाले टापू नहीं बनेंगे? क्या बच्चों को जान जोखिम में डालकर स्कूल नहीं जाना पड़ेगा? क्या शिक्षा, सड़क और सुरक्षा सिर्फ चुनावी भाषण रह जाएगी? जवाब अभी भविष्य में है, लेकिन गांववालों की उम्मीदें आज भी ज़िंदा हैं.