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आदिवासी सीट पर BJP की सेंधमारी की कोशिश, घाटशिला से दिया बाबूलाल सोरेन को दोबारा मौका, क्या इस बार कहानी बदलेगी?

झारखंड की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है. घाटशिला विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि आदिवासी राजनीतिक समीकरणों की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है. इसी रणभूमि में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव खेला है. पार्टी ने दूसरी बार बाबूलाल सोरेन पर भरोसा जताते हुए उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया है.

आदिवासी सीट पर BJP की सेंधमारी की कोशिश, घाटशिला से दिया बाबूलाल सोरेन को दोबारा मौका, क्या इस बार कहानी बदलेगी?
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( Image Source:  x-@BJP4Jharkhand )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 15 Oct 2025 5:13 PM IST

झारखंड की राजनीति एक बार गरमाने वाली है. मौका है घाटशिला विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का, जहां मुकाबला सीधे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बीच माना जा रहा है. इस सीट पर भाजपा ने एक बार फिर दांव लगाया है उसी चेहरे पर, जिसने पिछली बार चुनाव हारकर भी पार्टी की उम्मीदें जिंदा रखी थीं.

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा विधायक चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भाजपा ने 11 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया है. यह सिर्फ एक उपचुनाव नहीं, बल्कि भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई और झामुमो के लिए जनाधार बचाने की चुनौती बन गया है.

रामदास सोरेन के निधन से खाली हुई सीट

यह उपचुनाव अचानक नहीं आया. झामुमो के कद्दावर नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन के कारण यह सीट खाली हुई. रामदास सोरेन घाटशिला की राजनीति का बड़ा चेहरा थे. उन्होंने 2009, 2019 और 2024 में विधानसभा सीट जीती और लगातार अपने आदिवासी जनाधार के दम पर क्षेत्र की राजनीति में प्रभाव बनाए रखा. लेकिन अब उनके निधन के बाद उपचुनाव की परिस्थितियां एक नई कहानी लिखने को तैयार हैं.

दूसरी बार मैदान में बाबूलाल सोरेन

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने घाटशिला सीट से बाबूलाल सोरेन पर दांव लगाया था, लेकिन मुकाबले में उनके सामने झामुमो के कद्दावर नेता रामदास सोरेन थे. परिणाम भाजपा के उम्मीदों के खिलाफ गया और बाबूलाल को 22,446 वोटों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद इस बार पार्टी ने उन्हें फिर से मौका देकर सबको चौंका दिया है. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि हार के बावजूद बाबूलाल ने अपने संगठनात्मक नेटवर्क और जनसंपर्क बनाए रखा. वे लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय हैं और आदिवासी समाज में उनकी गहरी पकड़ है. साथ ही उनकी ईमानदार और सादगीपूर्ण छवि ने भी भाजपा नेतृत्व का भरोसा बरकरार रखा. यही कारण है कि घाटशिला उपचुनाव में भाजपा ने एक बार फिर बाबूलाल सोरेन को ही मैदान में उतारकर बड़ा राजनीतिक दांव खेला है.

आदिवासी वोटों पर टिकी भाजपा की नजर

भाजपा इस उपचुनाव को आसान नहीं मान रही. घाटशिला विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है और यहां चुनाव परिणाम हमेशा से आदिवासी समीकरणों पर निर्भर करते हैं. यही कारण है कि भाजपा ने इस बार मैदान में उतरते ही बूथ प्रबंधन, माइक्रो कैंपेनिंग और जनसंपर्क अभियान की रणनीति पर तेजी से काम शुरू कर दिया है. पार्टी ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा तक इस चुनाव पर नजर रखे हुए हैं.

ऊंचे दांव, बड़ा परिणाम – 11 नवंबर को वोटिंग

घाटशिला के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर, ओडिशा और तेलंगाना की सीटों पर भी 11 नवंबर को उपचुनाव होंगे और 14 नवंबर को परिणाम आएंगे. लेकिन घाटशिला पर पूरे राज्य की नजर टिकी है, क्योंकि ये सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है.

क्या इस बार बदलेगी कहानी?

सवाल सिर्फ इतना है क्या बाबूलाल सोरेन पिछली हार का बदला ले पाएंगे? या झामुमो रामदास सोरेन की विरासत को आगे बढ़ाने में कामयाब होगा? घाटशिला की सियासी कहानी अभी अधूरी है. उसका असली क्लाइमैक्स तो 14 नवंबर को ही सामने आएगा.

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