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पहली पत्नी के रहते नहीं कर सकते दूसरी शादी! पैथोलॉजिस्ट मो. अकील आलम ने दी थी चार शादी वाली दलील, झारखंड HC ने दिया झटका

झारखंड हाई कोर्ट का यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह साफ करता है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के बाद किसी धर्म के बहुविवाह (multiple marriage) के अधिकार लागू नहीं होंगे. यानी, अगर कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है, तो पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना पूरी तरह गैरकानूनी है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से क्यों न हो.

पहली पत्नी के रहते नहीं कर सकते दूसरी शादी! पैथोलॉजिस्ट मो. अकील आलम ने दी थी चार शादी वाली दलील, झारखंड HC ने दिया झटका
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( Image Source:  Create By AI )
स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 12 Oct 2025 7:48 AM

झारखंड हाई कोर्ट ने धनबाद के पैथोलॉजिस्ट मोहम्मद अकील आलम को एक बड़ा झटका दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत शादी करता है, तो उस पर यही कानून लागू होगा ना कि उसका निजी या धार्मिक कानून. इसलिए इस एक्ट के तहत शादी करने के बाद कोई व्यक्ति धर्म के आधार पर दूसरी शादी को वैध नहीं ठहरा सकता. मामला झारखंड के धनबाद जिले का है, जहां डॉ. मोहम्मद अकील आलम नामक पैथोलॉजिस्ट ने 4 अगस्त 2015 को एक महिला से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की थी. लेकिन शादी के कुछ ही महीनों बाद, 10 अक्टूबर 2015 को उनकी पत्नी घर छोड़कर अपने मायके देवघर चली गईं.

अकील का कहना था कि उनकी पत्नी बिना किसी कारण के घर छोड़कर चली गईं और उन्होंने कई बार बुलाने की कोशिश की, लेकिन वह वापस नहीं आईं। इसके बाद अकील आलम ने देवघर फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Restitution of Conjugal Rights) की मांग की यानी वे अपनी पत्नी को दोबारा अपने पास लाना चाहते थे. लेकिन फैमिली कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी ने चौंकाने वाला खुलासा किया.

छुपाई पहली शादी

उसने बताया कि अकील आलम पहले से शादीशुदा हैं और उनकी पहली पत्नी अभी जीवित हैं. इतना ही नहीं, पहली पत्नी से अकील की दो बेटियां भी हैं. पत्नी ने अपने बयान में यह भी कहा कि शादी के बाद अकील ने उसके पिता पर दबाव बनाया कि वे अपनी संपत्ति उनके नाम कर दें. जब पिता ने ऐसा करने से इनकार किया, तो अकील ने पत्नी के साथ मारपीट की और उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. सुनवाई के दौरान फैमिली कोर्ट ने पाया कि अकील आलम ने शादी के समय रजिस्ट्रेशन फॉर्म में अपनी पहली शादी की जानकारी छिपाई थी. उन्होंने यह झूठा दावा किया था कि वे अविवाहित हैं.

शादी को वैध करने की दलील

इसके अलावा, बाद में अकील ने कोर्ट में यह तर्क भी दिया कि उनकी दूसरी शादी अवैध है, ताकि उन्हें पत्नी को गुज़ारा भत्ता (मेंटेनेंस) न देना पड़े. लेकिन बाद में जब वे अपनी पत्नी को वापस बुलाने की कोशिश में लगे, तो उन्होंने उसी शादी को वैध साबित करने की दलील दी. इस विरोधाभास ने अदालत का ध्यान खींचा. फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि चूँकि अकील की पहली पत्नी ज़िंदा थी, इसलिए उनकी दूसरी शादी कानून के अनुसार अवैध है. इसके बाद अकील आलम ने फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए झारखंड हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

धार्मिक या निजी कानून लागू नहीं होंगे

हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की बेंच ने की. दोनों न्यायाधीशों ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए स्पष्ट कहा कि जब कोई व्यक्ति स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत विवाह करता है, तो वह उसी कानून के प्रावधानों से बंध जाता है. उस पर धार्मिक या निजी कानून लागू नहीं होंगे.' कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4(ए) के अनुसार, विवाह के समय किसी भी पक्ष का पहले से कोई जीवित पति या पत्नी नहीं होना चाहिए. अगर किसी ने पहले से शादी कर रखी है, तो उसकी दूसरी शादी इस एक्ट के तहत मान्य नहीं मानी जाएगी.

दूसरी शादी वैध नहीं

इसके अलावा, अदालत ने यह भी याद दिलाया कि स्पेशल मैरिज एक्ट एक 'नॉन ऑब्स्टांटे क्लॉज' (Non Obstante Clause) से शुरू होता है. इसका मतलब यह है कि यह कानून किसी भी अन्य कानून चाहे वह धार्मिक हो या प्रथागत पर अधिक प्रभावी (overriding effect) रखता है. मतलब, अगर कोई व्यक्ति इस एक्ट के तहत शादी करता है, तो वह यह नहीं कह सकता कि उसका धर्म उसे एक से अधिक शादी की अनुमति देता है. इस स्थिति में धर्म या व्यक्तिगत कानून का सहारा लेकर दूसरी शादी को वैध नहीं ठहराया जा सकता.

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