लालच देकर हो रहा धर्म परिवर्तन... छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की मिशनरी धर्मांतरण पर टिप्पणी, उठाए कई सवाल
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य में बढ़ते ‘मिशनरी प्रेरित धर्मांतरण’ को लेकर कड़ी टिप्पणियां की हैं. अदालत ने कहा कि गरीब और अशिक्षित आदिवासियों को लालच, प्रलोभन और धोखे के जरिए धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इससे समाज में न केवल तनाव और विभाजन बढ़ रहा है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में पड़ रही है.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हाल ही में मिशनरी गतिविधियों के जरिए हो रहे धर्मांतरण को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. अदालत ने कहा कि जब धर्म परिवर्तन आस्था की बजाय प्रलोभन, धोखे या दबाव का माध्यम बन जाता है, तब यह न केवल सामाजिक सौहार्द को तोड़ता है, बल्कि आदिवासी समुदायों की पहचान को भी मिटाने का खतरा पैदा करता है.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब देश के कई हिस्सों में धर्मांतरण को लेकर बहस तेज है. अदालत ने इस फैसले के जरिए एक सशक्त संदेश दिया है कि विकास या सहायता के नाम पर किसी की आस्था से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, क्योंकि यही हमारे समाज की एकता और विविधता की असली पहचान है.
आदिवासियों में धर्मांतरण से बढ़ रही है दूरी और तनाव
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत को बताया गया कि कई गांवों में ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं, जिन पर साफ लिखा है 'पादरी और धर्मांतरण कर चुके ईसाई इस गांव में प्रवेश न करें.' इससे साफ है कि गांवों में धार्मिक आधार पर तनाव और विभाजन की स्थिति बन रही है.
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में आदिवासियों के धर्मांतरण से सामाजिक बहिष्कार और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. अदालत ने माना कि संविधान हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब जबरन या लालच देकर धर्म बदलवाना नहीं है.
सेवा का काम अब लालच का जरिया बन गया
हाई कोर्ट ने कहा कि पहले मिशनरी संस्थाएं समाज सेवा के कार्यों से जानी जाती थीं. शिक्षा, स्वास्थ्य और सहायता के क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान था. लेकिन अब कई जगहों पर यही कार्य धर्मांतरण के साधन बन गए हैं. अदालत ने कहा कि गरीब और अशिक्षित आदिवासियों को बेहतर जीवन, मुफ्त पढ़ाई या रोजगार के वादे से धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. यह प्रवृत्ति समाज में गहरी खाई पैदा कर रही है. अदालत ने कहा कि धर्मांतरण के कारण आदिवासी अपनी जड़ों, परंपराओं और भाषाओं से दूर हो रहे हैं. नए धर्म में शामिल होने के बाद उन्हें अपने ही समुदाय से बहिष्कार झेलना पड़ता है, जिससे सामाजिक अलगाव और तनाव बढ़ रहा है.
आस्था मजबूरी नहीं, विश्वास का विषय होनी चाहिए
हाई कोर्ट ने कहा कि धर्मांतरण अगर किसी व्यक्ति की आस्था का परिणाम है तो वह उसका अधिकार है. लेकिन अगर वह लालच, भय या असुरक्षा से प्रेरित है, तो यह समाज के लिए खतरा बन जाता है. अदालत ने कहा कि 'समाधान असहिष्णुता में नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने में है कि आस्था दृढ़ विश्वास का विषय बने, बाध्यता का नहीं.'





