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छत्तीसगढ़ के जंगलों में दोगुनी दहाड़, तीन साल में बाघों की संख्या 17 से पहुंची 35, अब अन्य प्रजातियों पर भी होगा फोकस

छत्तीसगढ़ के जंगलों से इस बार जो खबर आई है, वह उम्मीद और उत्साह दोनों जगाती है. कभी सन्नाटे में ढके रहने वाले जंगल अब बाघों की दहाड़ से गूंज रहे हैं. अप्रैल 2025 के सर्वे के मुताबिक राज्य में बाघों की संख्या तीन साल में दोगुनी होकर 17 से 35 पहुंच गई है.

छत्तीसगढ़ के जंगलों में दोगुनी दहाड़, तीन साल में बाघों की संख्या 17 से पहुंची 35, अब अन्य प्रजातियों पर भी होगा फोकस
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 15 Oct 2025 6:56 PM IST

जंगल की खामोशी में जब बाघ की दहाड़ गूंजती है तो वह सिर्फ वन्य जीवन की ताकत का एहसास नहीं कराती, बल्कि संरक्षण की जीत का प्रतीक भी बन जाती है. छत्तीसगढ़ ने इसी जीत की नई कहानी लिखी है. अप्रैल 2025 के सर्वे में सामने आया कि राज्य में बाघों की संख्या 2022 के 17 से बढ़कर अब 35 हो गई है.

यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं बल्कि संरक्षण की उस मेहनत की कहानी है, जिसमें वन विभाग से लेकर स्थानीय समुदायों तक सभी की भूमिका रही है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस उपलब्धि को “संरक्षण की जीत” बताते हुए कहा कि अब इसी तरह का ध्यान अन्य प्रजातियों पर भी दिया जाएगा.

यहां है सबसे ज्यादा बाघ

वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि इस समय सबसे ज्यादा बाघ अचनाकमार टाइगर रिज़र्व में देखे जा रहे हैं. यही नहीं, नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी ने मध्य प्रदेश से बाघों को ट्रांसफर कर उडंती-सितानदी और गुरु घासीदास तामोर पिंगला रिज़र्व में बसाने की मंज़ूरी भी दी है. जल्द ही यह प्रक्रिया शुरू होगी, जिससे नए इलाकों में भी बाघों की दहाड़ सुनाई देने लगेगी.

पर्यटन और आजीविका का मेल

राज्य सरकार अब टाइगर रिज़र्व और कांगेर वैली नेशनल पार्क की सुविधाओं को बढ़ावा दे रही है. मकसद साफ है कि ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करना ताकि स्थानीय लोगों को रोज़गार और आजीविका मिले. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बैठक में कहा कि छत्तीसगढ़ जंगलों और जैव विविधता से समृद्ध है. बाघों की बढ़ती संख्या हमारी कोशिशों की सफलता है. अब यही ध्यान हमें अन्य प्रजातियों पर भी देना होगा.

पक्षियों और मैनाकी खास देखभाल

मुख्यमंत्री ने जशपुर के नीमगांव का ज़िक्र भी किया, जो प्रवासी पक्षियों का ठिकाना माना जाता है. इसे संरक्षण और पर्यटन दोनों नजरियों से विकसित करने की योजना है. वहीं, राज्य पक्षी "हिल मैनाकी" सुरक्षा के लिए "मायना मित्र" वॉलंटियर ग्रुप बनाया गया है, जो इनके प्राकृतिक आवास पर नज़र रखेगा.

जंगल और इंसान का रिश्ता

वन मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि विभिन्न प्रजातियों के आवास में सुधार के संकेत मिल रहे हैं. बैठक में पारित प्रस्ताव न सिर्फ प्रकृति बल्कि लोगों के हित में भी हैं. इनमें गश्ती मार्गों का निर्माण, संरक्षित क्षेत्रों का तार्किक पुनर्गठन, उडंती-सितानदी में धवलपुर से कुकरार तक सड़क परियोजना, मिशन अमृत योजना के तहत पाइपलाइन विस्तार और कबीरधाम जंगलों में ऑप्टिकल फाइबर बिछाने की अनुमति शामिल है. इन कदमों का असर दोतरफा होगा– वन कर्मचारियों को बेहतर डिजिटल कनेक्टिविटी और कार्य सुविधा मिलेगी, वहीं गांवों तक सरकारी भुगतान और सेवाएं आसानी से पहुंच सकेंगी. इसका फायदा स्थानीय समुदायों को सामाजिक-आर्थिक विकास के रूप में मिलेगा.

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