नरसंहार के लिए कुख्यात रणवीर सेना लड़ेगी चुनाव! चंदन सिंह का बड़ा बयान, क्या है पार्टी का नाम, कितने सीटों पर इलेक्शन लड़ने की है योजना
Bihar Chunav 2025: बिहार में रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया के पोते चंदन सिंह ने विधानसभा चुनाव 2025 में सक्रिय राजनीति में कदम रखने की घोषणा की है. साथ ही बिहार की 243 विधानसभा सीटों में 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है. चंदन के इस एलान से एक बार फिर रणवीर सेना सुर्खियों में है.

Bihar Election 2025: एक तरफ बिहार में चुनावी सरगर्मी चरम पर है, तो दूसरी तरफ नरसंहार के लिए कुख्यात रणवीर सेना के प्रमुख रहे ब्रह्मेश्वर मुखिया के पोते चंदन सिंह ने विधानसभा चुनाव 2025 में 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर सबको चौंका दिया है. इस घोषणा के बाद से बिहार की राजनीति में हड़कंप मच गया. लोग इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि क्या बिहार में एक बार फिर रणवीर सेना का आतंक देखने को मिलेगा? हालांकि, चंदन सिंह का कहना है कि भारतीय रणवीर पार्टी, रणवीर सेना से अलग है.
चंदन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए भारतीय रणवीर पार्टी की स्थापना की है. उन्होंने यह पूछे जाने पर कि यह पार्टी रणवीर सेना का ही संवैधानिक स्वरूप है? वे जवाब देते हैं, "आत्मा और शरीर को अलग नहीं कर सकते. रणवीर सेना मेरी है और मैं उसका हूं. हमारी पार्टी की आत्मा रणवीर सेना वाली ही रहेगी."
रणवीर सेना की शुरुआत पर चंदन सिंह कहते हैं, "सहार ब्लॉक में एक गांव है एकवारी. 90 के दशक में वहां नक्सलियों का सबसे ज्यादा प्रभाव था. उन्होंने वहां सामंतों के खिलाफ विद्रोह की मुहिम चलाई थी. सामंत कोई था नहीं. 5 से 10 बीघा वाले किसान थे. नक्सली उनकी जमीनों पर झंडे गाड़ने लगे. कहने लगे कि अब आप यहां खेती नहीं करोगे."
चंदन सिंह ने आगे कहा, "नक्सलियों के इस रुख का सबसे ज्यादा असर भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूतों पर हुआ. उनकी जाति पूछकर गर्दन काट दी जाती थी. गांवों में भयावह स्थिति थी. लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे थे. हमारे सामने दो रास्ते थे, या तो भाग जाते या लड़ते. अपने सम्मान और जमीन की रक्षा के लिए किसी न किसी को आगे आना ही था. आत्मा रणवीर सेना से जुड़ी रहेगी, लेकिन यह संगठनात्मक और वैचारिक रूप से रणवीर सेना से अलग है.' उन्होंने कहा, 'रणवीर सेना का गठन भूमिहारों और अन्य सवर्णों की सुरक्षा के लिए नक्सलवाद के खिलाफ किया गया था, और उनकी पार्टी उसी उद्देश्य को आगे बढ़ाएगी."
शाहाबाद में सक्रिय हैं चंदन
चंदन सिंह की पार्टी भारतीय रणवीर पार्टी शाहाबाद क्षेत्र में सक्रिय है. भारतीय रणवीर पार्टी ने भूमिहार समुदाय के समर्थन से चुनावी मैदान में उतरने की योजना तैयार की है. दैनिक भास्कर ने चंदन सिंह के हवाले से कहा है कि भूमिहार समुदाय का राजनीतिक प्रभाव अब भी महत्वपूर्ण है और उनकी पार्टी उस प्रभाव को फिर से बहाल करना चाहती है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चंदन सिंह की पार्टी आगामी चुनावों में कितनी सफलता प्राप्त करती है और क्या रणवीर सेना की विरासत को लेकर लोग पार्टी को किस रूप में लेते हैं.
अकेले दम पर लड़ेगी चुनाव, गठबंधन से इनकार
चंदन सिंह की पार्टी रणवीर सेना के समर्थकों और भूमिहार समुदाय के मुद्दों को उठाएगी. कहा है कि हम 65 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी किसी भी मौजूदा गठबंधन(NDA या महागठबंधन) का हिस्सा नहीं होगी. उनकी पार्टी मुख्य रूप से भूमिहार समुदाय के वोटरों को लक्षित करेगी, जो रणवीर सेना के समर्थक रहे हैं.
नरसंहार के इतिहास का पड़ सकता है असर
चंदन सिंह का कहना है कि रणवीर सेना का विवादास्पद इतिहास और उसके द्वारा किए गए नरसंहारों के आरोप पार्टी की छवि पर असर डाल सकते हैं. आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि चंदन सिंह और उनकी पार्टी चुनाव में कितनी सफलता प्राप्त करती है. बता दें कि ब्रह्मेश्वर मुखिया को एक ओर जहां सवर्ण समुदाय का मसीहा माना जाता है, वहीं दलित और पिछड़े वर्ग के लोग उन्हें नरसंहारों का आरोपी मानते हैं.
चंदन को क्यों है न्याय का इंतजार?
- चंदन सिंह ने कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों की हत्या का बदला नहीं चाहते, लेकिन न्याय की मांग करते हैं.
- उन्होंने यह भी कहा कि वह रणवीर सेना के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में कदम रख रहे हैं.
- चंदन सिंह ने यह स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी समाज के दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के लिए काम करेगी.
- चंदन सिंह की नई पार्टी बिहार की राजनीति में एक नई ताकत के रूप में उभर सकती है, विशेषकर भूमिहार समुदाय के बीच.
रणवीर सेना का इतिहास
रणवीर सेना एक जातीय उग्रवादी संगठन था, जिसकी स्थापना 1994 में बिहार के भोजपुर जिले के बेलाऊर गांव में हुई थी. इसका गठन भूमिहार जमींदारों ने किया था, जो अपनी जमीनी हकों की रक्षा के लिए सक्रिय थे. संगठन का नेतृत्व ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ बरमेश्वर मुखिया ने किया, जिन्हें 'रणवीर सेना का मुखिया' के रूप में जाना जाता था.
कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया?
ब्रह्मेश्वर मुखिया को बरमेश्वर मुखिया के नाम से भी जाना जाता था. वह बिहार में एक उच्च जाति के जमींदार उग्रवादी समूह रणवीर सेना के रूप में कार्यरत एक नक्सल-विरोधी संगठन रणवीर सेना के संस्थापक थे. 1 जून 2012 को अज्ञात बंदूकधारियों ने उनकी हत्या कर दी थी.
ब्रह्मेश्वर मुखिया का जन्म एक भूमिहार परिवार में हुआ था और बाद में 1994 में रणवीर सेना के गठन के तुरंत बाद वह इसके नेता बन गए. मुखियाजी पर सैकड़ों नक्सलियों की हत्याओं में शामिल होने का संदेह था, जिन्होंने गरीब और दलित पृष्ठभूमि के लोगों की भर्ती की थी. 2002 में सिंह को 'नरसंहार' के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिसके लिए उन्हें आजीवन कारावास की संभावना का सामना करना पड़ा. उन्होंने मुकदमे की प्रतीक्षा में नौ साल जेल में बिताए और फिर जमानत पर रिहा हुए और बाद में अपर्याप्त सबूतों के कारण बरी कर दिए गए.
जेल से रिहा होने के बाद 5 मई 2012 को सिंह ने अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन की स्थापना की. एक ऐसा संगठन जिसके बारे में सिंह ने कहा कि यह किसानों और अन्य मजदूरों की सहायता करेगा. 1 जून 2012 को, ब्रह्मेश्वर सिंह बिहार के आरा में अपने घर के पास सुबह की सैर पर थे. कथित तौर पर लगभग छह हथियारबंद लोगों ने सिंह को कई गोलियां मारी. मुखिया जी की हत्या के विरोध में कई स्थानों पर दंगे भड़क उठे. कई हजार लोगों ने सर्किट हाउस, खंड विकास अधिकारी कार्यालय और कई सरकारी वाहनों को जला दिया. रेलवे कार्यालयों को क्षतिग्रस्त कर दिया. हावड़ा-दिल्ली मार्ग पर ट्रेनें रोक दीं. मुखिया जी की हत्या से बिहार में बड़े पैमाने पर अराजकता फैल गई.
रणवीर सेना किस-किस नरसंहार को दिया अंजाम
सरथुआं नरसंहार (1995): रणवीर सेना का पहला बड़ा नरसंहार सरथुआं गांव में हुआ, जहां 5 मुसहर जाति के लोगों की हत्या की गई.
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार (1997): यह बिहार का सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है, जिसमें 58 दलितों की हत्या की गई. रणवीर सेना ने इसे प्रतिशोध के रूप में अंजाम दिया था.
शंकरबिघा नरसंहार (1999): इसमें 22 दलितों की हत्या की गई, जिसे रणवीर सेना ने प्रतिशोध के रूप में अंजाम दिया.
नारायणपुर नरसंहार (1999): इसमें 12 दलितों की हत्या की गई, जिसे रणवीर सेना ने प्रतिशोध के रूप में अंजाम दिया.
सेनारी नरसंहार (18 मार्च 1999): इसमें अगड़ी जाति के 34 लोगों की हत्या की गई. रणवीर सेना ने इसे प्रतिशोध के रूप में अंजाम दिया. इसके अलावा, हैबसपुर में 10 और मियांपुर में 26 हत्याओं को अंजाम दिया था.
कैसे हुआ इसका पतन
रणवीर सेना पर 1995 में बिहार सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद भी संगठन की गतिविधियां जारी रहीं, लेकिन 2012 में ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया की हत्या के बाद संगठन का प्रभाव कम हो गया. वर्तमान में रणवीर सेना की गतिविधियां लगभग समाप्त हो चुकी हैं.
रविशंकर के प्रयासों से हुई शांति की पहल
साल 2005 के बाद बिहार में नरसंहारों की घटनाओं में कमी आई. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने रणवीर सेना और माले के नेताओं को एक मंच पर लाकर शांति की प्रक्रिया शुरू की, जिससे हिंसा की घटनाओं में कमी आई.