NDA, INDIA अलायंस और जन सुराज के बीच बिहार में कहां स्टैंड कर रही है पुष्पम प्रिया चौधरी की 'द प्लुरल्स पार्टी'?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पुष्पम प्रिया चौधरी की 'द प्लुरल्स पार्टी' एक वैकल्पिक राजनीति की बात तो कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत में वह अब भी हाशिए पर है. पार्टी की पहुंच शहरी युवाओं और सोशल मीडिया तक सीमित रही है, जबकि गांवों में जनाधार नहीं बन पाया. NDA और INDIA गठबंधन के बीच जहां जबरदस्त सियासी जंग है, वहीं प्लुरल्स की मौजूदगी फिलहाल प्रतीकात्मक है. जातीय समीकरण और कार्यकर्ता नेटवर्क की कमी के कारण पार्टी मतदाताओं से जुड़ नहीं पा रही.

Pushpam Priya The Plurals Party: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, सियासी पार्टियों ने अपनी-अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. एक तरफ बीजेपी, जदयू, एलजेपी (रामविलास) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का एनडीए गठबंधन है तो दूसरी तरफ राजद और कांग्रेस का इंडिया गठबंधन... प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और नगीना से सांसद चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है. ऐसे में एक नाम और चर्चा में है, वह है- पुष्पम प्रिया चौधरी का...
पुष्पम प्रिया चौधरी ने 'द प्लुरल्स पार्टी' के नाम से नया राजनीतिक दल बनाया है. यह पार्टी सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. ऐसे में आइए जानते हैं कि पुष्पम प्रिया की राह आसान है या मुश्किलों से भरा...
2020 में अखबार में छपवाया फुल पेज विज्ञापन
पुष्पम प्रिया चौधरी द्वारा स्थापित 'द प्लुरल्स पार्टी' ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उस समय सबका ध्यान खींचा, जब एक अख़बार में फुल-पेज विज्ञापन देकर खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ी पुष्पम ने बिहार की पारंपरिक जातिगत और परिवारवादी राजनीति के ख़िलाफ़ एक वैकल्पिक, वैचारिक और विकास आधारित राजनीति की बात की. उनकी भाषा, स्टाइल और दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था, जिससे शहरी युवाओं और मिडिल क्लास में हलचल जरूर मची, लेकिन गांवों तक यह लहर नहीं पहुंच पाई.
अब तक हाशिए पर रही है 'द प्लुरल्स पार्टी'
'द प्लुरल्स पार्टी' खुद को 'राजनीतिक पुनर्रचना का आंदोलन' कहती है, जो पारदर्शिता, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर केंद्रित एक वैकल्पिक बिहार की कल्पना करती है. हालांकि, जमीनी संगठन, कार्यकर्ता निर्माण और जातीय समीकरणों को न समझ पाने की वजह से पार्टी अभी तक राजनीतिक मानचित्र पर कोई ठोस छाप नहीं छोड़ पाई है. पुष्पम प्रिया ने भले ही आत्मविश्वास के साथ शुरुआत की थी, लेकिन व्यवहारिक राजनीति में संवाद, रणनीति और गठजोड़ों की कमी ने उन्हें अब तक हाशिए पर रखा है.
अभी भी राजनीतिक अलगाव में है 'द प्लुरल्स पार्टी'
बिहार में NDA (भाजपा, जदयू, हम और अन्य घटक दल) 2025 के चुनाव में अपनी परंपरागत चुनावी मशीनरी और जातीय संतुलन के साथ उतरने जा रहा है. NDA के पास जमीनी संगठन है, वोट ट्रांसफर की ताक़त है और कार्यकर्ताओं का व्यापक नेटवर्क है. इसके मुक़ाबले 'द प्लुरल्स पार्टी' अभी भी राजनीतिक अलगाव में है, न तो उनके पास गठबंधन है और न ही कोई पहचानने योग्य सीट. NDA की आक्रामक प्रचार शैली के सामने प्लुरल्स की शहरी और अंग्रेज़ी-प्रधान राजनीति अभी तक मतदाताओं से जुड़ नहीं पाई है.
प्लुरल्स पार्टी को गंभीर राजनीतिक ताक़त नहीं मानता INDIA गठबंधन
INDIA गठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम दल आदि) 2025 में BJP के खिलाफ मुख्य चुनौती के रूप में खड़ा है. राहुल गांधी की यात्राओं और तेजस्वी यादव की आक्रामक रणनीति से गठबंधन मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश में है, लेकिन इन सबके बीच प्लुरल्स पार्टी का कोई ज़िक्र तक नहीं हो रहा. तेजस्वी और राहुल के मंच पर जगह न मिलने से यह स्पष्ट है कि प्लुरल्स पार्टी को INDIA गठबंधन एक गंभीर राजनीतिक ताक़त नहीं मानता. युवाओं की पार्टी होने का दावा करने के बावजूद, वह युवाओं की सबसे बड़ी आवाज़ नहीं बन पाई है.
सोशल मीडिया तक ही सीमित है प्लुरल्स पार्टी की उपस्थिति
जहां एक ओर प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा ने बिहार के गांव-गांव में संवाद और संगठन खड़ा किया है, वहीं 'प्लुरल्स पार्टी' की उपस्थिति सोशल मीडिया तक ही सीमित है. जन सुराज भले ही चुनावी स्तर पर नई पार्टी हो, लेकिन उसकी जमीनी पकड़ और प्रशांत किशोर की रणनीति ने उसे मीडिया और मतदाताओं की नज़र में प्रासंगिक बना दिया है. इसके विपरीत, प्लुरल्स पार्टी ने बिहार की गलियों में ‘पैर नहीं रखे’, केवल ट्वीट किए हैं और यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है.
जातीय समीकरण से पूरी तरह बाहर है प्लुरल्स पार्टी
बिहार की राजनीति अब भी जातीय समीकरणों पर गहराई से टिकी हुई है. चाहे कुर्मी, यादव, ब्राह्मण या महादलित, सभी का एक पारंपरिक वोट बैंक है. प्लुरल्स पार्टी इस समीकरण से पूरी तरह बाहर है. उन्होंने कभी जाति की राजनीति में शामिल होने का दावा नहीं किया, जो सैद्धांतिक रूप से सही हो सकता है, लेकिन बिहार की सच्चाई को नकारना पार्टी को हाशिए पर डाल देता है. नतीजा यह हुआ कि मतदाता उन्हें न तो अपना मानते हैं और न ही विकल्प.
पुष्पम प्रिया की पार्टी ने शुरुआत में शहरी, शिक्षित, अंग्रेज़ी भाषी युवाओं को आकर्षित किया, लेकिन यह आकर्षण ‘क्लासिक मिडिल क्लास आइडिया’ बनकर रह गया, न आंदोलन खड़ा हुआ, न वोट ट्रांसफर हुआ. एक सीमित सोशल मीडिया क्रांति से आगे न बढ़ पाने के कारण, पार्टी की अपील सीमित दायरे में ही सिमट गई. मिडिल क्लास के लोग वोटिंग के समय अक्सर रणनीतिक वोटिंग करते हैं, और वो वोट NDA या INDIA की झोली में चला जाता है, प्लुरल्स के साथ नहीं...
जमीन पर मौजूद नहीं है प्लुरल्स पार्टी
प्लुरल्स पार्टी अभी भी बिहार में एक 'urban protest vote' की तरह देखी जाती है, जो वैकल्पिक राजनीति की बात करती है लेकिन व्यावहारिक रूप से ज़मीन पर मौजूद नहीं है. अगर पुष्पम प्रिया आने वाले वर्षों में स्थानीय भाषाओं में संवाद, पंचायत स्तर तक कार्यकर्ता निर्माण और जातीय समझ विकसित करती हैं, तो पार्टी बिहार में एक तीसरा मज़बूत मोर्चा बन सकती है, लेकिन 2025 के चुनाव तक, द प्लुरल्स एक प्रतीकात्मक उपस्थिति मात्र बनी रहेगी.