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लाइक्स और कमेंट नहीं तय करते नेता! सोशल मीडिया स्टार्स के दम पर बिहार जीतने चली कांग्रेस

सोशल मीडिया के सुपरस्टार जब राजनीति में उतरते हैं तो उन्हें लगता है कि फॉलोअर्स ही वोट हैं. लेकिन बिहार से पवन सिंह, दिल्ली से अवध ओझा और महाराष्ट्र से एजाज खान की हार ने बता दिया कि इंटरनेट की दुनिया और असली सियासत में बहुत फर्क है. कांग्रेस ने भी अब टिकट के लिए फॉलोअर्स की शर्त लगा दी है, पर क्या इससे नेता बनेंगे?

लाइक्स और कमेंट नहीं तय करते नेता! सोशल मीडिया स्टार्स के दम पर बिहार जीतने चली कांग्रेस
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नवनीत कुमार
By: नवनीत कुमार

Updated on: 9 April 2025 3:27 PM IST

बिहार कांग्रेस ने टिकट देने का नया 'फ़ॉर्मूला' खोज निकाला है. टिकट चाहिए? तो पहले इंस्टाग्राम पर 30K फॉलोअर्स, फेसबुक पर 1.3 लाख और एक्स (ट्विटर) पर 50K का आंकड़ा पार करो. विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नेताओं को डिजिटल दुनिया में पसीना बहाने का फरमान सुना दिया गया है. टिकट अब कार्यकर्ता नहीं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पाएंगे.

इस फरमान ने पुराने कांग्रेसियों की नींद उड़ा दी है. जिनके नाम पर इलाके में अब भी खाता खुलता है, वे अब 'फॉलोअर्स काउंट' में फेल हो रहे हैं. बिहार कांग्रेस के 19 मौजूदा विधायक भी इस नए क्राइटेरिया पर टिकट से बाहर हो सकते हैं. कुछ के तो सोशल मीडिया अकाउंट भी नहीं हैं. वोट मांगने जाते हैं, लेकिन इंस्टा पर स्टोरी डालना नहीं आता.

क्या डिजिटल क्रांति से निकलेगा नेता?

कांग्रेस का ये नया प्रयोग दिखाता है कि अब राजनीति में भी 'इंप्रेशन' मायने रखता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या फेसबुक के लाइक से भरोसा बनता है? क्या इंस्टा रील से गांव की सड़कों की हालत सुधरती है? सोशल मीडिया ज़रूरी है, लेकिन ज़मीन पर पकड़ उससे भी ज़्यादा. नहीं तो पवन सिंह, एजाज खान और अवध ओझा जैसे नाम सिर्फ हार की लाइवलिस्ट में नजर आएंगे. वायरल तो होंगे, लेकिन जनादेश मिल नहीं पाएगा.

पवन सिंह का ‘स्टारडम’ काराकाट में ध्वस्त

बिहार के काराकाट से चुनाव लड़ने आए भोजपुरी सिंगर पवन सिंह को शायद लगा था कि 'लॉलीपॉप लागेलू' सुनकर जनता उन्हें संसद में भेज देगी. लेकिन ज़मीनी सियासत गानों और ग्लैमर से नहीं, काम से चलती है. लाखों यूट्यूब व्यूज़ के बावजूद पवन सिंह को जनता ने नकार दिया. चुनावी मैदान में उन्होंने जितना शोर मचाया, उतनी ही खामोशी के साथ नतीजों में गायब हो गए.

अवध ओझा का सपना अधूरा

दिल्ली के पटपड़गंज से लड़ने उतरे अवध ओझा, जो UPSC कोचिंग में ‘भगवद्गीता से प्रशासन’ पढ़ाते हैं, वे भी जनता को प्रभावित नहीं कर पाए. ओझा जी शायद भूल गए कि IAS की परीक्षा में मार्कशीट मिलती है, लेकिन चुनाव में जनता रिजल्ट देती है. यूट्यूब की भारी-भरकम ऑडियंस चुनावी बूथ पर वोट में नहीं बदल सकी.

महाराष्ट्र में ग्लैमर फीका पड़ा

इसके साथ ही चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी से महाराष्ट्र में उतरे अभिनेता एजाज खान का भी हश्र कुछ ऐसा ही रहा. बिग बॉस में भले ही कैमरे ने पीछा किया हो, लेकिन मतदाता ने नजरअंदाज कर दिया. यहां परफॉर्मेंस नहीं, परिवर्तन चाहिए था. लेकिन खान साहब स्क्रिप्ट में ही उलझे रह गए.

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