हार-जीत का नया फॉर्मूला! NDA ने बिहार में बिछाया चुनावी मायाजाल, जानें किसे मिलेगी कितनी सीटें
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर गुप्त रणनीति और अंदरूनी खींचतान तेज हो गई है. नीतीश कुमार की गिरती सेहत, जातीय संतुलन और पिछली हार-जीत के समीकरणों को ध्यान में रखकर सीटों का बंटवारा किया जाएगा. सहयोगी दलों को संतुलित करना और दो बार हारी सीटों पर अदला-बदली करना NDA की रणनीति का हिस्सा है.

2025 के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए ने तैयारियां तेज कर दी है. हालांकि चुनावी रणनीति की आड़ में अंदरूनी घमासान भी शुरू हो चुका है. सूत्रों के मुताबिक सीट बंटवारे को लेकर दिल्ली और पटना के बीच कई दौर की बातचीत चल रही है, लेकिन सामने कुछ भी साफ नहीं है. लोकसभा चुनाव के मॉडल को आधार मानने की बात हो रही है, लेकिन यह विधानसभा चुनाव की अलग प्रकृति को अनदेखा कर रहा है.
नीतीश कुमार की सेहत एनडीए रणनीतिकारों के लिए चिंता और अवसर दोनों बन गई है. एक तरफ विपक्ष उनके स्वास्थ्य को मुद्दा बना सकता है, दूसरी तरफ एनडीए इसे सहानुभूति में बदलने की रणनीति बना रहा है. इसी बहाने जेडीयू यह दबाव भी बना रही है कि नीतीश की भूमिका को देखते हुए उन्हें बीजेपी से ज़्यादा सीटें दी जाएं, जिससे वे सीएम चेहरा बने रहें.
जेडीयू-बीजेपी के बीच शक्ति प्रदर्शन
लोकसभा में बीजेपी आगे रही थी, लेकिन विधानसभा में जेडीयू का दावा बड़ा दिख रहा है. सूत्रों के अनुसार जेडीयू 102-103 और बीजेपी 101-102 सीटों पर लड़ सकती है. बाकी 40 सीटों में एलजेपी को सबसे बड़ा हिस्सा देने की बात है, जो वर्तमान में राज्य में अपने पांच सांसदों के दम पर लगभग 25 से 28 सीटें चाहती है. ‘हम’ और ‘राष्ट्रीय लोक मोर्चा’ को मिलाकर 10-12 सीटें दी जा सकती हैं.
दो बार हारी सीटों पर होगी सर्जरी
एनडीए इस बार उन सीटों पर फोकस कर रहा है जहां पिछले दो चुनाव में हार मिली है. योजना है कि इन सीटों को बदला जाएगा और वहां नए सहयोगी दलों को मौका दिया जाएगा. बीजेपी जिन सीटों पर लगातार हार रही है, उन्हें एलजेपी, हम या RLSP को देने की बात चल रही है, जिससे वहां नए सिरे से माहौल बन सके. यह रणनीति जमीनी बदलाव लाने की कोशिश का हिस्सा है.
जातिगत संतुलन पर विशेष फोकस
बिहार की चुनावी राजनीति में जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते हैं. एनडीए की रणनीति है कि हर जिले में विभिन्न जातियों को प्रतिनिधित्व मिले. यदि किसी जिले में पांच सीटें हैं, तो जेडीयू और बीजेपी को सुनिश्चित करना होगा कि उम्मीदवार एक ही जाति से ना हों. खासतौर पर यादव, कुशवाहा, पासवान, ब्राह्मण और दलित वर्गों में संतुलन बनाने की कोशिश होगी.
गठबंधन की सीटें बदलीं, लेकिन जेडीयू की मांग हमेशा आगे
पिछले चुनावों पर नजर डालें तो सीट बंटवारे में जेडीयू हमेशा फ्रंटफुट पर रही है. 2010 में जेडीयू ने 141 और बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 2015 में जब नीतीश ने आरजेडी के साथ हाथ मिलाया, तब बराबर सीटों पर लड़े. 2020 में जेडीयू और बीजेपी ने क्रमशः 115 और 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इतिहास यह संकेत देता है कि इस बार भी जेडीयू सीटों में बढ़त लेने की तैयारी में है, और बीजेपी को इसका सामना करना पड़ेगा.