खैनी में थोड़ा सा चूना मिलाइके... बिहार की सियासत का एक रंग ये भी, किसे रगड़ने की बात कर रहे तेजस्वी यादव?
सासाराम की वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव का खैनी-चूना वाला बयान सुर्खियों में है. इस अंदाज ने पिता लालू यादव की देसी राजनीति की याद दिला दी. सभा में लालू ने भोजपुरी गीत गाकर भीड़ को झुमा दिया, तो राहुल गांधी ने 1300 किमी की यात्रा से विपक्ष की एकजुटता का संदेश दिया. क्या ये 2025 चुनाव का ट्रेलर है?

सासाराम की वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव का बयान सुर्खियों में आ गया. उन्होंने कहा, "मोदी जी बिहारियों को चूना लगाना चाहते हैं, लेकिन ये बिहार है, यहां खैनी के साथ चूना रगड़ा जाता है." यह तंज केवल हंसी-मज़ाक नहीं बल्कि बिहार की देसी बोली में लपेटा गया गहरा राजनीतिक हमला था. भीड़ इस पर खूब हंसी और तालियां बजाती रही.
तेजस्वी का यह अंदाज सुनकर लोगों को उनके पिता लालू प्रसाद यादव के दौर की याद आ गई. 90 के दशक में लालू अपने देसी मजाकिया लहजे, भोजपुरी लोक गीतों और तंज से जनता से सीधा जुड़ाव बना लेते थे. लंबे वक्त तक तेजस्वी ने इस अंदाज से दूरी बनाई थी, लेकिन सासाराम में वह फिर उसी रंग में दिखाई दिए.
2015 से 2024 तक का सफर
तेजस्वी यादव ने 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद अपनी नई पहचान बनाने की कोशिश की थी. उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने विकास, युवाओं और रोजगार जैसे मुद्दों पर आधुनिक नेता की छवि बनाने का प्रयास किया. सोशल मीडिया का सहारा लिया, संयमित बयान दिए और खुद को "यंग पॉलिटिशियन" के तौर पर पेश किया. 2020 के चुनाव में उन्होंने बेरोजगारी का मुद्दा जमकर उठाया और विपक्ष के नेता बने.
मजबूरी या रणनीति?
2024 में जेडीयू के NDA में लौटने से RJD को बड़ा झटका लगा. लालू परिवार पर लगातार कानूनी दबाव, कांग्रेस की बढ़ती दखल और बड़े भाई तेज प्रताप यादव की सक्रियता ने भी तेजस्वी को अलर्ट कर दिया है. ऐसे में उनकी यह देसी पॉलिटिक्स शायद एक रणनीतिक मजबूरी भी है. यानी जनता तक पहुंचने का सबसे तेज़ और असरदार तरीका वही है, जो लालू यादव का आजमाया हुआ फॉर्मूला रहा है.
कोर वोटबैंक साधने की कोशिश
RJD का असली सहारा यादव, मुस्लिम और EBC वोटर हैं. बिहार के गांव-देहात में यह वोटबैंक अब भी "लालू स्टाइल" की राजनीति को पहचानता और पसंद करता है. बीजेपी और जेडीयू की जोड़ी से मुकाबला करने के लिए तेजस्वी को इन्हीं वोटरों को एकजुट करना होगा. यही कारण है कि वह दुबारा अपने पिता की भाषा और अंदाज अपना रहे हैं.
लालू यादव की करिश्माई मौजूदगी
सासाराम की सभा में लालू यादव भले ही बीमार और कमजोर दिखे, लेकिन माइक पकड़ते ही उनका करिश्मा लौट आया. उन्होंने कहा- "चोरों को हटाइए, बीजेपी को भगाइए, सबलोग एकजुट हो जाइए." इसके बाद भोजपुरी लोकगीत की तर्ज पर "लागल-लागल झुलनियां में धक्का, बलम कलकत्ता चला" गाकर भीड़ को झूमने पर मजबूर कर दिया. लालू यादव के इस छोटे से भाषण ने मंच पर मौजूद राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और तेजस्वी यादव को भी राहत दी. जनता का उत्साह अचानक दोगुना हो गया. राहुल गांधी मुस्कुराते नजर आए और तेजस्वी ने भी तालियां बजाकर इस माहौल का आनंद लिया. साफ था कि लालू अब भी जनता के दिलों में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं.
राहुल यात्रा से देंगे बड़ा संदेश
राहुल गांधी ने इस यात्रा के जरिए चुनावी माहौल को गरमाना शुरू कर दिया है. 16 दिन की यह यात्रा 20 जिलों से होकर गुजरेगी और 1300 किलोमीटर का सफर तय करेगी. पटना के गांधी मैदान में इसका समापन होगा, जहां INDIA गठबंधन के दिग्गज नेता मौजूद रहेंगे. इस यात्रा का मकसद "मतदाता सूची में गड़बड़ी" और "वोट चोरी" जैसे मुद्दों को उठाना है. सासाराम की सभा ने एक संदेश साफ कर दिया कि कांग्रेस और RJD मिलकर बिहार में बीजेपी और जेडीयू को चुनौती देने की तैयारी में हैं. राहुल गांधी का अभियान और लालू-तेजस्वी का देसी अंदाज मिलकर विपक्ष के लिए मजबूत हथियार बन सकते हैं.
2025 का चुनावी ट्रेलर?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सासाराम का यह मंच 2025 के विधानसभा चुनाव का ट्रेलर था. तेजस्वी ने पिता की राह पकड़कर कोर वोटरों को साधने की कोशिश की. राहुल गांधी ने यात्रा से संगठन को गति देने की पहल की और लालू ने अपनी मौजूदगी से यह जता दिया कि अभी उनका असर खत्म नहीं हुआ. आने वाले महीनों में यह देसी-आधुनिक कॉम्बिनेशन बिहार की राजनीति में बड़ा रोल निभा सकता है.