बिहार में इलेक्शन कैंपेन भी हो गया चोरी! 'डाटा थेफ्ट' को लेकर दानिश इकबाल का PK पर हमला, पर BJP परेशान क्यों?
बिहार चुनाव को लेकर जारी घमासान के बीच एक नया विवाद सामने आया है. यह विवाद चुनावी कैंपेन का डेटा चोरी से जुड़ा है. डाटा चोरी करने का आरोप बीजेपी ने प्रशांत किशोर पर लगाया है. बीजेपी प्रवक्ता दानिश इकबाल ने सीधे PK पर हमला बोलते हुए कहा कि जन सुराज वालों का चुनावी कैंपेन ही चोरी के डाटा पर आधारित है.

बिहार चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज होने से पहले जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर डाटा चोरी के मामले में फंसते नजर आ रहे हैं. इसको लेकर बीजेपी नेता ने गंभीर आरोप उन पर लगाए हैं. बीजेपी प्रवक्ता दानिश खान ने 'PK' का पॉलिटिकल कैंपेन 'बात बिहार की' एक सियासी डाटा थेफ्ट पर केंद्रित है. इसको लेकर पाटलिपुत्र थाने में मुकदमा भी दर्ज है. इसमें असली ट्विस्ट ये है कि BJP की नींद क्यों उड़ गई? बीजेपी ने आरजेडी या कांग्रेस पर हमला बोलने के बदले पीके जैसे छोटी पार्टी को इसके लिए क्यों चुना? आखिर इसके जरिए बीजेपी विरोधियों को संदेश क्या देना चाहती है.
दरअसल, भाजपा की बिहार इकाई के प्रवक्ता दानिश इकबाल ने 7 अगस्त को जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर पर 2020 के चुनाव प्रचार के डेटा "चोरी" के लिए हमला बोला. उन्होंने प्रशांत किशोर पर 'बात बिहार की' अभियान के जरिए 'पीके' जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि प्रशांत किशोर का 'बात बिहार की' कैंपेन चोरी की गई कंटेंट पर आधारित है. यह मामला एक कांग्रेस सदस्य से चुनाव प्रचार डेटा और बौद्धिक संपदा की कथित चोरी और दुरुपयोग से संबंधित है.
पाटलिपुत्र थाने में केस कराया गया था दर्ज
दानिश इकबाल ने मीडिया को वीडियो बयान जारी करते हुए कहा, "प्रशांत किशोर बेनकाब हो गए हैं. नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले खुद आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 420, 406 और 120बी के तहत गंभीर अपराधों में शामिल हैं. ये जालसाजी, धोखाधड़ी और साजिश के आरोप हैं. पाटलिपुत्र पुलिस थाना केस संख्या 94/2020 में उनकी भूमिका एक पेशेवर अपराधी जैसी है."
उन्होंने कहा, "बिहार की जनता अब इन नकाबपोश नेताओं को पहचानती है. ये नेता नहीं, बल्कि चोर हैं." इकबाल ने मामले से जुड़े दस्तावेज भी साझा किए हैं. यह मामला कांग्रेस कार्यकर्ता शाश्वत गौतम ने 25 फरवरी 2020 को दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि किशोर अपने पाटलिपुत्र कॉलोनी स्थित कार्यालय में 'बिहार की बात' नामक एक चुनाव अभियान तैयार कर रहे थे. इस अभियान में डेटा संग्रह, रणनीति योजना, ग्राफिक डिजाइन और ब्रांडिंग शामिल थी. ये सभी कथित तौर पर एक कार्यालय के लैपटॉप में संग्रहीत थे.
खुर्शीद के जरिए कराया डाटा चोरी
शाश्वत गौतम ने आरोप लगाया कि ओसामा खुर्शीद एक स्वयंसेवक जो पहले जेडीयू के टिकट पर पटना विश्वविद्यालय का चुनाव लड़ चुका था, कार्यालय आया और डेटा वाला लैपटॉप ले गया. हालांकि, लैपटॉप बाद में वापस कर दिया. गौतम ने दावा किया कि डेटा का दुरुपयोग किया गया था.
प्राथमिकी के अनुसार प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी 2020 को कथित तौर पर चोरी की गई सामग्री का उपयोग करके 'बात बिहार की' नाम से एक ऐसा ही अभियान शुरू किया था. किशोर के अभियान का डोमेन 16 फरवरी को इसकी सार्वजनिक घोषणा से ठीक दो दिन पहले पंजीकृत किया गया था. शिकायतकर्ता ने किशोर और खुर्शीद पर बौद्धिक संपदा के दुरुपयोग की साजिश रचने का आरोप लगाया.
पटना कोर्ट में मामला लंबित
प्रशांत किशोर के लिए अग्रिम जमानत याचिका कोविड-19 महामारी के दौरान प्रक्रियात्मक नियमों में ढील के तहत दायर की गई थी. यह मामला पटना के उप-न्यायाधीश XII-सह-एसीजेएम की अदालत में लंबित है. किशोर के वकील अरुण कुमार ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं, उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और उन्हें राजनीतिक कारणों से झूठा फंसाया गया है.
जन सुराज प्रमुख को अदालत में देना होगा जवाब
प्रशांत किशोर के वकील ने जोर देकर कहा कि कथित रूप से चुराया गया डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और हाल के महीनों में कई समान डोमेन नाम पंजीकृत किए गए हैं, जिससे विशिष्टता के दावे कमजोर पड़ गए हैं. किशोर एक पेशेवर चुनाव रणनीतिकार हैं और अभियान के विषयों में कोई भी समानता या तो संयोग मात्र है या उद्योग में प्रचलित प्रथाओं का परिणाम है.
यह भी कहा गया कि डेटा चुराने का सीधा आरोप किशोर पर नहीं बल्कि ओसामा खुर्शीद पर लगाया गया था. उन्होंने कहा, "प्रशांत किशोर भविष्य में इस मामले पर जवाब देंगे."
क्या होता है डाटा थेफ्ट?
डाटा चोरी या डाटा थेफ्ट गोपनीय जानकारी प्राप्त करने या गोपनीयता भंग करने के लिए कंप्यूटर, सर्वर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर संग्रहीत डिजिटल जानकारी चुराने से संबंधित है. इसमें चुराया गया डेटा किसी भी विषय या क्षेत्र से संबंधित हो सकता है. जैसे चुनावी अभियान या रणनीति, बैंक खाते की जानकारी, ऑनलाइन पासवर्ड, पासपोर्ट नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर, सामाजिक सुरक्षा नंबर, मेडिकल रिकॉर्ड, ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन आदि कुछ भी हो सकता है. एक बार जब किसी अनधिकृत व्यक्ति को व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी मिल जाती है, तो वह स्वामी की अनुमति के बिना उसे हटा सकता है, बदल सकता है या उसका उपयोग अपने हित में कर सकता है. बीजेपी का आरोप है कि पीके का बिहार की बात कैंपेन डाटा थेफ्ट मैटेरियल पर बेस्ड है.