बिहार में 1967 वाला चुनावी इतिहास होगा रिपीट! क्या पीके, तेजस्वी या कन्हैया कर पाएंगे ये काम?
आजादी के 20 साल बाद बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार 1967 में बनी थी. उस समय राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर ने कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फेंका था. नीतीश कुमार भी 20 साल से बिहार में सीएम हैं. महागठबंधन के तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार और जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर नीतीश सरकार की सत्ता को उखाड़ फेंकने में जुटे हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि युवा मतदाताओं के बीच युवा नेताओं को असर है. ऐसे में परिणाम कुछ भी हो सकता है.

बिहार में नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है. इसको लेकर सियासी सरगर्मी भी चरम पर है. इस बीच चर्चा यह है कि देश की आजादी के 20 साल बाद कांग्रेस के भ्रष्टाचार और पार्टी नेताओं के गुटबाजी की वजह से कांग्रेस 1967 का विधानसभा चुनाव हार गई थी. इस सफलता का श्रेय समाजवादी नेताओं को गया था. बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. इस बार नीतीश कुमार के खिलाफ बिहार में एंटी इंकम्बेंसी है. उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार और चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर पीछे पड़े हैं. प्रशांत किशोर तो हर हाल में नीतीश कुमार से सीएम पद से हटाने के लिए पिछले तीन साल से अभियान चला रहे हैं.
1967 वाला चुनाव परिणाम होगा रिपीट?
बिहार के सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरह साल 1967 में जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका था, वही सीन इस बार रिपीट न हो जाए. प्रशांत किशोर (PK) अपनी जन सुराज यात्रा के साथ, तेजस्वी यादव अपने सामाजिक न्याय और युवाओं के एजेंडे पर और कन्हैया कुमार अपनी विचारधारा और जमीनी पकड़ के साथ इस मुहिम में जुटे हैं.
हालांकि,तीनों की सोच अलग-अलग है, लेकिन मकसद सबका एक ही है कि किसी तरह नीतीश को बिहार की सत्ता से बेदखल किया जाए. बेरोजगारी, विकास न होना, कुशासन का राज, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर गिरना जैसे मसले भी इन युवाओं के एजेंडे में कॉमन हैं. अंतर केवल इतना है कि प्रशांत किशोर लोगों से कह रहे हैं कि आप अपने बच्चों को भविष्य बेहतर चाहते हैं तो नीतीश कुमार को हटाना जरूरी है. जबकि तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार का कहना है कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कुशासन से मुक्ति चाहिए तो एनडीए सरकार को हराना जरूरी है.
एंटी इनकंबेंसी फैक्टर अहम
इन युवा नेताओं की बातों के दम इसलिए लग रहा है कि लोगों में नीतीश कुमार को लेकर एंटी इनकम्बेंसी की लहर है. इसका लाभ विरोधी दल के नेता उठाते हैं या बीजेपी और एलजेपी रामविलास के चिराग पासवान, इसके बारे में अभी अंतिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है. एंटी इनकम्बेंसी की वजह से साल 1967 चुनाव में दो नारे लोकप्रिय हुए थे. पहला 'गली गली में शोर है केबी सहाय चोर हैं', दूसरा 'अंग्रेजी में काम न होगा, देश फिर गुलाम न होगा'.
नीतीश हारेंगे, हराने का काम करेंगे तेजस्वी : मृत्युंजय तिवारी
आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि 1967 में कांग्रेस चुनाव हारी वो अलग बात है, लेकिन इस बार नीतीश कुमार चुनाव हारेंगे, ये तय है. उनकी विदाई में किसी को संशय में रहने की जरूरत नहीं है. नीतीश कुमार की सरकार निकम्मी है. इस सरकार की वजह से बिहार बर्बादी के कगार पर है. हर मानकों पर बिहार देश में फिसड्डी राज्य है और नीतीश कुमार 20 साल से सीएम हैं. इस सरकार को बदलने में तेजस्वी यादव अहम भूमिका होंगे. उनके अलावा और कोई मैदान में नहीं हैं.
जनता की भूमिका अहम - राजेश राठौर
बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौर का कहना है कि इस बार चुनाव में सबसे अहम भूमिका जनता और उनके मुद्दों की होगी. जनता में नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी है. इस बार नीतीश कुमार सरकार बनाने में सफल हो पाएंगे. वह लगातार 20 साल से सीएम बने रहने में कामयाब तो हुए लेकिन जनता का विश्वास नहीं जीत पाए. अपने दम पर उनकी एक बार भी सरकार नहीं बनी. महागठबंधन और एनडीए को धोखा दे देकर वह 20 साल साल से सत्ता में बने हुए हैं. उनकी पलटूराम की राजनीति ने जनता को निराश किया है.
कांग्रेस प्रवक्ता राठौर के अनुसार नीतीश कुमार ने हर बार पांच साल में तीन बार सरकार को गिराया और खुद सीएम बने. इससे बिहार का विकास अवरुद्ध हुआ. 20 साल के दौरान बिहार में करप्शन और अपराध चरम है. इन सब मुद्दों के कारण इस बार वे हार जाएंगे. राजेश राठौर का कहना है कि नीतीश कुमार को सत्ता बेदखल करने में राहुल गांधी अहम भूमिका निभाएंगे. पीके, कन्हैया और तेजस्वी यादव सहयोगी भूमिका में होंगे.
बिहार में सियासी संकेत - अनवर हुसैन
आरजेडी के प्रवक्ता रहे अनवर हुसैन का कहना है कि कांग्रेस की तरह इस बार नीतीश कुमार भी चुनाव हारेंगे. बीजेपी और चिराग पासवान कुछ सियासी गेम करने की स्थिति में हैं, लेकिन एफआईआर का मामला उल्टा पड़ा तो राहुल गांधी नीतीश कुमार को अपने पाले में कर सकते हैं. बीजेपी नीतीश कुमार के साथ उनके छह प्रतिशत वोटों की वजह से है. बीजेपी नीतीश को कमजोर करने के लिए चिराग पासवान को कर रही है. बीजेपी को मौका मिला तो चिराग पासवान को आगे भी बढ़ सकती है. हालांकि, बिहार को पटरी पर लाने वाला नेता नीतीश कुमार ही हैं, लेकिन अब सियासी संकेत बदलाव वाले हैं.
क्या हुआ था 1967 में?
बिहार की राजनीति में 1967 का विधानसभा चुनाव एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था. तब राजनीति के केंद्र में रही कांग्रेस किनारे लग गई और पहली बार गैर कांग्रेसवाद वजूद में आया. उस समय चुनावी नारों ने ऐसा कमाल दिखाया था कि मतदान का पूरा परिदृश्य ही बदल गया था. इन नारों को गढ़ने में राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर प्रमुख थे. समाजवादियों ने सत्ता के तख्त को हिला दिया था. अब 2025 है और सवाल फिर वही है क्या PK की रणनीति, तेजस्वी की विरासत या कन्हैया की क्रांति इस परिवर्तन को अंजाम दे पाएगी?