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2025 में उलटफेर तय! बिहार चुनाव पर इलेक्शन कमीशन का SIR किस तरह डालेगा असर? ये हैं 3 सबसे बड़े कारण

बिहार में विशेष पुनरीक्षण (SIR) के तहत 65 लाख से अधिक वोटरों के नाम हटाए गए हैं. इसमें मृत, स्थानांतरित और डुप्लीकेट नाम शामिल हैं. यह बदलाव 2025 विधानसभा चुनाव को सीधे प्रभावित कर सकता है. कई सीटों पर वोटर संख्या में भारी गिरावट से नतीजे बदल सकते हैं. यह मुद्दा अब राजनीतिक बहस के केंद्र में है.

2025 में उलटफेर तय! बिहार चुनाव पर इलेक्शन कमीशन का SIR किस तरह डालेगा असर? ये हैं 3 सबसे बड़े कारण
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 3 Aug 2025 11:04 AM IST

बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के बाद चुनाव आयोग ने 7.96 करोड़ मतदाताओं में से 65.63 लाख मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिए हैं. इनमे 22.34 लाख मृत पाए गए, 36.28 लाख ने पता बदल लिया और 7.01 लाख मतदाताओं के नाम एक से अधिक स्थानों पर पाए गए. सबसे अधिक नाम पटना, मधुबनी और पूर्वी चंपारण जिलों से हटाए गए हैं. यह संख्या कुल मतदाताओं का 8.31% है, जो राज्य के चुनावी समीकरण में बड़ा बदलाव ला सकती है.

जानकारों के अनुसार SIR से सबसे ज्यादा असर तीन वर्गों पर पड़ा है. पहला, वंचित और दलित समुदाय के वे लोग जो कागजी प्रक्रिया में पिछड़ गए और दस्तावेज नहीं दे पाए. दूसरा, मुस्लिम बहुल सीटें, जहां पर परंपरागत रूप से राजद और कांग्रेस का वोट बैंक रहा है. तीसरा, अस्थायी प्रवासी जो लॉकडाउन या अन्य कारणों से कहीं और चले गए थे और उनका नाम स्थायी पते पर नहीं रह पाया. यह बदलाव सीधे तौर पर विपक्षी दलों की चुनावी रणनीति पर असर डालेगा.

वोट प्रतिशत में गिरावट तय मानी जा रही

2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार का कुल वोट प्रतिशत 54.63% रहा था. उस समय वोटर संख्या करीब 7.06 करोड़ थी. अब यह संख्या 7.24 करोड़ रह गई है. यानी करीब 65 लाख वोटर कम हो गए हैं. इसका सीधा असर मतदान प्रतिशत पर पड़ेगा. कम वोटिंग का मतलब है चुनावी नतीजों में ज्यादा अप्रत्याशित परिणाम, विशेषकर उन सीटों पर जहां मामूली अंतर से हार-जीत होती है.

छोटे अंतर वाले सीटों का बदलेगा चुनावी नतीजा

बिहार के पिछले चुनावी आंकड़े बताते हैं कि कई सीटों पर जीत का अंतर बेहद मामूली रहा है. 2020 में 11 सीटों पर उम्मीदवार 1000 वोट से भी कम के अंतर से जीते थे. 35 सीटों पर यह अंतर 3000 से कम और 52 सीटों पर 5000 से कम रहा था. यानी अगर SIR के कारण किसी सीट पर खास समुदाय या वर्ग के 5000 वोट भी हटे हैं, तो वहां पर नतीजे पलट सकते हैं.

हर सीट पर कितने घटे वोटर?

बिहार की 243 विधानसभा सीटों को देखें तो 65 लाख वोटर कटने का अर्थ है औसतन 26,749 वोटर हर सीट पर कम हुए हैं. हालांकि यह केवल औसत है, असल में कुछ शहरी और घनी आबादी वाली सीटों पर यह संख्या 50 हजार से अधिक भी हो सकती है. खासकर पटना, भागलपुर, दरभंगा और मोतिहारी जैसी सीटों पर यह बदलाव निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

अंतर का असर अलग अलग

लोकसभा चुनाव में आमतौर पर एक लाख से दो लाख वोटों का अंतर होता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह अंतर घटकर 1000 से 5000 के बीच आ जाता है. 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार की 20 सीटों पर जीत-हार का अंतर 1 लाख से कम रहा. इनमें से 11 सीटें NDA के पास थीं. यदि विधानसभा में भी ऐसा ही ट्रेंड रहा, तो SIR से सीटों का बंटवारा पूरी तरह बदल सकता है.

किसे होगा फ़ायद-नुकसान?

इसका सीधा जवाब देना मुश्किल है. हालांकि कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि RJD, कांग्रेस और वाम दलों को ज्यादा नुकसान हो सकता है क्योंकि उनके कोर वोटर गरीब, मुस्लिम और ग्रामीण SIR प्रक्रिया में ज्यादा प्रभावित हुए हैं. दूसरी ओर, BJP और JDU का दावा है कि वे संगठित ढंग से फॉर्म जमा करवा कर अपने वोटर की लिस्टिंग करा चुके थे. ऐसे में सत्ता पक्ष को फिलहाल राहत मिलती दिख रही है.

क्या बनेगा चुनावी मुद्दा?

राजनीति में आंकड़े भी हथियार होते हैं. विपक्ष इस पूरे SIR को एक ‘प्रशासनिक षड्यंत्र’ बता रहा है. CPI-ML और RJD ने यह आरोप लगाया है कि जानबूझकर कमजोर वर्गों के नाम हटाए गए हैं. वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और नियमों के तहत हुई है. आने वाले समय में यह मुद्दा सड़कों से लेकर विधानसभा तक गूंज सकता है, और जनता की प्रतिक्रिया से तय होगा कि यह बहस वोटों में कैसे तब्दील होती है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025
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