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'मौलाना' कहकर BJP ने बिहार में उठाया मंडल कार्ड, अब कमंडल के जरिए 'ध्रुवीकरण' में कितनी होगी कामयाब?

बिहार बीजेपी ने तेजस्वी यादव को 'मौलाना' कहकर बिहार में एक बार फिर मंडल-कमंडल की राजनीति को हवा दे दी है. अब बीजेपी आरक्षण, जाति, धर्म और ध्रुवीकरण के जरिए बिहार की राजनीति में नए समीकरण बनाने की तैयारी में है. जानिए, बीजेपी की इस रणनीति के पीछे की असली वजह.

मौलाना कहकर BJP ने बिहार में उठाया मंडल कार्ड, अब कमंडल के जरिए ध्रुवीकरण में कितनी होगी कामयाब?
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बिहार की राजनीति एक बार फिर 1990 के दशक के दौर के ट्रैक पर में लौटती नजर आ रही है. एक ओर आरक्षण और जातीय गणना की गूंज है, तो दूसरी ओर भगवा पिच पर धर्म की गेंद घुमाई जा रही है. हाल ही में तेजस्वी यादव ने पटना के गांधी मैदान में मुस्लिम जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि आरजेडी की सरकार बनी तो वक्फ कानून को कूड़े में फेंक देंगे. इसके जवाब में बीजेपी ने तेजस्वी यादव को मौलाना करार दिया था. उसके बाद से यह मामला अब ठंडा पड़ गया था, लेकिन आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध मेहता ने कैमूर में 20 जुलाई को कैमूर में आयोजित किसान महासम्मेलन में बीजेपी जोरदार हमला बोला. उन्होंने कहा कि भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को 'मौलाना तेजस्वी' नया नाम दिया है. ऐसा कर उन्होंने वही किया जिस तथाकथित ध्रुवीकरण की राजनीति बीजेपी करना चाहती है.

सुबोध मेहता यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि देश में राम हमारे हैं और हम सबको अपना मानते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लोग कभी भी किसी का भी नामकरण कर देते हैं. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग नागपुर से शिक्षा लेकर आते हैं वही ऐसी बातें करते हैं. भगवा वालों का मानना है कि 'राम के साथ सिर्फ हम हैं', जबकि हमारा मानना है कि 'राम के साथ सब हैं.

सुबोध मेहता ने कहा कि 1989 में जब मंडल आयोग लागू हुआ भगवा वाले 'कमंडल' लेकर आ गए. देश को धार्मिक आधार पर बांटने की राजनीति की. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ध्रुवीकरण की राजनीति कर अपना वोट बैंक 16 फीसदी से बढ़कर 36% तक पहुंचा चुकी है.

मंडल बनाम कमंडल की जंग

सुबोध मेहता से पहले बीजेपी नेता संजय जायसवाल द्वारा भी तेजस्वी यादव को 'मौलाना' कहना सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक सियासी चाल है. एक ऐसा पासा जो 2025 की तैयारी में मंडल और कमंडल की पुरानी जंग को बिहार में फिर से जिंदा कर दे. भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने हाल ही में बयान दिया कि “तेजस्वी यादव अब हिन्दू नहीं रहे, वह अब मौलाना तेजस्वी हैं.” एनडीए इसे मुस्लिम तुष्टिकरण के तौर पर दिखाना चाह रही है, जबकि विपक्ष इसे भाजपा की साम्प्रदायिक रणनीति बता रहा है.

ध्रुवीकरण बनाम जातीय समीकरण का इतिहास

दरअसल, बिहार की राजनीति में मंडल (जातीय आरक्षण, सामाजिक न्याय) और कमंडल (धार्मिक ध्रुवीकरण) की लड़ाई दशकों से चली आ रही है. 1989—90 में लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा निकाल देशभर में हिंदू राजनीति को चरम पर पहुंचा दिया था. हालांकि, उस समय बिहार के सीएम लालू यादव और आडवाणी की रथ यात्रा को समस्तीपुर में रोक दिया था. उस समय तो बीजेपी ने कमंडल को सत्ता में होने की वजह से दबा दिया था. लेकिन 2000 के बाद से मंडल यानी आरक्षण की लड़ाई कमजोर पड़ गई. जबकि बिहार में कमंडल यानी हिंदू ध्रुवीकरण ने जोर पकड़ लिया.

बीजेपी ने क्यों थामा नीतीश का हाथ ?

साल 2000 आते-आते मंडल की राजनीति पूरी तरह से बिखर गई थी, लेकिन कमंडल की राजनीति अपनी गति से आगे बढ़ रही थी. कमंडल यानी बीजेपी की राजनीति ने लालू से लड़ने के लिए नीतीश का नेतृत्व स्वीकार कर लिया और नीतीश ने भी लालू को मात देने के लिए बीजेपी का दामन थाम लिया .

इस मेल मिलाप का नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. अक्तूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 55 और जेडीयू को 88 सीटों पर जीत मिली और पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन सरकार बनी.

हिंदुत्व की राजनीति की बड़ी जीत

2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को और प्रचंड जीत मिली. लालू-रामविलास का गठबंधन 25 सीटों पर ही सिमटकर रह गया. जबकि एनडीए को 243 सीटों वाली विधानसभा में 206 सीटों पर जीत मिली. जेडयू 115 सीट जीतने में कामयाब रही और बीजेपी 91. लालू यादव के लिए यह शर्मनाक हार थी, लेकिन यह नीतीश की जीत के साथ हिंदुत्व की राजनीति की भी बड़ी जीत थी. साल 1990 के बाद से बीजेपी का वोट शेयर बिहार में लगातार बढ़ता गया. 2010 की जीत के बाद भी नीतीश कुमार अपनी सेक्युलर छवि को लेकर उसी तेवर में रहे.

अब एक तरफ तेजस्वी यादव जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दों को हवा दे रहे हैं, वहीं भाजपा इन कोशिशों को हिन्दू वोट बैंक के खिलाफ मानते हुए धार्मिक पहचान पर चोट कर रही है. ‘मौलाना’ कहकर बीजेपी असल में हिन्दू वोटों को एकजुट करना चाहती है.

बीजेपी ने तेजस्वी को कब कहा मौलाना?

क्फ कानून को लेकर बिहार की राजनीति इन दिनों गरमाई हुई है. आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और बीजेपी पर निशाना साधते हुए स्पष्ट कहा है कि वे धर्म नहीं, कर्म की राजनीति में विश्वास रखते हैं. साथ ही उन्होंने बीजेपी के प्रवक्ताओं की ओर से लगाए गए आरोपों का भी मंच से जवाब दिया. कहा, "लगातार दिल्ली में बीजेपी के चिरकुट सब... संघी वाले, दो दिन से हमको गाली दे रहे हैं. कभी 'नमाजवादी' कह रहे हैं कभी 'मौलाना' कह रहे हैं."

तेजस्वी-लालू करते हैं हिंदू-मुस्लिम की राजनीति - गौरव भाटिया

हाल ही में तेजस्वी यादव ने पटना के गांधी मैदान में आयोजित 'वक्फ बचाओ, संविधान बचाओ' रैली को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार की ओर से लागू वक्फ कानून पर तीखा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि बिहार में मौजूदा सरकार सत्ता से बाहर होने की राह पर है. अगर राज्य में आरजेडी की सरकार बनी तो वह वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे. इस बात को लेकर बीजेपी तेजस्वी यादव पर हमलावर है. एक दिन बाद गौरव भाटिया ने प्रे​स कॉन्फ्रेंस कर तेजस्वी यादव को 'मौलाना' करार दिया.

गौरव भाटिया ने ये भी कहा था कि तेजस्वी यादव इस देश को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते हैं. ये शरिया कानून लागू करना चाहते हैं. मौलाना तेजस्वी यादव संविधान को जानते नहीं हैं. आरजेडी बिहार में अगले 50 साल सत्ता में आने वाली नहीं है. तेजस्वी यादव और लालू यादव सांप्रदायिक राजनीति करते हैं. हिंदू और मुस्लिम राजनीति कर रहे हैं."

बीजेपी कर रही नफरत फैलाने की कोशिश - तेजस्वी

तेजस्वी यादव ने बीजेपी के हमले का 1 जुलाई को जवाब देते हुए कहा था कि हम मुद्दों की बात करते हैं, वे मुर्दों की बात करते हैं. बीजेपी कर रही है नफरत फैलाने की कोशिश है.

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