बिहार वोटर लिस्ट विवाद: महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, चुनाव आयोग पर क्या-क्या उठाए सवाल?
बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर नया विवाद खड़ा हो गया है. तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव आयोग के आदेश को असंवैधानिक बताया है. उनका दावा है कि लाखों लोग दस्तावेजों की कमी के कारण वोटिंग अधिकार से वंचित हो सकते हैं. कोर्ट अब इस संवेदनशील मुद्दे पर सुनवाई करेगा.

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर सियासी और संवैधानिक विवाद तेज हो गया है. जहां विपक्षी दलों ने इस कवायद को ‘पूर्वनियोजित रणनीति’ बताया है, वहीं अब तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है. इससे साफ है कि यह मुद्दा अब महज प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संवैधानिक बहस में तब्दील हो चुका है.
महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में चुनाव आयोग के 24 जून 2025 के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 325 और 328 का उल्लंघन बताया है. उनका आरोप है कि इस आदेश से लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जा सकता है, जिनमें गरीब, प्रवासी और हाशिए के समुदाय प्रमुख होंगे. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश को निरस्त करने की मांग की है.
वोटर बनना हुआ और मुश्किल
महुआ का बड़ा तर्क यह है कि यह पहली बार है जब नागरिकों को अपने वोटिंग अधिकार के लिए नागरिकता प्रमाणित करने वाले दस्तावेज देना अनिवार्य किया गया है, भले ही वे पहले कई बार वोट दे चुके हों. इससे लोकतंत्र में भागीदारी की प्रक्रिया में एक तरह की बाधा उत्पन्न होगी, जो संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है.
चिराग पासवान ने क्या कहा?
बिहार में मतदाता सूची को लेकर जारी विवाद पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने स्पष्ट कहा कि यह एक नियमित प्रक्रिया है और इसका मकसद सूची को शुद्ध करना है. उन्होंने कहा, "मतदाता सूची का शुद्धिकरण समय-समय पर होता है और यह घुसपैठियों की पहचान के लिए आवश्यक है." चिराग पासवान ने विपक्ष से अपील करते हुए कहा कि वे झूठे नैरेटिव न गढ़ें, बल्कि जिन लोगों को शिकायत है, उनकी मदद करें ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भरोसा बना रहे. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, लेकिन अनावश्यक राजनीतिक बयानबाजी से जनता को गुमराह नहीं किया जाना चाहिए.
चुनाव आयोग की मंशा या जल्दबाज़ी?
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने 1 जुलाई से 31 जुलाई तक मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की है. आयोग ने 11 पहचान दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें से किसी एक को देना अनिवार्य होगा. हालांकि, सवाल उठ रहा है कि इतनी कम समयसीमा में खासकर ग्रामीण और प्रवासी मतदाता जरूरी दस्तावेज कैसे जुटा पाएंगे?
सुप्रीम कोर्ट की परीक्षा
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के लिए भी एक चुनौतीपूर्ण परीक्षण बन सकता है. जहां एक ओर फ्री एंड फेयर इलेक्शन की शुचिता है, वहीं दूसरी ओर नागरिकों का मूलभूत अधिकार है कि वे बिना किसी अनावश्यक बाधा के मतदान कर सकें. यदि कोर्ट इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करता है, तो यह भविष्य की चुनावी प्रक्रियाओं की दिशा भी तय कर सकता है.
सत्ता की जंग से पहले वोट की जंग
बिहार में सियासत हमेशा से जातीय गणित, प्रवासी वोट और ग्रामीण जनसंख्या के आधार पर तय होती रही है. ऐसे में मतदाता सूची में किसी भी बड़े फेरबदल का सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है. यही वजह है कि विपक्षी दल इसे ‘राजनीतिक गणित साधने की कोशिश’ करार दे रहे हैं और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टकटकी लगाए बैठे हैं.