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काले कपड़े और मास्क से छुपाती हैं चेहरा...बिहार की राजनीति में Pushpam Priya की एंट्री, जानें कौन

बिहार की राजनीति में एक नई हवा बह रही है, और इसके केंद्र में है पुष्पम प्रिया चौधरी, जिन्होंने ब्रिटेन से लौटकर राज्य के पारंपरिक जाति और धर्म आधारित राजनीति को बदलने का फैसला किया है. 37 साल की इस युवा नेता ने न केवल अपनी पार्टी ‘द प्लूरल्स पार्टी’ की स्थापना की है.

काले कपड़े और मास्क से छुपाती हैं चेहरा...बिहार की राजनीति में Pushpam Priya की एंट्री, जानें कौन
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( Image Source:  x-@pushpampc13 )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 19 Oct 2025 4:58 PM IST

बिहार की राजनीति लंबे समय से जाति समीकरण और परंपरागत नेताओं की पकड़ में बंधी रही है, लेकिन इसी राजनीति में एक नई और अप्रत्याशित एंट्री ने हलचल मचा दी है. यह एंट्री है पुष्पम प्रिया चौधरी की. एक ऐसी महिला नेता जो न सिर्फ अपनी विचारधारा से अलग नजर आती हैं, बल्कि अपने व्यक्तित्व और शैली से भी चर्चाओं में रहती हैं.

काले रंग के कपड़े पहनना और सार्वजनिक कार्यक्रमों में मास्क से चेहरा ढंकना उनकी पहचान बन चुका है. उनकी यह स्टाइल किसी फैशन का हिस्सा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है कि ‘मैं सिस्टम को चुनौती देने आई हूं. चलिए जानते हैं कौन हैं पुष्पम प्रिया चौधरी?

कौन हैं पुष्पम प्रिया?

पुष्पम प्रिया दरभंगा की रहने वाली हैं. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा यहीं पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए पुणे का रुख किया. इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से डेवलपमेंट स्टडीज में मास्टर्स और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स किया. ब्रिटेन में पढ़ाई और काम के अनुभव से उन्हें नीतियों और सुधारों की समझ मिली. बिहार सरकार के पर्यटन और स्वास्थ्य विभाग में सलाहकार रहते हुए उन्होंने प्रशासनिक कामकाज को करीब से देखा. इससे उनका नेतृत्व मजबूत हुआ और बदलाव लाने का उनका नजरिया और स्पष्ट हो गया.

द प्लूरल्स पार्टी की स्थापना

8 मार्च 2020, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. इसी दिन पुष्पम ने अपनी पार्टी ‘द प्लुरल्स पार्टी’ लॉन्च की और खुद को बिहार के मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित कर दिया. उनके काले कपड़े और चेहरे पर मास्क सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं थे, बल्कि व्यवस्था के खिलाफ विरोध का प्रतीक बन गए. उन्होंने वादा किया कि जब तक चुनाव नहीं जीतेंगी, तब तक चेहरा नहीं दिखाएंगी. इस वादे में था साहस, रणनीति और असहमति की आवाज़.

2020 में लड़ा पहला चुनाव

2020 के चुनावों में ‘द प्लुरल्स पार्टी’ ने लगभग 148 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. हर प्रत्याशी ने अपने नाम के आगे केवल एक पहचान लिखी 'बिहारी'. यह छोटा‑सा शब्द बिहार की उस पुरानी राजनीति के खिलाफ बड़ा प्रतिरोध था, जो सदियों से जाति और मजहब की दीवारों में बंटी रही. हालांकि पार्टी बहुत सीटें नहीं जीत पाई, पर एक संदेश साफ गूंज गया कि नई राजनीति केवल नारा नहीं, नई पीढ़ी का विश्वास है.

2025 में देंगी कड़ी टक्कर

अब 2025 में पुष्पम प्रिया एक बार फिर दरभंगा से चुनाव लड़ रही हैं, और इस बार उनका लक्ष्य सभी 243 सीटों पर मुकाबला करना है. जहां आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रखी गई हैं. वहीं, उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न 'सिटी' है, जो विकास, रोजगार और शहरी सोच का प्रतीक है. वह कहती हैं कि बिहार को अब गरीबी की प्रतीक नहीं, विकास की राजधानी बनना होगा.

राजनीति से पुराना तालुक्क

दरभंगा की गलियों में पली‑बढ़ी पुष्पम का घर हमेशा चर्चा में रहा. पिता विनोद कुमार चौधरी कभी जेडीयू के विधायक रह चुके हैं. दादा प्रोफेसर उमाकांत चौधरी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी और समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे. उनके चाचा, विनय कुमार चौधरी, आज भी जेडीयू से बेनीपुर से विधायक हैं.

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