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बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड! 2005 से 2020 तक हर चुनाव में रहा ‘मुख्यमंत्री चेहरा’, इस बार क्यों नहीं?

बिहार की राजनीति में इस बार कई बदलाव एक साथ देखने को मिल रहे हैं. उन्हीं में से सबसे बड़ा बदलाव यह है कि पिछले दो दशक में पहली बार पहली बार ऐसा हो रहा है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष ने आधिकारिक तौर पर सीएम फेस की घोषणा नहीं की है. यही वजह है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों गुट बिना सीएम फेस के चुनावी मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड! 2005 से 2020 तक हर चुनाव में रहा ‘मुख्यमंत्री चेहरा’, इस बार क्यों नहीं?
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( Image Source:  ANI )

बिहार की सियासत में इस बार कुछ अलग दिख रहा है. साल 2005 से लेकर अब तक हर विधानसभा चुनाव में जनता के सामने एक स्पष्ट मुख्यमंत्री चेहरा (CM Face) होता रहा है. चाहे वो सत्ता पक्ष हो या विपक्ष. नीतीश कुमार हों, लालू प्रसाद यादव हों या तेजस्वी यादव, लेकिन 2025 का चुनाव इस परंपरा को तोड़ रहा है. इस बार औपचारिक तरीके से न तो एनडीए ने कोई चेहरा घोषित किया है, न ही महागठबंधन ने. कारण चाहे कुछ भी क्यों नह हों? दोनों गठबंधन टीम लीडरशिप मॉडल पर भरोसा जता रहे हैं. अघोषित तौर पर महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव तो एनडीए की ओर से नीतीश कुमार को ही सीएम चेहरा माना जा रहा है.

दरअसल, इस बार सीएम फेस को लेकर सहमति नहीं है. महागठबंधन में तो तेजस्वी यादव की बार-बार मांग पर भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन्हें औपचारिक तौर सीएम फेस नहीं माना है. हालांकि, एक चुनावी रैली में तेजस्वी यादव खुद को सीएम फेस बता चुके हैं. वहीं, एनडीए की बात है कि इस बार इस गठबंधन का चुनाव पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है. इस गठबंधन में भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अलग-अलग मंचों से बार-बार यह दोहरा रहे हैं कि सीएम फेस चुनाव परिणाम आने के बाद एनडीए गठबंधन दलों के विधायकों द्वारा चुना जाएगा.

कब,कौन रहा सीएम फेस?

जानें, बिहार विधानसभा चुनाव में 2005 से अब तक कौन-कौन रहा सीएम फेस और इस बार क्यों दोनों सियासी गठबंधन ‘कलेक्टिव लीडरशिप’ के सहारे मैदान में हैं.

अगर हम 2005 विधानसभा चुनाव की बात करें तो एनडीए की ओर से 2005, 2010, 2020 की बात करें तो एनडीए की ओर से नीतीश कुमार सीएम फेस थे. साल 2015 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़, महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था. वहीं महागठबंधन की ओर से सीएम फेस भी थे. 2020 में एनडीए की ओर से सीएम फेस नीतीश कुमार और महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव थे. इसी तरह साल 2005 में सत्ताधारी पार्टी यानी आरजेडी की ओर से राबड़ी देवी सीएम फेस थीं. साल 2010 में भी आरजेडी की ओर से राबड़ी देवी ही सीएम चेहरा थीं. दोनों बार लालू यादव चारा घोटाले के आरोप में जेल में होने और एक बार सांसद होने की वजह से सीएम फेस नहीं बने थे.

2025 में क्यों नहीं है कोई घोषित चेहरा?

  • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के चुनाव में एनडीए हो या महागठबंधन, किसी ने भी आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. दो दशक में पहली बार ऐसा है कि न तो एनडीए न ही आरजेडी नेतृत्व वाली महागठबंधन ने सीएम फेस घोषित किया है. इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं.
  • नीतीश कुमार की उम्र और थकान की वजह से जेडीयू प्रमुख के राजनीतिक उत्तराधिकारी का सवाल अभी भी अधूरा है.
  • आरजेडी ने भी इस बार 'साझा नेतृत्व' की बात की है, ताकि सीट शेयरिंग में सहयोगियों की असहमति न बढ़े. राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस का चेहरा घोषित करने के लिए तैयार नहीं हैं.
  • इस बार भाजपा की रणनीति यह पार्टी अब 'कलेक्टिव लीडरशिप' और 'मोदी फैक्टर' पर भरोसा कर रही है, जैसा उसने कई राज्यों में किया है. विशेषज्ञों का मानना - ‘चेहरे के बिना चुनाव हो रहा है. इसलिए इस बार मुद्दों पर दोनों गठबंधनों के बीच मुकाबला होगा.'
  • बिहार के सियासी विश्लेषकों का कहना है कि इस बार बिहार में मुकाबला ‘चेहरे बनाम चेहरे’ नहीं बल्कि मुद्दों बनाम मुद्दों का होगा. बेरोजगारी, विकास, जातिगत संतुलन, पलायन और गठबंधन समीकरण प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं.
  • यह भी माना जा रहा है कि जनता के बीच नीतीश के बाद कौन, का सवाल इस चुनाव को और दिलचस्प बना रहा है.
  • क्या दो दशक पुरानी परंपरा टूटने से बदल जाएगा बिहार का सियासी समीकरण?

2005 से लेकर अब तक बिहार की राजनीति ‘व्यक्तित्व-आधारित चुनाव’ पर टिकी रही है, लेकिन अब जब कोई भी दल मुख्यमंत्री चेहरा नहीं दे रहा, तो संगठन, गठबंधन और जातीय समीकरण निर्णायक बन सकते हैं. यह भी संभव है कि परिणाम आने के बाद ही किसी एक नेता का नाम आगे बढ़े, जैसे हरियाणा या महाराष्ट्र के हालिया चुनावों में हुआ था.

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